शनिवार, 26 नवंबर 2022

आनंदी चौका आरती ...💐

कल दिनाँक 25 नवंबर 2022 को मेरे ससुराल ग्राम चिचोली, नांदघाट में आनंदी चौका आरती था। आदरनीय महंत दीपक साहब आए थे, उनसे मेरा हृदय का नाता बरसों से जुड़ा हुआ है। आंखें भाववश छलक उठीं।

जीवन में दुख ही अंतिम सत्य है ...💐

बचपन में प्राथमिक शिक्षा गाँव में पूरी हुई। कक्षा 6 से 8 की माध्यमिक शिक्षा के लिए दूसरे गाँव लगभग 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा तय करके जाया करता था। फिर नवमीं से दसवीं कक्षा के लिए रोज 36 किलोमीटर की सायकल यात्रा करता था। मैं अक्सर स्कूल से घर सुनसान रास्तों को पार करके अंधेरा होने के बाद ही पहुँचता। बेहद गरीबी में बचपन गुजरा है। दो कपड़े हुआ करते उसमें भी एक स्कूल ड्रेस। पैंट पीछे से दोनो साइड से फटा हुआ।

लम्बा परिवार था, खाने के लिए भी घर में झगड़े हुआ करते, भर पेट खाना किसी को नहीं मिलता था। पिताजी ने कैसे भी करके ऊँची शिक्षा दिलाने के लिए शहर में मेरा एडमिशन कराया। किराए के खपरैल और मिट्टी से बने एक कमरे में विद्यार्थी जीवन बिता। स्कूल के बीच चूल्हे में दो वक्त का खाना बनाने, बर्तन और कपड़े धोने की चिंता में वक्त बीतता। घर से महीने का रोज दस रुपए के हिसाब गिनकर महीने भर के खर्चों के लिए तीन सौ रुपये मिलता। ऊपर से जन्मजात पेटदर्द...। इन कठिनाईयों और आसपास फैले विपरीत परिस्थितियों के बीच रो पड़ता।

अब दो बेटियों का पिता हूँ, किसी का पति और घर का बड़ा पुत्र भी। अहसास होता है कि मेरे परिवार ने मुझे किस तरह पाला पोसा होगा, किस तरह ऊंची तालीम दी होगी, किस तरह संभाला होगा। उनका त्याग, उनका बलिदान याद करता हूँ। लेकिन जब अपने जीवन को ऊपर उठकर देखता हूँ तो पाता हूँ कि हर किसी का जीवन पीड़ा में बीत रहा है। वो मुझसे भी कहीं अधिक दुखी हैं, मुझसे भी अधिक कष्टों से घिरे हैं, और मन को संतोष कर लेता हूँ, मान लेता हूँ कि दुख ही इस सृष्टि का अंतिम सत्य है।

स्वयं को जानें या साहब को?

साहब, स्वयं को कैसे जानें? अनेक लोग कहते हैं कि आत्मसाक्षात्कार जैसी कोई चीज होती हैं, इससे अपने असली शरीर और शुद्धतम आत्मा का बोध होता है। लेकिन मुझे आज तक अपना कोई बोध नहीं हुआ। मेरे सांसों में सत्यनाम का सुमिरन होता है और नजरों में आपका स्वरूप। मैं इन्हीं दोनों में स्थित और स्थिर होता हूँ, यही मेरे ध्यान का आधार है। इससे मुझे आपकी सत्ता का बोध होता है न कि खुद का। मैं किसी भी हाल में आपका नाम और रूप नहीं छोड़ सकता। छूटते ही जबरदस्त खालीपन का आभास होता है, ध्यान में विचार शून्यता तो होती है लेकिन उस शून्यता में आप होते हैं। मेरा ध्यान आपके नाम और रूप का आदी है, एक भी पल इन्हें ओझल नहीं होने देता। काम के दौरान भी, टीवी देखते भी, नींद में भी, हर गतिविधियों में आपका नाम और रूप रहता है। मैं तो आपको साक्षी होकर निहारता हूँ। यही क्रिया बरसों से चली आ रही है। खुद के बजाज आप और आपकी लीलाएं नजर आती हैं। जब कोई कहता है खुद को जानों, आत्मसाक्षात्कार करो तो मैं कन्फ्यूज हो जाता हूँ। पाता हूँ मैं तो कहीं हूँ ही नहीं, आपमें खो गया, आपमें मिट गया।

रविवार, 13 नवंबर 2022

ये जीवन है ...💐

साहब की यह सृष्टि उनकी अनुपम कृति है। हर पल कहीं किसी जीवन का अंत होता है तो कहीं किसी जीवन का नवप्रस्फुटन होता है। ऋतुओं के अनुसार पतझड़ आने पर पेड़ो के पुराने और सूखे पत्ते झर जाते हैं तो वहीं बसंत आने पर वो पेड़ फिर से नए पत्तों और फूलों से लहलहा उठते हैं। साहब फिर से अपनी हरितिमा प्रकृति में चारों ओर बिखेर देते हैं।

देह का अंत और नवप्रस्फुटन के बीच का हिस्सा ही है जिसे जीवन कहते हैं। देह के अंत को जीवन की पूर्णता कहा जाता है। इसी के बाद तो वह क्षण आता है, वह पल आता है जब पूण्य आत्माओं की मुक्ति होती है। आज वह क्षण आ गया। साहब का वह अंश साहब में चिरकाल के लिए विलीन हो गया।

साहब की सृष्टि का यही रीत है, यही गीत और संगीत है। प्रेम पुष्प अर्पित करें, उनका धन्यवाद करें, उनकी मधुर स्मृतियों को अपने हृदय में बसाकर उन्हें अनंतकाल के लिए विदा करें।

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बुधवार, 26 अक्तूबर 2022

साहब का लॉकेट ...💐

कबीर प्रगटोत्सव पर एकोत्तरी चौका में शामिल होने, साहब से पान परवाना और प्रसाद प्राप्त करने दामाखेड़ा गया हुआ था। तो याद आया कि बच्चों ने गले में साहब की लॉकेट धारण कर रखे हैं वो मटमैले हो चुके हैं। तो प्रचार केंद्र से साहब के दो लाकेट ले आया था। उनकी मम्मी ने दोनों बच्चों को पहना दी थी।

आज सोते वक्त छोटी बिटिया मेरे बिस्तर पर आकर लेट गई। लॉकेट दिखाते हुए पूछने लगी- पापा ये कौन हैं? तो मैंने उत्तर दिया कि ये साहब हैं, उन्होंने ही तुम्हें हमारे पास भेजा है, वो हम सबके बेस्ट फ्रेंड हैं। उसने पूछा कि हम ये साहब की माला क्यों पहनते हैं? चूंकि वो स्कूल जाते वक्त रोज रोती है, स्कूल जाने से डरती है, तो मैंने उत्तर दिया कि साहब स्कूल जाने की ताकत देते हैं। जब सुबह स्कूल जाओ और डर लगे तो साहब के लॉकेट से हिम्मत मांगो, वो डर को फुर्र कर देंगे। वो हमें ताकतवर बनाते हैं। इसलिए हम साहब की माला पहनते हैं।

फिर वो पूछी की साहब क्या सच में मेरी मदद करेंगे? तो मैंने उत्तर दिया- साहब तुम्हारे लिए स्कूल में बहुत सारे फ्रेंड बनाएंगे, टीचर्स तुम्हें खूब सारा प्यार करेंगे, स्टार मार्क देंगे, साहब तुम्हें गुडगर्ल बनाएंगे, तुम्हें जल्दी से दीदी जितनी बड़ी कर देंगे, रोज स्कूल जाएगी तो ढेर सारा चॉकलेट भी देंगे, खिलौने भी देंगे। वो बड़ी खुश हो गई, चेहरे पर हिम्मत भरी मुस्कान खिल गई।

फिर उसने लाकेट को दिखाते हुए पूछा कि साहब के कमरे का कलर ग्रीन है क्या? साहब को ग्रीन कलर पसंद है? पर मुझे तो ब्लू, पिंक, पर्पल पसंद हैं। बच्चे ऐसे अनेकों सवाल करते हैं, जिज्ञासा करते हैं। आप सबसे इस संबंध में मार्गदर्शन चाहता हूँ कि आपके छोटे नन्हे बच्चे जब साहब के बारे में प्रश्न करते हैं तो आप उन्हें कैसे संतुष्ट करते हैं? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

मेरा सूफियाना ...💐

मुझे लड़कपन से ही सूफ़ी संत लुभाते रहे हैं। भारत और विश्वभर में अनेकों सूफ़ी संत हुए। उनकी वाणियों में अजीब आकर्षक होता है, गहरे भाव होते हैं। उनके शब्द परमात्मा की विरह में डूबा हुआ होता है। जब भी सूफ़ी संतों की वाणियों को पढ़ता हूँ तो लगता है मानो वो मेरी ही बात कह रहे हैं, मेरे ही दिल के शब्दों को आकार दे रहे हैं।

उनके भावों में परमात्म प्रेम की अनंत ऊंचाईयां होती है। वहीं विरह की न बुझने वाली अनंत तड़प होती है। दिल बेधने वाली गहरी और अतृप्त प्यास... जिसका कोई ओरछोर नहीं। सीमाओं से परे, बंधनों से परे, उन्मुक्त संवेदनाएँ...। किसी सूफ़ी संत के परमात्मा से विरह के भावों को देखें और महसूस करें-

"किसी लम्हा, किसी भी पल ये दिल तनहा नहीं होता
तेरी यादों के फूलों से मैं तनहाई सजाता हूं।"

भले ही शब्दों में बयान नहीं कर पाते लेकिन साहब के लिए ऐसी ही तड़प आप भी अपने भीतर पाते होंगे, आप भी उनकी याद में पल पल जीते और मरते होंगे।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

साहब का देश जाना है...💐

बहुत दूर चले जाना है... बहुत दूर। नदी के उस पार चले जाना है। चलते चलते पथिक थक चुका है, अब और नहीं चला जाता। रात भी हो चली है, इस घनघोर अंधियारे और वीराने में आसमान पर एक तारा चमक रहा है। उसकी मध्यम रौशनी के सहारे पग आगे बढ़ रहे हैं, उसी प्रकाशित पुंज की ओर बढ़ चुका हूं, विश्वास है कि वही प्रकाशपुंज मुझे मेरे गंतव्य तक पहुँचाएगा।

पीछे छूटते हुए कुछ लोगों की करुण पुकार सुनाई देती है, वो मुझे आगे बढ़ने से रोकने की असफल कोशिशें कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने सँवारा संभाला, स्नेह दिया, दिशा दी। जबकि वो लोग भी जानते हैं कि सबको एक न एक दिन उस पार जाना ही होता है, उस प्रकाशपुंज में समा जाना ही है, साहब में मिलकर एकमेव हो जाना है।

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सुमिरण ध्यान ...💐

सुमिरन ध्यान... सारी समस्याओं का हल। चैतन्यता की ऊँचाई और समर्पण की गहराई है। नितप्रति कम से कम आधे घंटे का ध्यान जीवन में शामिल कर लेने से साहब मिल सकते हैं। ज्यों-ज्यों सुमिरन ध्यान का समय बढाते हैं, त्यों-त्यों साहब के और करीब पहुँचते जाते हैं।
सुमिरण ध्यान में साधक अपनी हर बुराई की बलि देता है। फिर एक दिन ऐसा आता है जब मनोमस्तिष्क बुराइयों से विहीन हो जाती है, मनोमय साहब की दिव्यतम रौशनी से भर जाता है, तब चुपके से आपका हाथ साहब थाम लेते हैं। 

साहब की वाणी है:-
ज्यों मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर।।

एक अदृष्य ऊर्जा पीछे लग जाती है, दरअसल यह ऊर्जा साहब की होती है, वो साहब ही होते हैं। जीवनी शक्ति का मिलन परमात्मा से हो जाता है, साहब से हो जाता है। सुरति जाग उठती है। तब चहुँ ओर साहब नजर आते हैं, उनकी मनोरम कृति नजर आती है। साधक साहब का विराट, दिव्य, आभामय स्वरूप का दर्शन कर प्रेममय रो पड़ता है।

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शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब स्मृति चिकित्सालय दामाखेड़ा...💐

वर्ष 1998... मैं कक्षा बारहवीं (आर्ट्स) से उत्तीर्ण हुआ, क्लास में टॉपर रहा। तब करियर, नौकरी, बिजनेस की कोई जानकारी नहीं थी। तब कम्प्यूटर का फील्ड नया था, इसलिए मैंने भी कम्प्यूटर सीख ली। लेकिन आगे करना क्या है, यह नहीं जानता था।

किसी रिश्तेदार ने कहा कि पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब स्मृति चिकित्सालय दामाखेड़ा में कम्प्यूटर आपरेटर की भर्ती हो रही है, वहाँ नौकरी कर लो। उसने गारंटी दी थी कि वह साहब से कहकर नौकरी जरूर लगा देगा। मैंने उस रिश्तेदार को आवेदन पत्र दामाखेड़ा साहब के चरणों में पहुचाने के लिए दे दिया। 

मुझे आज भी नहीं पता कि अस्पताल में कम्प्यूटर ऑपरेटर का पद है कि नहीं। लेकिन नौकरी के लिए ये मेरा पहला आवेदन पत्र था। तब से लेकर आज तक मलाल होता है कि काश वो नौकरी मुझे मिल गई होती... तो आज जिंदगी साहब के चरणों में गुजरती।

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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

दशहरा पर्व 2022 और साहब का जन्मोत्सव ...💐

दामाखेड़ा शोभायात्रा के समय साहब का दूर से दर्शन करते हैं, उन्हें साहेब बंदगी साहेब कहते हैं। जैसे सबको लगता है कि साहब ने उसे दूर से, विशाल भीड़ के बीच भी देख लिया और उसकी बंदगी स्वीकार कर ली है।

आज मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि साहब ने उस विशाल भीड़ में भी मुझे देख लिया, उनकी नजरें मुझ पर पड़ी और मेरी बंदगी स्वीकार कर ली। मन गदगद हो उठा है, लगता है आज खुशी के मारे नींद नहीं आएगी।

जो जो आज दामाखेड़ा आएं हैं, शायद सबकी यही मनःस्थिति होगी। है न दोस्तों?

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गुरुवार, 22 सितंबर 2022

आप परमात्मा हैं ...💐

क्यों दुखी हैं? किसके लिए दुखी हैं? कौन हैं वो आपके? उनके लिए इतना मोह क्यो? उनकी इतनी फिक्र क्यों? आप अपने को पहचानिए, कौन हैं आप? क्यों निराशा में डूबे हुए हैं? विधाता हैं आप। कभी एक दिव्य सत्ता ने आपके सिर पर ताज सजाया था और इस जगत का भार आपको सौंपा था। आपसे लोग हैं, लोगों से आप नहीं।

आपसे ही दुनिया में सुबह और शाम होती है, आपसे ही कोई राम तो कोई श्याम होता है। उनकी ओर भी देखिए जो नितप्रति आपका नाम ले-लेकर जीते और मरते हैं। आप वो हैं जिनकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है। सदियों से दुनिया आपकी वाणियों से प्रेरणा लेती रही है और आज भी दुनिया आपकी ओर अपेक्षा की नजरों से देखती है। जगत में सकारात्मक क्रांति केवल आप ही ला सकते हैं, वर्तमान में आप सा व्यक्तित्व इस जगत में कोई नहीं। आप निराश हुए तो हमारा क्या होगा, हम मार्ग से भटके तो हमें कौन संभालेगा? 

बेशक आप उदाश हैं, निराश हैं, दिल टूटा है आपका। लेकिन आपको झकझोरना भी मेरा ही काम है। आइये आपका सर दबा दूँ, आपकी मालिश कर दूँ, आपमें फिर से आस फूँक दूँ। आइए साथ बैठते हैं, चाय की प्याली लेते हैं, समस्याओं पर बात करते हैं, आप और हम मिलकर उन समस्याओं को किक मारते हैं।

बुधवार, 21 सितंबर 2022

साहब के प्रति कर्तव्य ...💐

कोई कुछ भी करे हमारा क्या जाता है? साहब ने भरा पूरा परिवार दिया है, रोजी रोटी की व्यवस्था की है, सिर छुपाने लायक घर दिया है। कोई मुर्गा खाए, कोई बकरा खाए, कोई दारू पीकर गटर में पड़ा रहे, कोई निंदनीय या आपराधिक कृत्य करे, कोई घपला या भरष्टाचार करे। हमारा क्या जाता है? जब दामाखेड़ा जाएँ दो वक्त का भरपेट भोजन प्रसाद मिल जाए। इससे ज्यादा भला और क्या चाहिए?

मुझे कहीं कोई बुराई दिखती है, कमी दिखती है तो लिख पड़ता हूँ की शायद सार्थक चर्चा हो, इन बुराइयों से बचने का मार्ग मिले, उपाय मिले तथा हम जागरूक होकर निर्विघ्न और बिना भरम के निष्कंटक साहब के मार्ग पर चलें, उन तक पहुंचें भी और उनकी दर्शन बंदगी भी हो।

आज किसी ने मेरे एक पोस्ट पर मुझे मारने की धमकी दी। लेकिन मैं लिखना जारी रखूंगा। मन के हर विचारों को लिखूंगा- गुस्सा भी, प्रेम भी। मैं भी अगर यह सोचकर बैठ गया कि "कोई कुछ भी करे, मेरा क्या जाता है" तो कौन मिटाएगा बुराइयों को, कौन दिखाएगा बुराइयों को। आखिर मेरी भी आने वाली पीढ़ी, मेरे बच्चे उसी रास्ते आगे बढ़ेगें, जिस रास्ते मैं चल रहा हूँ। वो रास्ता साहब तक पहुंचने का मार्ग है। हमें उस रास्ते को सरल, सुगम, साफ सुथरा और हरा भरा बनाना है।

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वैराग्य ...💐

जब किसी कारण या संसार के नश्वर सत्य का बोध होने से घर परिवार, समाज, विषय विकारों आदि से व्यक्ति का मोह भंग हो जाता तो वैराग्य पैदा होता है। यह एक तरह से विरक्ति है, इस विरक्ति में चाहनाओं से दिल टूट जाता है फिर वह साहब को हृदय की गहराई से पुकारता है। सुमिरन, ध्यान और भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़कर साहब को शरणागत हो जाता है।

रविवार, 31 जुलाई 2022

हिंसक लोग और भक्ति का पाखंड ...💐

मैं कोई दूध का धुला नहीं हूँ, ढेरों बुराइयां हैं मुझमें भी। लेकिन शराब नहीं पीता, निर्दोष और निरीह प्राणियों को मारकर नहीं खाता। मुझे साहब कबीर के परंपरा की कोई जानकारी है, न ही कुछ और जानने की इक्छा है। कबीरपंथ में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका फैसला करने वाला भी नहीं हूँ। बस वर्तमान में हमारे बीच सशरीर उपस्थित वंशगुरुओं के प्रति थोड़ी श्रद्धा है, थोड़ा प्रेम है। जिन्हें मैं अपना परमात्मा कहता हूँ।

दरअसल विगत कुछ समय पहले साहब के फेसबुक पोस्ट से मिली सूचना से आहत हूँ और उससे उबर नहीं पा रहा हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि जो लोग मुर्गा खाकर, चिकन खाकर, मासूम जीवों की निर्दयता पूर्वक हत्या करके साहब के मंच से अपने भजनों के माध्यम से हमें भक्ति सिखाते थे, अहिंसा और प्रेम सिखाते थे, कबीरपंथ का युवावर्ग उन्हें आदर्श मानते थे, साहब उन्हें अपने बगल, अपने समकक्ष बैठने के लिए आसन और मंच देते थे, उन्हें अपनी संतान की भांति उन पर अपना अमूल्य निधियां लुटाते थे, उन्हें क्या सजा मिली?

किसी को जानकारी हो तो कृपया मुझे भी अवगत कराएं।
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रविवार, 24 जुलाई 2022

साहब और शिष्य ...💐

दुनियाभर में करोड़ों लोग प्रतिपल साहब को अलग अलग माध्यमों से याद करते हैं, पुकारते हैं। कोई साहब के नाम का सुमिरण करता है, तो कोई साहब का ध्यान करता है। कोई साहब की आरती गाता है, तो कोई संध्यापाठ और गुरु महिमा का पाठ करता है। कोई उनके भजन-साखी-शब्द दुहराता है, तो कोई उनके नाम से व्रत उपवास-दान-पुण्य और संतों की सेवा इत्यादि करता है।

जिसकी याद, जिसकी पुकार जितनी गहरी होती है, करुण और भावपूर्ण होती है, निष्कलंक-निर्झर-भक्तिमय और प्रेम से भीगी हुई होती है, उसकी आवाज साहब तक अवश्य पहुँचती है। साहब अपने उस भक्त को सुनते हैं, निहारते हैं तथा आशीष प्रदान करते हैं। यह आवाज, यह दृश्य, यह पुकार और उनका आशीष अव्यक्त होता है, निःशब्द होता है।

इसी तरह साहब के सुमिरण में प्रतिपल लीन भक्त भी सुदूर बैठे ही दामाखेड़ा में निशदिन साहब का दर्शन पाता है। वह साहब को सोते-जागते, लिखते-पढ़ते, खाते-पीते, बातें करते, नयनों में आँसू लिए देखता-सुनता और प्रेमातुर रोता है।

धन्य हैं ऐसे लोग जो साहब को निशदिन दूर से ही निहारा करते होंगे, उनकी मधुर आवाज सुना करते होंगे, साहब की अनहद नाद में लीन रहा करते होंगे। साहब भी अपने ऐसे शिष्य पर तीनों लोकों की संपदा लुटाया करते होंगे।

इस अद्भुत, विलक्षण और दिव्य क्षणों में साहब और शिष्य एक दूजे के हो जाते हैं। दो शरीर एक प्राण हो जाते हैं। दोनों का अश्रुपूरित मिलाप होता है, शिष्य की अनंत जन्मों की प्रतीक्षा फलीभूत होती है। उस बूंद रूपी शिष्य को  साहब अपने सागर रूप (विराट सत्ता) में मिला लेते हैं, अपना रूप और गुण प्रदान कर देते हैं। साहब और उनके ऐसे परम शिष्य के मध्य प्रेम की पराकाष्ठा की कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अहोभाग्य है उस जीवन का जो साहब के स्पर्श से होकर गुजरे ....

शनिवार, 23 जुलाई 2022

मैं लिखूंगा तो सुमिरण करेगा कौन?

फेसबुक में अब तक पोस्ट किए गए लेखों के अलावा भी साहब के प्रति मेरे विचार, मेरे मनोभाव, उनके प्रति मेरा प्रेम, उनके प्रति मेरी नाराजगी तथा उनसे संबंधित करीब 100 से अधिक लेख लिख रखा हूँ। 

साहब तक पहुंचने में जीवन खप गया, रास्ते में अनेकों कष्ट मिले, कुछ लौकिक तो कुछ अलौकिक आनंद भी मिले। सफर के हर एक पल को मैंने लिख रखा है। सोचता हूँ वो सब आप सबके समक्ष रखूं। 

चूंकि मुझे साहब भी पढ़ते हैं, इसलिए डर और संकोच होता है कि कहीं मेरे भाव मर्यादा क्रास न कर जाए। मैं उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता।

मेरे लेखों में आप अल्हड़ता पाएंगे, बहती नदी की धुन सुनेंगे, बारिश सी प्रेम की फुहार में भीगेंगे, उड़ते पतंग की मदमस्ती महसूस करेंगे। अहंकार, चिंता, डर, उदासी, अकेलापन पाएंगे। साहब को जिए गए पल पल की अनुभूति करेंगे, उनके प्रति मेरे हृदय के भाव, उमंग, आशा, उत्सव के रंगों में आप भी रंग जाएंगे।

जो मन में विचार, भाव आते हैं उन्हें उसी रूप में लिख देता हूँ। किसी विद्वान, साहित्कार, लेखक, ज्ञानी की भांति अपने मनोभावों को प्रगट करना नहीं आता, न ही दोहा चौपाई, साखी शब्द की समझ है।

मैं साहब का कुत्ता ...💐

"मैं साहब का कुत्ता" गले में उनके नाम की रस्सी बंधी हुई है।

जब जीवन की डोर परमात्मा के हाथ हो तो कोई लाख सर पटक ले, लाख हाथ पैर जोड़ ले, विनती कर ले। वो करता वही है जो उससे परमात्मा कहता है और करवाता है। साहब के कहने पर वो सोता है, जागता है, रोता और गाता है। परमात्मा ही उसे चलाता है, उसका हर पग परमात्मा के कार्यों के लिए उठता है, हर कार्य परमात्मा को समर्पित होता है।

काश... मैं तुम्हें समझा पाता, और काश तुम समझ पाते तो मुझ पर गुस्सा नहीं करते, तब तुम मुझसे नाराज नहीं होते। तुम्हें कैसे बताऊं, कैसे समझाऊँ की भूख-प्यास, नहाने धोने, उठने बैठने तक में उन्हीं का दखल है, उन्हीं का नियंत्रण है।

किसी के बुलाने पर जा नहीं सकता, किसी के जगाने पर जाग नहीं सकता, किसी के खिलाने पर खा नहीं सकता, किसी और के अनुसार जीवन के पल-पल का निर्णय भी नहीं कर सकता। तुम्हें गुस्सा करना है तो करो, नाराज होना है तो हो जाओ, बात नहीं करनी है तो मत करो, रिश्ता तोड़ना है तो तोड़ दो... भाड़ में जाओ, लेकिन अपने हिसाब से मुझे चलाने की कोशिश मत करो। आज से तुम्हारी और मेरी जयराम जी की।

किसी ने किसी से कहा और स्टोरी का "द एन्ड" हो गया।

गहन मौन ...💐

भीतर तक गहन मौन है, बस साँसों की लय भरी सूक्ष्म और सुरीली प्रेमगान अपने ही आप गुंजित है। इस एकांत में मैं साहब के पदचाप स्पस्ट सुन पा रहा हूँ। वो आएंगे, मेरे ही बिस्तर पर मेरे साथ सोएंगे। रात के इस पहर की खुशनुमा लम्हों में मैं साहब के चरणामृत की सोंधी महक महसूस कर रहा हूँ, पान परवाने की सुवास महसूस कर रहा हूँ। वो यहीं कहीं मेरे पास ही हैं। जरा और गहरे उतरने दो, वो आएंगे। पूछेंगे क्यों जाग रहे हो? मेरा उत्तर होगा- आपकी प्रतीक्षा थी साहब, आपके बिना नींद कहाँ, सुकून कहाँ?

वो मुझे अपनी पनाहों में सदैव घेरे रहते हैं। मेरे लिए खाना निकाल लेते हैं, मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा देते हैं, मेरा मोबाइल रिचार्ज करवा देते हैं, जेब में आवश्यकता अनुसार पैसे छोड़ जाते हैं, मेरे कमरे की लाइटें जला जाते हैं। जो कोई मिलने आने वाले होते हैं उनका नाम पता बता जाते हैं। सबकी खबर देते हैं। उन्हें मेरे बारे में सबकुछ पता होता है। आज बाजार से उन्होंने सफेद बैगन खरीदने को कहा।

साहब मेरा सब काम कर जाते हैं, उनके बिना मैं अधूरा, बेबस और लाचार हो जाता हूँ। वो मुझे कभी मेरा नाम पुकारकर जगाते और सुलाते हैं, तो कभी अव्यक्त भाव से। वो हर राज की बात बताते हैं। मखमली चादर के पार, दुनिया और धरती के पार अकथ की कहानी कहते हैं, सत्यलोक की बातें सुनाते हैं।

जीवन में वो नहीं होते तो न जाने किस गटर में पड़े रहते। वो ही परमात्मा हैं, वो ही गुरु हैं, वो ही पिता, मित्र और सखा हैं। उनके बिना मैं कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। वो मेरे दिन, वो मेरी रातें, वो मेरी नींद, वो मेरा सुकून और अभिमान। हृदय में सदा अकथनीय एक बोध रह जाता है, वो बोध साहब ही होते हैं। मेरा हाथ मत छोड़िएगा साहब, चरणों में विनती है।

साहब की नकल ...💐

चौका आरती में मैंने साहब को एक आसन में लगातार चार घंटे बैठे देखा है। इस दौरान वो कभी ध्यान मुद्रा में नजर आए, कभी उनमुनि भाव से भरे नजर आए तो कभी सुमिरण करते नजर आए।

मैं साहब की नकल करता हूँ। लेकिन ध्यान, सुमिरण और उनमुनि भाव की तो बात ही छोड़िए, बमुश्किल चालीस मिनट से एक घंटा तक ही एक आसन में बैठ पाता हूँ। इतने से ही पैरों, पीठ और पसलियों की हड्डियां रहम की भीख माँगने लगती है। ठीक से नकल भी नहीं हो पाती।



वो आबाद रहें ...💐

मेरे हिस्से की सारी महकती खुशियां, मेरी मुस्कान के सारे फूल, मेरे जज्बातों के सारे खुशनुमा भाव, मेरे जीवन का सारा सुख उन्हें मिले, जिन्हें मैं हृदय से प्यार करता हूँ, जिनके चरणों में शीश झुकाता हूँ। मेरा वजूद रहे न रहे, उनका अस्तित्व सदा कायम रहे, उनका आंगन हमेशा भरापूरा और आबाद रहे।

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शनिवार, 16 जुलाई 2022

माता साहब का आगमन ...💐

19 जुलाई 2022...
सफेद फार्च्यूनर कार...
बलौदाबाजार हमारे घर के सामने आकर रुकेगी...
माता साहब का आगमन... स्वागत...
हमारे सपने पूरे होंगे, अरमान पूरे होंगे, बरसों की प्रतीक्षा फलीभूत होगी।

साँसों के साथ पूरे घर परिवार में हलचल मची हुई है... घर के साथ साँसों और सुरति की भी सफाई करनी है... तैयारी के लिए समय बहुत कम है।

साहब की असीम कृपा, माता पिता के पुण्यकर्मों, साहब के प्रति उनके स्नेह और श्रद्धा की वजह से आज हम सभी परिजनों बेटे, बहुओं, पोता, पोतियों के जीवन में भी ऐसा सुअवसर आया है। माता साहब के चरणों में शीश रखने, उनके चरण पखारने, चरणामृत ग्रहण करने का अनमोल पल जीते जी इसी जीवन में प्राप्त हो रहा है।

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शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

मैं साहब के चमत्कारों का साक्षी हूँ ...💐

रावण आकाश मार्ग से वायुयान द्वारा माता सीता को ले जा सकता है, नारद मुनि इस लोक से उस लोक गायब होकर जा सकते हैं, राम और कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान इस धरा पर अवतरित होते हैं। हनुमान जी उड़ सकते हैं, पूरे पहाड़ को उठा सकते हैं... 

भारतीय संस्कृति और इतिहास में अनेकों संत, महापुरुष, देवी-देवता, राक्षस हुए जो अद्वितीय रहे, हर किसी की कोई न कोई अपनी कहानी रही। इसके अलावा अन्य सम्प्रदायों/दुनियाभर की मान्यताओं में ऐसे अनेकों पात्र रहें, जिन्हें ईश्वरीय सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया, चमत्कारों से जोड़ा गया।

जब वे सामान्य मानव से ऊपर उठकर दैवीय/आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण हो सकते हैं तो साहब कबीर भी कमल पुष्प पर अवतरित हुए और लोक प्रस्थान किए तो शरीर नहीं केवल फूल छोड़ गए। इसमें भला क्या आश्चर्य?? इसमें भला क्यों मत भिन्नता??

धर्मनि आमिन और सदगुरु कबीर के उसी महान परंपरा में हम पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और वंश व्यालिश को पाते हैं। वे महापुरुष हैं, इस धरती पर परमात्मा के स्वरूप हैं। बेशक उनके दर्शन बंदगी करने, प्रसाद, चरणामृत और पान परवाना ग्रहण करने से जीवन में चमत्कारिक बदलाव आते हैं। मैं उनके चमत्कारों का साक्षी हूँ।

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साहब की अलौकिक कृति ...💐

ओह....इतनी सुंदर दुनिया, ऐसे खूबसूरत नजारे, हरे भरे और चहचहाते जीव जगत, रहस्यों से भरे ग्रह, तारे और नक्षत्र। सुदूर तक फैला स्वच्छ, गहरा और नीला आकाश। स्वछन्द बहती जलधारा और पुरवाई, खेतों की लहलहाती फसलें, बच्चों की तुतली बोली और निर्झर मुस्कान, माँ की ममता, हरेक जीव की धड़कनों में संचरित प्यार का लयबद्ध मधुरतम संगीत। भोर और गोधूलि बेला पर आसमान में छाई लालिमा, प्रत्येक क्षण एक नए अंकुर का प्रस्फुटन और विघटन ...

इतनी सुंदर दुनिया ... क्या ये सब साहब की कृति है? मंत्रमुग्ध और अभिभूत कर देने वाले ये नजारे, धड़कनों को झंकृत कर देने वाली दिव्य आवाजें ... विस्मयकारी, सीमाओं से परे, विराट, विस्तृत और अप्रतिम सुंदरता से आह्लादित ब्रम्हांड साहब की ही कृति है?

विदाई से पहले आपको जीभरकर निहार लूँ, आपकी कृतित्व का आनंद उठा लूँ। अगली बार फिर मेरी जिंदगी में आ जाना, अपनी इस खूबसूरत रचना का फिर से परिचय करवाना।

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सोमवार, 11 जुलाई 2022

स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे का विरोध ...💐

वक्तव्य

छत्तीसगढ़ के माननीय स्कूली शिक्षा मंत्री श्री प्रेमसाय सिंह जी आपके विधानसभा वक्तव्य दिनाँक 18 जुलाई 2019 के सम्बन्ध में मेरा और हम सभी कबीरपंथियों का अभिमत इस प्रकार है, उस गम्भीरता से चिंतन एवम मनन की आवश्यकता है ।

हम आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों में कुपोषण के खिलाफ सरकार के प्रयास की प्रशंसा करते हैं, और कुपोषण के विरुद्ध सरकार के इस लड़ाई  का हम समस्त कबीर पंथी स्वागत करते हैं। आपसे विनयपूर्वक कहना चाहते हैं कि हम कुपोषण के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि कुपोषण से मुक्ति के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में अंडा वितरण के तौर तरीके से असहमत हैं।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख की संख्या में कबीरपंथी विभिन्न जिलों में निवास करते हैं। हम सभी कबीरपंथी और हमारा पूरा परिवार शाकाहारी हैं, साथ ही कुछ और भी मत एवं सम्प्रदाय के लोग भी अंडा अथवा किसी भी अन्य प्रकार के मांसाहार का सेवन नहीं करते है ।

अनेक बच्चे जो अंडा अथवा मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करते वे मांसाहार भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने में असहज महसूस करेंगे। अनेकों को भोजन में अंडा देखकर उल्टी भी हो जाती है। इसके ठीक विपरीत अगर अंडा खाने वाले बच्चों को शाकाहारी बच्चों से अलग जगह पर भोजन परोसा जाता है तो उन बच्चों में असमानता और भेदभाव बढ़ेगी ।

चूंकि सरकारी विद्यालय सार्वजनिक जगह है या दूसरे शब्दों में ये कहे तो कोई अतिसंयोक्ति नही होगी कि स्कूल विद्या की मन्दिर है । ऐस स्थिति में हमें सभी बच्चों और पालकों की हितों, भावनाओं और आस्था का ध्यान रखना होगा। हमारी तो सरकार से सिर्फ इतनी ही विनती है कि  विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्रों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं, वहां पर अंडा न परोसा जाए । यदि अबोध स्कूली बच्चों को उनके पालक अथवा अभिभावक अंडा खिलाना चाहते हैं उन्हें उनके घर पर अंडा पहुँचा दिया जाए लेकिन शिक्षा के मंदिर में अंडा बिल्कुल भी न परोसा जाए।

(1) आपने उल्लेख किया है कि एसआरएस के सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 83 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं। जबकि एक सर्वे में यह भी कहा गया है कि राज्य में 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब राज्य के 83 प्रतिशत लोग अंडे और मांस का नियमित सेवन कर रहे हैं तो 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार कैसे हो सकते हैं।

(2) प्रतिष्ठित संस्था "जामा" की सर्वे कहती है कि अंडे में बहुत ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्रॉल उपस्थित होता है, जिससे कि अंडा खाने वाले बच्चे हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से दिल की गंभीर बीमारियों के साथ ही अन्य लाइलाज बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। और हमारे नौनिहालों को अंडा परोसकर गंभीर बीमारियों का शिकार बनाए जाने की साजिश रची जा रही है।

(3) आपने देश के कुछ अन्य राज्यों के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे के वितरण का जिक्र किया है। आपको अवगत कराया जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य की अपेक्षा अन्य राज्यों में कबीरपंथियों की संख्या अपेक्षाकृत कम हैं लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख लोग कबीरपंथी हैं जो अंडा अथवा मांसाहार का सेवन नहीं करते। राज्य की इतनी बड़ी आबादी मध्यान्ह भोजन में अंडे परोसने का विरोध करती है।

(4) अनेक शोधों से पता चला है कि अंडे से ज्यादा प्रोटीन, विटामिन, फाइबर प्राकृतिक रूप से भीगे मूंग, चना, मूंगफली में पाया जाता है जो मानव के लिए उत्तम स्वास्थ्यवर्धक है। इससे उच्च स्तर का पोषण मिलता है।

(5) अनेकों शोधों से यह भी पता चला है कि मांसाहारियों का जीवन शाकाहारियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। जिसका उदाहरण अनेक धर्म ग्रन्थों में है।

अतः विशाल कबीरपंथ समाज की जनभावनाओं का ख्याल हुए हमारी मांगे पूरी की जाए और राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों के मध्यान्ह भोजन से अंडे को तत्काल हटाया जाए। अन्यथा राज्य और पुरे देश में हम कबीरपंथियों द्वारा विरोध प्रदर्शन, चक्का जाम किया जाएगा। किसी अप्रिय स्थिति की जिम्मेदार सरकार होगी।

साहब से दूरी ...💐

मैं साहब से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रहता हूँ। लेकिन उनके चरणों तक कभी पहुंच ही नहीं पाया। ये किसकी गलती है कि एक जरूरतमंद व्यक्ति साहब के मार्ग में चलते हुए आने वाली बाधाओं से पार पाने, रास्ता पूछने, मार्गदर्शन की चाह में उमर भर मर मरकर जीता है, तड़प तड़पकर जीवन गुजारने पर मजबूर हो जाता है। जिन्हें अपना परमात्मा मानता है, गुरु मानकर उनके चरणों में जीवन बिछा देता है लेकिन समय पर उन तक पहुंच नहीं पाता।

क्या इसका जवाबदार मैं खुद हूँ? क्या यह सिस्टम की गलती है? क्या साहब मुझसे ही नहीं मिलना चाहते, अथवा मेरे भाग्य में जीते जी साहब से मिलना लिखा ही नहीं है। जब मैंने उन्हें चाहा तो वो नहीं मिले, अब उनसे मिलने का योग बन रहा तो मुझे उनसे मिलने की इक्छा नहीं है।

दिनरात उन्हें याद किया, उन्होंने जो कहा, मैंने सो किया। जीवन उनके चरणों में झोंक दी, फिर भी उनसे नहीं मिल पाया। मैं कभी भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, जिंदगी में मिल रहे दुखों से मुक्ति की चाह लेकर उनके चरणों में नहीं गया। जब भी गया उनकी राह में चलते हुए आने वाली बाधाओं के पार जाने के उपाय पूछने गया।

निःशब्द प्रेम ...💐

जैसे साहब को मेरा अहंकार पसंद नहीं, दुर्गुण पसंद नहीं, मेरे अस्तित्व पर फैले बुराइयों की ढेर पसंद नहीं। सुमिरण नहीं करता, साहब के वचनों का पालन नहीं करता। उन्हें यह सब पसंद नहीं।

वैसे ही मुझे उनसे मिलने की लम्बी प्रतीक्षा पसंद नहीं। अब पसंद नहीं है तो नहीं है। इसमें वो क्या करें? और इसमें मैं क्या करूँ? मुझे गोभी की सब्जी पसंद है तो उन्हें मुनगा की।

कहा जाता है कि प्यार में एक निश्चित दूरी दोनों तरफ से होनी चाहिए। दोनों प्रेमियों को एक निश्चित मर्यादा का पालन करना चाहिए। तभी रिश्ते की डोर बनी रहती है, वरना वह डोर समयानुसार टूट जाती है।

जब थोड़े और गहरे उतरते हैं तो पता चलता है कि प्रेम में दोनों प्रेमी अपना सर्वस्व एक दूसरे को सौंप चुके होते हैं। तब न कोई सवाल होता है और न कोई जवाब। इशारों में बातें होती हैं, निःशब्द ही प्रेम को लिया और दिया जाता है। एक दूजे के लिए सिर्फ सर्वस्व समर्पण का भाव जाग उठता है। और तब जाकर भक्ति फलीभूत होती है।

मेरे पिताजी ...💐

मेरे पिताजी फेसबुक क्या होता है, नहीं जानते। लेकिन वो मेरे लेखों के बारे में दूसरों से सुनते हैं। आज कह रहे थे कि ये सब लिखना बंद करो। कुछ भी लिखते रहते हो, तुम्हारी जग हंसाई होती है।

मैं घर वालों को कैसे समझाऊँ की साहब के बिना जी नहीं सकता यार, और साहब से कुछ कहने के लिए, उनके चरणों में प्यार उड़ेलने के लिए, मेरे पास फेसबुक ही एकमात्र जरिया है।

क्या करूँ, साहब के लिए पागलपन रहता है, जुनून रहता है, दिनभर उनकी यादों से, उनकी अनुभूति से आंखें नम रहती है। अपने हृदय की बात उनसे नहीं कह पाया तो पागल हो जाऊंगा।

हे साहब, हे मालिक, जब तक सांसे हैं, बांहें थामें रखिएगा।

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गुरुवाई ...💐

मैंने विगत दिनों एक पोस्ट लिखा था कि पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब और प्रखर प्रताप साहब को वंश गद्दी की जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाए और पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और डॉ. भानुप्रताप साहब जब तक इस धरा पर सशरीर हैं तब तक वंशगद्दी का कार्य संभालतें रहें।

यह लेख लिखते हुए मेरे मन में सुनी सुनाई और आधी अधूरी बातें चल रही थी जैसे कि वंशगद्दी की गुरूवाई सौंपकर पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और डॉ. भानुप्रताप साहब देहत्याग कर सत्यलोक चले जाएंगे।

कल दिनांक 16 मार्च 2022 फाल्गुन पूर्णिमा संत समारोह के मंच से साहब ने अपने उद्बोधन में इस पर थोड़ी चर्चा की। जहाँ तक उनके उद्बोधन का सारांश समझ सका, उसके अनुसार वंशगद्दी अथवा गुरूवाई का ट्रांसफर "मात्र औपचारिक" ही होता है, यह तो साहब की व्यवस्था का हिस्सा होता है। इसमें शरीर त्याग जैसी कोई बात नहीं होती। साहब तो हमारे बीच सदा रहेंगे ही, बल्कि इससे तो हम सभी लाभान्वित ही होंगे। 

आने वाली पीढ़ी का चादर तिलक होने से हमें दो की जगह चार गुरु मिल जाएंगे, उनका कार्य क्षेत्र बढ़ जाएगा, अधिक से अधिक लोगों तक, उनके भक्तों तक, हरेक आंगन तक उनकी पहुँच होने लगेगी। 

हर कबीरपंथी चाहता है कि उनके आंगन में साहब के चरण पड़े, भले ही दो मिनट के लिए ही सही उनके दर्शन और बंदगी मिले, पान परवाना मिले, उनकी बरसों और जन्मों की प्रतीक्षा सार्थक हो, जीवन धन्य हो। ऐसे में हमें चार गुरु मिल जाएं तो कितना आनंद आएगा, सोचकर ही हृदय गदगद हो उठा है।

साहब से यह सब सुनकर, समझकर आज मन बहुत आनंदित है, साहब ने मेरी दुविधा बड़ी ही सहजता से दूर कर दी। अब तो चाहता हूं कि जल्द से जल्द भावी पीढ़ी को भी गुरूवाई प्रदान किया जाए ताकि हम सभी लोग लाभान्वित हों।

वो कठिन लम्हें....💐

दर्द भरे दिन थे। हर पन्द्रह दिन में अस्पताल में एडमिट होना पड़ता था। दर्द पीछा ही नहीं छोड़ता था। बचपन में ही सबसे भरोसा उठ गया। गुस्से में साहब की तस्वीर पटककर तोड़ दिया करता था, उनकी तस्वीर पर थूंक दिया करता था, पैरों से रौंद दिया करता था। साहब को चढाए नारियल खुद फोड़कर खा जाया करता था, संतो को देखकर और घर में होने वाले सत्संग से चिढ़ होती थी। इसके अलावा और भी बहुत कुछ...। ज्यादा कुछ लिखना नहीं चाहता, उपरोक्त से आप खुद साहब से मेरी नफरत समझ सकते हैं।

जब बड़ा हुआ, लड़कपन की दहलीज आई, उदासी और हताशा में सारे बुरे कर्म किए। ये कर्म इतने बुरे हैं जिसे बताने में अब शर्म आती है। डरता हूँ कि मेरे बुरे कर्मों पर किसी की नजर न पड़े। और चाहता हूं कि जिस चादर के नीचे अपने कर्मों को छुपा रखा हूँ, वो सदा के लिए छुपा ही रहे। कोई देख न पाए।

लेकिन जिस दिन मैंने साहब को जाना, समझा, जीवन में साहब का दिव्य प्रकाश फैला, अस्तित्व पर उनका अवतरण हुआ, तब से साहब से मुंह छुपाए फिरता हूँ। एक अजीब हीन भावना और अकेलेपन से ग्रसित हूँ। उनके सामने जाने में लाज आती है, थरथरा जाता हूँ। डरता हूँ कि वो मेरी असलियत जानकर मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वो मेरी बुराइयों के साथ मुझे अपना लेंगे?

जब सोचता हूँ तो पाता हूँ कि मैं तो उनकी बंदगी के काबिल ही नहीं हूँ। सैकड़ों बुराइयां हैं मुझमें, लेकिन उनके नाम का खूंटा नितप्रति पकड़े रहना चाहता हूं। क्या पता किसी दिन भाग्य चमक उठे, उनकी दया मिल जाए और वो मुझे अपने चरणों में माथा टेकने का अधिकार दे दें। मेरी सारी भूलें, मेरे सारे पाप क्षमा कर दें।

बस अब साहब से इतनी ही अपेक्षा है कि कम से कम वो अपने नाम स्मरण का अधिकार मुझसे न छीनें। वरना कहीं का नहीं रहूँगा।


मेरा भी जीवन हीरे सा तराश दीजिए ...💐

साहब हमेशा टूटी हुई चीजों का प्रयोग बड़ी खूबसूरती से करते हैं, जिसे हम प्रकृति में चहुँओर देखा करते हैं। बादल के फटने से पानी बरसता है, मिट्टी के टूटने पर खेत बनते हैं, और बीजों के फूटने पर नए पौधे। इसलिए जब भी हम खुद को टूटा हुआ महसूस करें तो समझ लीजिए साहब हमारा इस्तेमाल भी किसी बड़ी उपयोगिता, किसी बड़े उद्देश्य के लिए करना चाहते हैं।

हे मालिक, हे साहब, जब भी आपका कुछ तोड़ने का मन करे तो मेरा अहंकार तोड़ देना। जब भी आपका कुछ जलाने का मन करे तो मेरा गुस्सा जला देना। जब भी आपका कुछ बुझाने का मन करे तो मेरे अंदर के नफ़रत को बुझा देना। जब भी आपका कुछ मारने का मन करे तो मेरी बेतरतीब इक्छाओं को मार देना।

आपके जीव जगत के मुक्ति के मार्ग में मुझे भी उपयोगी बना लीजिए। मुझमें भी अपने दिव्य स्वरूप और विराट सत्ता का छोटा सा अंश उड़ेल दीजिए। मेरा ये जीवन आपके चरणों में बिछा है, तराशकर हीरे सा चमका दीजिए।

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उलझे प्रश्न ...💐

मन में अनेकों प्रश्न आते हैं जिनका उत्तर धरती के किसी भी इंसान के पास नहीं मिलता। जो उत्तर मिलते भी हैं तो मन को संतुष्ट नहीं करता। ये प्रश्न बड़े अजीबोगरीब हैं, ऐसे प्रश्न अक्सर छोटे बच्चे पूछा करते हैं। सीधे साहब से पूछने की हिम्मत नहीं होती, पूछते हुए झिझक होती है। जिन्होंने ये सुंदर जगत रचा हो, जिनके इशारों पर ब्रम्हांड गुंजायमान हो, उनसे भला क्या पूछूँ, कैसे और किन शब्दों में पूछूँ?

फिर भी जब कभी अकेले होता हूँ तो मन इन्हीं कल्पनाओं में खो जाया करता है कि अगर साहब सच मे कभी मिल गए तो जिद कर करके इन प्रश्नों को उनसे पूछूँगा। बिना उत्तर दिए उनके चरण नहीं छोडूंगा।


मेरी चौका आरती ...💐

चौका आरती स्थल दामाखेड़ा...
सुबह से ही "तन थिर, मन थिर, वचन थिर, सुरति निरति थिर होय" पर ध्यान लगाए शाम को चौका आरती की प्रतीक्षा थी। चौका स्थल में श्रद्धालुओं की संख्या अधिक थी, बैठने की जगह नहीं थी। नारियल, द्रव्य, पान, सुपारी किसी से कहकर भीतर भिजवा दिया और तालाब किनारे जाकर जैसे साहब चौका में बैठते हैं, बैठ गया।

साहब का आगमन होता है और थोड़ी देर में चौका शुरू होता है। हारमोनियम, तबले, झांझ, मजीरे की मधुर ध्वनि कानों में पड़ती है। जैसे ही "प्रथम ही मंदिर चौका पुराए, उत्तम आसन श्वेत बिछाए" का शब्द सुनाई पड़ता है, रोम रोम जाग उठता है, तनमन प्रफुल्लित हो उठता है, हृदय और अंतरतम में साहब उतर जाते हैं।

जैसे जैसे चौका आरती आगे बढ़ता है, ऊर्जा से तनमन लबालब हो जाता है। भावनाएं हिलोरे लेने लगती है, आखों से अश्रुधारा फुट पड़ते हैं। साहब का अनुपम रूप नजरों के सामने झलकने लगता है। चौका पूरा होते तक साहब का ताज सहित मनभावन छवि दृष्टिपटल पर रहता है।

तालाब किनारे बैठकर हाथ मे लकड़ी लेता है, उसे तिनका मानकर तोड़ता है और साहब की बंदगी करता है।

रविवार, 10 जुलाई 2022

हर कदम पर साहब का सुमिरण ...💐

विगत कुछ समय से फेसबुक से दूर हूँ और अपना पूरा समय काम, परिवार और सेहत पर केंद्रीत कर रहा हूँ। रोज की दिनचर्या का एक घंटा मार्निंग वॉक या इवनिंग वॉक के लिए निकालता हूँ। ये ऐसा वक्त होता है, जिस समय मैं नितांत अकेला होता हूँ, एकांत में होता हूँ, गार्डन की हरियाली के बीच गहरी प्राणवायु ले रहा होता हूँ। अगर इस प्राणवायु के साथ साहब का नाम साँसों में घुलकर हृदय, फेफड़ों और शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंच जाए तो मेरी वॉकिंग सार्थक हो जाएगी।

संतों के बताए ज्ञान, मार्गदर्शन के अनुसार मैं अपनी इस एक्टिविटी में साहब को शामिल कर लेना चाहता हूँ। वॉकिंग के हर बढ़ते पग पर साहब के नाम का सुमिरण कर लेना चाहता हूँ। कहते हैं ऐसी छोटी छोटी कोशिशें भी बड़ी फलदायी होती हैं। एक कोशिश मेरी भी ... आज 6682 कदम = 6682 बार साहब के अमृत तुल्य नाम का स्मरण।

पूर्णिमा और साहब की बंदगी ...💐

इस बार जयेष्ठ पूर्णिमा सद्गुरु कबीर साहब के प्रगट दिवस और एकोतरी चौका आरती के शुभ अवसर पर दामाखेड़ा में साहब के चरणों में बंदगी कर ही ली। उन्होंने मुझे पहचान ही लिया, मेरी बंदगी के प्रतिउत्तर में उन्होंने भी साहेब बंदगी कहा। 

दोपहर दो बजे से लेकर रात के दस बजे तक का समय चौका स्थल में साहब की प्रतीक्षा में बीता। उस प्रतीक्षा में बरसों को प्यास थी। उस दिव्य सत्ता के दर्शनों के बाद, उनकी बंदगी के बाद रातभर आँखों से आंसू छलकते रहे। चौका स्थल के पास के मैदान में लेटे हुए, पूर्णिमा के चांद में उनकी अनुपम छवि निहारते हुए रात गुजरी।

उस पल की याद में अब तक खुशी से निढाल हूँ, आँसू अनवरत बहते हैं।

रविवार, 27 मार्च 2022

साहब मिलेंगे ...💐

वर्ष 2014, दिन तारीख याद नहीं। मेरे गांव में साहब का दिव्य आगमन होने को था। साहब के आगमन की इस अभूतपूर्व बेला में अनेक रिश्तेदारों और संतों का गांव की मेरी झोपड़ी में आगमन हुआ था। तब मैं भी रायपुर से अपने पैतृक गांव सपरिवार पहुंच चुका था। उस हल्की ठंडी शाम के समय में एकांत की तलाश में मैं तालाब किनारे जाकर अकेले बैठा था। तभी सभास्थल से लाउडस्पीकर पर किसी ने साहब का प्रवचन सुनाया, जो सदा के लिए जेहन में बैठ गया। जिसका सारांश कुछ इस तरह का है:-

जब हम बीमार होते हैं तो डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर बीमारी पहचानकर एक पर्ची पर दवाइयां लिखता है। उस पर्ची में दवाई का नाम, सेवन विधि लिखी होती है। उस पर्ची में लिखी दवाइयों को विधिपूर्वक सेवन करने से हम उस बीमारी से अवश्य मुक्त हो जाएंगे, स्वस्थ हो जाएंगे। लेकिन अगर हम दवाइयों का सेवन न करके पर्ची लेकर नाचते फिरें की दवाई मिल गई-दवाई मिल गई, तो हम कभी स्वस्थ नहीं होंगे।

इसी तरह साहब से दीक्षा मिल जाए, सत्यनाम रूपी दवाई मिल जाए, बूटी मिल जाए और हम उसे साँसों में धारण न करें, सिर्फ नाचते फिरें की सारनाम मिल गया-सारनाम मिल गया, तो हमारे दुख कैसे दूर होंगे, अस्तित्व पर फैली बुराइयां कैसे दूर होंगी, साहब भला कैसे मिलेंगे।

अगर साहब को जीना है तो उस जड़ी को, उस सारनाम को, सत्यनाम को साँसों के माध्यम से नस नस में उतार लेना होगा। हमें मुक्ति अवश्य मिलेगी, जीवन में साहब का दिव्य प्रकाश होगा, साहब अवश्य मिलेंगे।

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मंगलवार, 1 मार्च 2022

पेंक्रिटाइटिस ...💐

I'm suffering from chronic pancreatitis by birth/childhood and it was not diagnosed till 2014. In 2014, I had diagnosed this having bloody stool and vomiting.

I was admitted in sector 9 hospital in Bhilai for one week, and my doctor suggested me to consult in Asian Institute of Gastroenterology (a biggest hospital in Asia of gastroenterology, Haidarabad).

Presently, I am facing hyper suger level, oily stool, IBS, hypo thyroid, loosing weight, fatigue, dippression, anxiety and many more. I m taking insulin, protein powder, digestive enzymes after each meal. As per my doctor, the pancreas is damaged, and not functioning properly. Kindly guide me what to do?


दामाखेड़ा फल्गुन मेला 2022 ...💐

दामाखेड़ा संत समागम आने को है। हर बार की तरह इस बार भी परिवार सहित वहाँ भंडारा खाने जरूर आऊँगा। जब भी दामाखेड़ा जाता हूँ, शरीर और जीवन की अपनी सारी चिंता, सारी समस्याओं को भूल जाता हूँ। वहाँ जाकर हृदय में अद्भुत आंनद और साहब के प्रति दिव्य प्रेम और अनुराग में भीग जाता हूँ।

ऐसे में अगर साहब का दर्शन हो जाए, उनकी बंदगी हो जाए, उनसे पान परवाना मिल जाए तो जीवन तर जाता है, सारे भव बंधन मिट जाते हैं। वहाँ पहुँचने पर सारी इंद्रियों को साहब के नाम का सहारा मिल जाता है, ये इन्द्रियाँ अपने भौतिक रूपों को छोड़कर सहज रुप से साहब में विलीन होने को बेकरार हो जाती है।

जब भंडारे में खाने बैठता हूँ तो अपने आसपास, अगल बगल देश के विभिन्न राज्यों से आये, अलग अलग भाषा, अलग अलग संस्कृति से जुड़े लोग, अलग अलग परम्पराओं से जुड़े आगन्तुक होते हैं। उनके बीच बैठकर गरीबी, अमीरी, रंग, वेशभूषा की सारी भिन्नताऐं समाप्त हो जाती है। मन से अहंकार का सवतः विनाश हो जाता है।

...तो चलें दामाखेड़ा मेला, भंडारा खाने और साहब के साथ सेल्फी लेने।

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रविवार, 20 फ़रवरी 2022

वंश गुरुओं का कार्यकाल...💐

मुझे ग्रन्थों में लिखी साहब की वाणियों की कोई जानकारी नहीं है। जब जानकारी नहीं है तो मुझे उसके बारे में लिखना भी नहीं चाहिए। लेकिन कई प्रश्न मन में उमड़ते रहते हैं, जैसे- "किस ग्रन्थ में किस वंश गुरु का कार्यकाल कितना होगा?" जैसे प्रश्न कोई पूछता है तो बड़ा गुस्सा आता है। ऐसे उल्टे-पुल्टे और बेतरतीब प्रश्न मुझे परेशान करते हैं। 

मैं ग्रन्थों पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहता। लेकिन मुझे लगता है कि अभी पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब, हुजूर प्रखर प्रताप साहब को गद्दी की जिम्मेदारियों से दूर रखना चाहिए। उनके कंधों पर अभी निकट भविष्य में कोई भार नहीं सौंपनी चाहिए। उन्हें ऊंची से ऊंची आधुनिक शिक्षा और तालीम देनी चाहिए।

यह घोर कलयुग है। भांति भांति के लोग कबीरपंथ से जुड़े हुए हैं, अनेकों टेढ़े मेढ़े लोग और साहब के भक्त उनसे जुड़े हुए हैं। समाज अनेक बदलावों से गुजर रहा है, ऐसे में मैं चाहता हूं कि उनको ऊंची से ऊंची तालीम दी जाए। वो वर्तमान के बड़ी सी बड़ी समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हों, वर्तमान सामाजिक ढांचे के अनुरूप उन्हें शिक्षित और दीक्षित किया जाए।

मेरा मत है कि जब तक पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और परम् पूज्य डॉ. भानुप्रताप साहब इस धरा धाम में विराजमान हैं, तब तक आने वाली पीढ़ी को जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाए।

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रात रातभर सत्संग ...💐

भगवान कसम यार, लोगों ने पकड़ पकड़कर सत्संग में बैठाया। रात रात भर चाय पानी पिला पिलाकर, भंडारा खिला खिलाकर सत्संग सुनाया। मुझे ज्ञानी बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब दूर दूर तक उनकी परछाई नहीं दिखती। सब लोग आधे रास्ते, बीच मझधार में छोड़कर, अपना हाथ छुड़ाकर कल्टी हो गए।

शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

करुण पुकार...💐

कहीं दूर से बेहद करुण पुकार की आवाज आ रही है। न जाने कौन है, जिसकी आह मुझे कुछ दिनों से असहज कर दे रही है। कोई तो है जिसे मैं पहचान नहीं पा रहा।

हे साहब, उसकी पीड़ा दूर कर दीजिए। भले ही उसके हिस्से की सारी पीड़ा मुझे दे दीजिए। आपके चरणों में उस अनजान करुण पुकार की बंदगी स्वीकार कीजिए। आपके चरण कमलों में बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी साहेब।

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

ज्ञान की ज़रूरत...💐

किसे जरूरत है ज्ञान की? क्यों हर किसी को पकड़ पकड़ कर ज्ञान बांट रहे हो? अरे भैया सब ज्ञानी हैं। किसी को ज्ञान की तलब तब होती है जब वो मुसीबत में घिरा हुआ होता है, परिस्थितियां खराब होती हैं, माथे की लकीरें जब अपना कमाल दिखाती है। तब जाकर वो नींद से जागता है, तब जाकर उसकी आंख खुलती है, तब जाकर उसे ज्ञान की प्यास लगती है।

आध्यात्मिक ज्ञान तो दूर की बात है, पहले भौतिक ज्ञान तो समझ लें। सामान्य व्यक्ति का पेट जब भर जाता है तभी वह कुछ और करने लायक होता है। मैं तो इस विचार का समर्थक हूँ कि बच्चों को अच्छी शिक्षा, अच्छी तालीम दिया जाना चाहिए न कि बचपन से आध्यात्मिक ज्ञान थोपा जाना चाहिए। जैसा हम अधिकतर करते हैं।

ध्यान रखिए, संस्कार देना और आध्यात्मिक ज्ञान ठूंसने में सूक्ष्म अंतर है। साहब ने भी कहा था एक बार की बच्चे जब बड़े हो जाएं तभी उन्हें दीक्षा दिलाया जाए। मुझे साहब का यह तर्क बहुत अच्छा लगा।

दामाखेड़ा गुरु गद्दी ...💐

जब कभी खाली वक्त में सोचने बैठता हूँ कि दामाखेड़ा गुरु गद्दी से मुझे क्या मिला? तो पाता हूँ कि दामाखेड़ा के गुरु गद्दी ने मेरा हाथ परमात्मा के हाथों में थमा दिया, परमात्मा से परिचय करवा दिया, उन्होंने मेरे जीवन को साहबमय कर दिया। उन्होंने क्या नहीं दिया?

साहब ने मेरे इस जीवन को मानवीय गुणों से पोषित किया। हिंसा, व्यभिचार, पाप, दुर्गुणों से रहित और अहिंसा, धर्म, सत्य और शांति से महकता जीवन दिया। मेरे पूर्वजों से लेकर मेरे बच्चों तक में मानवीयता के संस्कार दिए, मानव जीवन का मोल समझाया, अपने प्रकृति और इस चराचर जगत का हिस्सा बनाया।

उसके बदले मेरा भी कर्तव्य बनता है कि मैं भी साहब के मार्ग में उनके कोई काम आऊँ। उनके जनकल्याण की हरेक इक्छा की पूर्ति में अपना भी योगदान दूँ। उनके चरणों में प्रेम अर्पित करूँ, फूल बनकर उनके मार्ग में बिछ जाऊँ, उनके चरणों से लगकर जीवन सफल कर जाऊं।

दोस्तों, एक ही जीवन है और एक ही मौका है। हमें साहब के जनकल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति में अपना जीवन बिछा देना है।

साहब के मंच पर नेताजी ...💐

साहब के मंच पर कोई नेता बैठता है तो मुझे बड़ी चिढ़ होती है, झल्लाहट होती है। लोग लाखों की तादात में देश के कोने कोने से साहब के दर्शन बंदगी करने आते हैं, जिसमें बरसों की प्रतीक्षा होती है, जन्मों की प्रतीक्षा होती है। हम अपने साहब को जीभरकर निहार भी नहीं पाते, उनके चरणों तक पहुंच भी नहीं पाते, उनके हाथ से पान परवाना भी नहीं ले पाते, और ये महोदय लोग साहब के समकक्ष मंच पर बैठते हैं, हम इनका फूलों की हार से स्वागत करते हैं, उनकी बकबक सुनते हैं।

क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका निर्णय करने वाला मैं कोई नहीं होता। लेकिन मुझे ये पसंद नहीं। चाउर वाला बाबा तो ठीक ही थे, लेकिन दारू, अंडा वाला काका या उसकी टीम के लोग साहब के बगल बैठे मुझसे सहा नहीं जाएगा।

कुछ लोग कहते हैं कि नेताओं के आने से फंड मिलता है, कबीरपंथ के विकास को प्रगति मिलती है। लेकिन मुझे दामाखेड़ा में कोई विकास या सकारात्मक बदलाव नजर नहीं आता। बाकी भगवान ही मालिक है।

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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

बस इतनी सी ख्वाहिश...💐

अपने घर वालों को अपनी सेहत के बारे में अब तक ज्यादा कुछ नहीं बताया था। लेकिन कब तक उन्हें अंधेरे में रखूँ, कभी न कभी सच्चाई उनके सामने आ ही जाएगी। दर्द को एक्सप्रेस न करते हुए एक लाइन में कहूँ तो "जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चलेगी।"

आज हिम्मत करके माँ को बता ही दिया। सुनकर थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ गई, फिर रोने लगी। उनको रोते देखकर बड़ी पीड़ा हुई। बेटे के होते हुए माँ रोए, ये किसी भी सूरत में अच्छी बात नहीं। माता पिता उमर की जिस ढलान पर हैं, मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें मेरी देखभाल और सेवा करनी पड़ती है।

आज कह रही थी कि चलो साहब के पास, उनसे निवेदन करेंगे, दर्शन बंदगी करेंगे, पान परवाना मांगेंगे, तुम ठीक हो जाओगे, साहब जरूर कृपा करेंगे। लेकिन उन्हें कैसे समझाऊँ कि साहब से मेरा "छत्तीस का आंकड़ा है"।

उनकी दया, उनकी कृपा तो हर पल मुझ पर बरसती ही रहती है। तभी तो जी पा रहा हूँ, तभी तो सांसे चल रही है। वो तो मेरे आसपास सदैव रहते ही हैं, मेरी साँसों में घुले हुए हैं। वो तो घर बैठे ही दिखाई दे जाते हैं, सुनाई पड़ जाते हैं। लेकिन माँ तो माँ होती है, उसे मेरी पीड़ा देखी नहीं जाती। 

मेरी ख्वाहिश तो बस इतनी सी है कि जब देह त्यागूँ तो नजरों के सामने साहब हों, और देह त्यागने के पश्चात उनके करकमलों से मेरा चलावा चौका हो।

माघी पूर्णिमा 2022 और पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब...💐

आज माघ पूर्णिमा है। मेरी माँ और बुआ गाँव से मेरे घर रायपुर आई हुई हैं। कल शाम को लगभग दो घंटे माँ, बुआ, मेरी पत्नी और मैं घर-परिवार की चर्चा कर रहे थे। घरेलू चर्चा कब सत्संग में बदल गया, कुछ पता ही नहीं चला। चर्चा के दौरान पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब की याद आ गई। उनकी लीलाओं के बारे में माँ और बुआ बताते रहे, लगता था कि वो बताते ही रहें और मैं सुनता ही रहूँ।

जो पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब के समकालीन साहब के भक्त रहें हैं, जिन्होंने साहब से कंठी बंधवाई, उनसे पान परवाना लिया, उनका सानिध्य पाया, उनका दिव्य स्पर्श पाया, वो लोग कुछ और ही दर्जे के हैं, साहब के प्रति उनकी भक्ति बहुत ऊंचे लेवल की होती है, अधिकतर वो लोग साहब के सच्चे प्रेमी होते हैं। साहब के प्रति उनकी दीवानगी दिखती है, उनके हृदय में साहब के लिए एक निर्मल, दिव्य और सुगंधित प्रेम की धार बहती है।

साहब की लीलाओं का लिखकर वर्णन करने में इतना आनंद नहीं आता जितना उनके बारे में सुनकर आता है। जब कोई पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब की चर्चा करता है तो सुनने वाले लोग भावावेश, प्रेमवश रो पड़ते हैं। कुछ ऐसा ही हाल मेरा भी हुआ। साहब के व्यक्तित्व में, साहब की वाणियों में अजीब आकर्षण था, स्निग्धता थी, मधुरता थी, कोमलता थी। आज उनकी कमी अखरती है, लेकिन वो हमारे हृदय में वंश ब्यालिस और गुरु गोस्वामी साहब के रूप में सदैव रहेंगे।

मैं सौभाग्यशाली हूँ, जो उनके पावन चरण कमलों में माथा रखने का अवसर पा सका।

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टेंशन...💐

विगत दिनों मुझे एक परम् आदरणीय महंत साहब का फोन आया। कह रहे थे- "तुम्हारा फेसबुक और ब्लॉग पेज पढ़ा, अच्छा नहीं लिखते, लेख में साहब के लिए मर्यादा नहीं रखते, इसलिए तुम्हें ब्लॉक और रिपोर्ट कर दिया हूँ।"

इस तरह की बातें तो होती ही रहती है। लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, इसकी परवाह करता, तो आज जीवन में साहब नहीं होते। अपने परिजनों की, मित्रों की, रीति रिवाजों की, सीमाओं और समाज की परवाह करता तो आज जीवन में साहब नहीं होते।

अगर मुझे फेसबुक पर ब्लॉक और रिपोर्ट करोगे, मेरा एकाउंट बंद करवाओगे तो मैं साहब के लिए अपने हृदय के भाव पेन और कागज पर लिखकर उन्हें पोस्ट ऑफिस के माध्यम से दामाखेड़ा भेजूँगा। लेकिन अब उनका गुणगाण बंद नहीं कर सकता। अगर अपने हृदय की बात, भाव उन्हें नहीं कह पाया तो पागल हो जाऊँगा।

इसलिए हे आदरणीय महंत साहब, मैं आपके चरणों में बंदगी करते हुए, आपकी मर्यादा को भी लांघते हुए आपसे कहना चाहता हूँ - "भाँड़ में जाओ, आपकी परवाह नहीं मुझे।" 

साहब का लाईक और कमेंट...💐

जब भी मेरे किसी पोस्ट पर साहब का लाईक या कमेंट आता है, तो मैं रो पड़ता हूँ, सिसक पड़ता हूँ। साहब के इस प्यार से, साहब के इस छुअन से दिल भर आता है, आँखे छलक पड़ती हैं। उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाता, उनकी यादों में ही सारी रात गुजर जाती है।

उनके इस प्यार भरे मखमली स्पर्श से नस नस में नए उत्साह का संचार होता है। मुझे नाम सुमिरण-ध्यान में और ज्यादा गहरे उतरने की प्रेरणा मिलती है, मार्गदर्शन मिलता है।

इस धरती पर अनेकों संत हैं, पूण्य आत्माएं हैं, साहब की भक्ति करने वाले लोग हैं, साहब को जीने वाले लोग हैं। जो साहब के एक इशारे पर तन-मन-धन और जीवन उनके चरणों में रख देने का साहस रखते हैं। जबकि उनके सामने साहब के प्रति मेरा प्रेम बहुत छोटा है, तुच्छ है, तिनके के समान है।

जब साहब की छुअन से मैं रात भर जागता रहता हूँ, तो साहब भी नहीं सो पाते होंगे। साहब के इस कलयुगी भक्त की करुण पुकार भी उन तक जरूर पहुँचती होगी, उनके चरणों में मेरी बंदगी, आरती भी उन तक जरूर पहुंचती होगी।

मेरे प्रति साहब का यह प्रेम जिम्मेदारी का भी अहसास कराता है। उनके जनकल्याण और जीव मुक्ति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मैदान में उतरने को जी करता है। लगता है मैं भी उनके चरणों में जीवन बिछा दूँ।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

नितांत अकेला ...💐

बहुत ऊँचें ... बहुत ही ऊँचें पर्वत की चोटी पर नितांत अकेले बैठा हूँ। आस पास कोई मौजूद नहीं है। मैं सबकी आवाज, सबकी चीख पुकार स्पष्ट सुन सकता हूँ, देख सकता हूँ। लेकिन मेरी सिसकियों को, मेरे रुदन को सुनने और देखने वाला कोई नहीं है।

मुझसे पहले जो लोग इस शिखर तक आएं हैं, वो लोग बताते हैं कि इस धरातल पर जो भी आया ... रो पड़ा ... दहाड़ मारकर रो पड़ा। दरअसल यह स्थिति ही बड़ी भयंकर है, विचित्र है। इस स्थिति में व्यक्ति न तो जीता है और न ही मरता है। न उसे धूप लगती है और न ही छाँव की अनुभूति होती है। कुछ ठगा ठगा सा महसूस करता है।

इस ऊँचें शिखर की चोटी से व्यक्ति जब भवसागर को निहारता है, तब वह पाता है कि चीख पुकार मचाते लोगों की एक भीड़ चली आ रही है। जिसका कोई मकसद नहीं, जिसका कोई अंत नहीं। उनकी पीड़ा, उनके चीत्कार हृदय को बेधती है। लगता है किस किस की मदद करूँ, किस किस के आँसूं पोंछु, किस किस के दर्द में मरहम पट्टी करूँ।

इस ऊँचे शिखर से सब देखता हूँ, सब सुनता हूँ और दहाड़ मारकर रोता हूँ।

गुरुवार, 13 जनवरी 2022

साहब का प्यार ...💐

मैं तो साहब से मिले प्यार से अभिभूत हूँ, उनकी दया से ओतप्रोत हूँ। वो जो दिखाते हैं, वो जो सुनाते हैं, उन आवाजों और दृष्यों से हर पल घिरे रहता हूँ। साहब से मैं इतना प्यार पाकर धन्य हो उठा। लेकिन यही सब मेरे आंसुओं का कारण भी है। जब साहब ऐसी मानवीय इंद्रियों के पार की बातें दिखाते हैं, सुनाते हैं जो अभूतपूर्व हो। तो रोना भी आता है, और हंसी भी आती है। 

रोना इसलिए आता है क्योंकि उन दृश्यों में कभी किसी करीबी की मृत्यु दिखती है, तो कभी किसी की कराहने की आवाज होती है, मुझसे जुड़े लोगों की तकलीफें होती है, मेरे खुद की जिंदगी से जुड़े दृश्य होते हैं। कई दृश्य और आवाजें तो जानवरों की भी होती है, जो मेरे आसपास मौजूद होते हैं। 

चूँकि इन अनुभूतियों का संबंध मेरे अथवा मेरे अपनों से होता है इसलिए उन ध्वनियों और दृष्यों को अपने दिल से लगा बैठता हूँ, इसमें बह जाता हूँ। और हंसी यह देखकर आती है कि लोग व्यर्थ ही फालतू के, बिना मतलब के, तुच्छ और निपट कर्मों में लिप्त होकर अपना मानुष जनम गवां रहे हैं। 

साहब मुझे जिस शिखर की उस ऊँचाई से दुनिया दिखाते हैं, जिस शिखर की बात बताते हैं, दरअसल मैं इस योग्य ही नहीं हूं। मैं साहब की असीम दया पाने के काबिल ही नहीं हूं, उनकी इतनी दया का पात्र ही नहीं हूँ। मैं ठहरा उनका घोर कलयुगी भक्त, लेकिन न जाने क्यों वो मुझ पर अपना प्यार बरसाते हैं।

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मेरी आध्यात्मिक यात्रा...💐

मैं परिस्थितियों का मारा हूँ। दुखों से बचने के सारे उपाय करता हूँ। मैंने गले में कंठी धारण कर रखी है, लेकिन मेरे परिजन मुझे लाल कपड़े में लपेटे हुए ताबीज भी पहना रखे हैं। एक तांत्रिक ने नहाने के बाद केले के पौधे की पूजा करने को कहा है, तो दूसरे ज्योतिषी ने मूंगा रत्न चांदी की अँगूठी में पहनने को भी कहा है।

मेरा छोटा भाई ओशो का परम भक्त है,  जिससे खूब आध्यात्मिक चर्चा होती है, बहस होती है। वो निर्गुण उपासक है तो मैं सगुन उपासक। वो सुबह चार बजे ओशो का ध्यान धरता है, तो मैं रोज सबके सोने के बाद रात एक-दो बजे साहब को याद करता हूँ।

जितनी बार दामाखेड़ा नहीं गया उतनी बार तो ब्रम्हकुमारी ध्यान केंद्र गया, गायत्री मंदिर गया, हवन में शामिल हुआ, ओशो को सुनने और पढ़ने गया। गीता के अनेकों पन्ने पलटे, बुद्ध और महावीर को पढ़ा और सुना। प्रश्नों के उत्तर जानने, दुखों से बचने के लिए हर किसी का दरवाजा खटखटाया।

मेरी आध्यात्मिक यात्रा पूरी खिचड़ी है यार।

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पान परवाना के फायदे ...💐

बहुत पहले की बात है। एक दिन परम् आदरणीय महंत दीपक साहेब जी से कबीरपंथ में पान परवाना की महिमा के संबंध में चर्चा हो रही थी। उन्होंने चर्चा के दौरान पान परवाना की महत्ता बताई थी। आज वो प्रसंग याद आ गया। साहब से प्राप्त पान परवाना हमारे लिए अमृत तुल्य तो है ही, साथ ही साथ दैनिक जीवन की अनेक समस्याओं का हल भी है, जो बिंदुवार निम्न हैं-

पान खाने का प्रमुख कारण और लाभ यह है कि इसे खाने से पाचन क्रिया बेहतर होती है, क्योंकि इसे चबाते वक्त बनने वाला सलाइवा अधिक मात्रा में बनता है, जो भोजन के पाचन में अहम भूमिका निभाता है।

2 पान का पत्ता, खांसी और कफ की समस्या में लाभकारी साबित होता है। इन पत्तों को पानी में उबालकर उसे पीने से कफ नहीं होता और खांसी भी दूर होती है।

3 शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए पान का उपयोग किया जा सकता है, यह काफी प्रभावी उपाय है। 2 कप पानी में पान के 5 पत्तों को उबालें और जब यह आधा रह जाए तब इसे पिएं। इससे शारीरिक गंध दूर होगी।

 4 जले हुए स्थान पर पान के पत्तों को पीसकर बनाया गया लेप लगाकर कुछ देर छोड़ दें, फिर इसे साफ कर इसमें शहद लगाने से लाभ होता है और त्वचा जल्दी ठीक होती है।

मुंह व मसूड़ों से खून खाने की स्थिति में पान के पत्ते में लगभग 10 ग्राम कपूर डालकर इसे चबाने से फायदा होता है। इसके अलावा श्वास की दुर्गंध के लिए भी पान बेमिसाल है।

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बुधवार, 12 जनवरी 2022

साहब के प्रति थोड़े भाव हैं...💐

मेरे करीब के लोग कहते हैं जो दिल में आता है, लिख देते हो। पूछते हैं- "साहब से डर नहीं लगता क्या? साहब भी तुम्हें पढ़ते हैं, तुम्हारी पोस्ट पर कमेंट करते हैं।" पर मुझे साहब से भला क्यों डर लगेगा? मेरे अंदर उनके प्रति थोड़ा सा प्रेम है, थोड़े भाव हैं, कोमल भावनाएँ हैं, जो उन्हें लिख दिया करता हूँ।

मुझे उनसे डर नहीं लगता। हाँ, लेकिन मुझे शर्म जरूर आती है, लाज जरूर आती है कि उन्होंने जो कहा उस तरीके से मैं उनको जी नहीं सका। इसलिए उनकी बंदगी करने नहीं जाता। उनसे आंख मिलाकर उनके सामने खड़े नहीं हो सकता, उनके बगल खड़े होकर उनके साथ सेल्फी नहीं ले सकता।

अगर साहब से डरूँ तो उनसे सत्यलोक जाने का मार्ग कैसे पूछ पाऊंगा? उनसे कैसे विनती कर सकूंगा की जिस तरह रानी इन्द्रमती को साहब कबीर ने जीते जी सत्यलोक का दर्शन करवाया, उसी तरह मुझे भी सत्यलोक का दर्शन करवाएँ। अगर उनसे डरूँ तो उनके मार्ग में चलते हुए आने वाली बाधाओं से निकलने का उपाय कैसे और किससे पूछूँगा?

बेशक, मेरे लेख में उनकी आलोचना भी पाएंगे, लेकिन उसके पीछे मेरा प्रेम ही होता है। क्या वो ये सब नहीं समझते होंगे? वो सब समझते हैं, उनको मेरे पल पल की खबर है। उनकी प्रतीक्षा में जीवन खाक हो गया, क्या वो नहीं देखते होंगे? क्या वो मेरे शब्दों में छिपे उनके प्रति कोमल भावनाओं को महसूस नहीं करते होंगे?

और जहां तक उनकी मर्यादा की बात है, तो मैं मर्यादा का पालन करता हूँ। लेकिन मर्यादा में रहकर अपने हर भावों को व्यक्त करने में मुझे दिक्कत होती है। जिस तरह धर्मनि आमिन और साहब कबीर के सम्बन्धों को समझ सका हूँ उसके अनुसार धर्मनि आमिन अपनी हर समस्या को, हर पीड़ा को, साहब के प्रति प्रेम को दिल खोलकर और मर्यादा लांघकर उनके चरणों में अर्पित कर किया। तो मैं साहब से अपनी बात कहने में भला क्यों डरूँ?

बल्कि मैं तो अनेकों बार जानबूझकर अमर्यादित होकर लिखता हूँ ताकि वो कमेंट करके मुझे डांटे, मेरी कमजोरियों से मुझे अवगत कराएं, मुझे तराशें, मेरा जीवन सवारें। मैं कच्ची मिट्टी का घड़ा हूँ, वो मुझे अपने अनुसार जैसा चाहें वैसा ढालें, मैंने तो उनके चरणों में जीवन बिछा दी है।

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मेरी बिटिया चित्रा...💐

मेरी बड़ी बिटिया... कक्षा चौथी, केंद्रीय विद्यालय डीडी नगर, रायपुर में पढ़ती है। जब वो कोई भजन गाती है तो पिता होने के नाते भावावेश उसे रिकार्ड कर लेना चाहता हूं। आज स्कूल के ऑनलाइन म्यूजिक क्लास में हारमोनियम के साथ एक गीत गुनगुना रही थी, जिसे बिना उसके परमिशन के रिकार्ड कर ही लिया।

मैं अपने बच्चों से कोई अपेक्षा नहीं करता कि वो मेरी हर इक्छाओं का पालन करें, उन्हें मेरे अनुसार ही संस्कार मिले। लेकिन उनके मन में साहब के प्रति गहरा जुड़ाव है, जन्मजात रूप से साहब के प्रति लगन है। वो अपनी मां के साथ अक्सर साहब के भजन ऐसे ही हारमोनियम लेकर गुनगुनाते रहती है।

और मैं ...उनके भजन सुनकर कमरे में कंबल ओढ़े लेटे हुए भावावेश रो पड़ता हूँ।


साहब से मिलन की प्रतीक्षा ...💐

दोस्तों, जब मुझे विचार आते हैं कि मैं साहब से मिलने क्यों जाऊँ? तो मुझे जो उत्तर मिलते हैं, वो बिंदुवार निम्न हैं-
1) प्रेमवश
2) भौतिक समस्या वश
3) ज्ञान/मुक्ति की प्यास वश
4) अहंकार वश

जब पहले बिंदु पर ध्यान जाता है तो लगता है की उनसे प्रेम जताने के लिए तो फेसबुक ही पर्याप्त है। महंगाई बढ़ गई है, बस ऑटो में आने जाने में ही तीन सौ रुपए लग जाते हैं। 😢

जब दूसरे बिंदु पर ध्यान जाता है तो लगता है कि सबको एक न एक दिन सबको मरना ही है। तो कुछ सांसे और माँगने भला क्यों जाऊँ? वैसे भी डॉक्टर ने बोल दिया है कि जल्दी निपट जाओगे। अगर उनकी चौखट से मुझे अमरता मिलती तो जरूर जाता। 😢

जब तीसरे बिंदु पर ध्यान जाता है तो लगता है कि मुझे तो ज्ञान और मुक्ति की प्यास ही नहीं है। फिर जाने का क्या फायदा। मुझे तो फिर से जन्म लेना है, वो भी पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब और प्रखर प्रताप साहब के चरणों में।😢

जब चौथे बिंदु जो सबसे खतरनाक चीज है, पर ध्यान जाता है, तो लगता है कि मैं उन्हें क्यों बताने जाऊँ की जो आपने कहा उस तरीके से मैंने साहब को जी लिया। मैं क्यों उम्मीद करूँ की मेरी प्रतीक्षा में वो फूल माला लिए खड़े होंगे की साहूजी आएंगे, मेरा भक्त आएगा, ज्ञानी होकर आ रहा है, तो उसका भव्य स्वागत करूंगा।😢

मित्रों, इस तरह साहब से मिलने का मुझे कोई कारण नहीं मिलता। जब भी उनसे मिलने के बारे में सोचता हूँ तो मेरे लिए कपाट बंद ही पाता हूँ। और मैं ज्यादा चिंता न करते हुए चुपचाप भात साग खाकर कंबल ओढ़कर सो जाता हूँ।

😊😊😊

रविवार, 2 जनवरी 2022

सूनापन ...💐

सिर छुपाने लायक घर है, आज्ञाकारी बच्चे हैं, मुझसे प्यार करने वाली और मुझे अपने हृदय में स्थान देने वाली पत्नी है, जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्तों में आने वाली मुसीबतों में मार्गदर्शन करने वाले माता पिता और सास ससुर हैं, मित्रवत मेरे दो भाई हैं। जीवन चलाने लायक छोटी सी नौकरी जो आय का जरिया है। मोबाइल है, टीवी है, मोटरसाइकिल है। जीवन को चलाने के लिए जितनी भी भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वो सब है।

लेकिन कुछ तो ऐसा है जो मेरे पास नहीं है, कुछ तो ऐसा है जिसकी कमी मुझे शिद्दत से महसूस होती है। सबकुछ होने के बाद भी जीवन में एक खालीपन, सूनापन और एक रिक्तता का बोध पाता हूँ। क्यों? इसका कारण क्या है? और इसका जिम्मेदार कौन है?

ये मैं बचपन से ही महसूस करता रहा हूँ। एक दर्द है, जिसकी वजह खुद मुझे नहीं पता, एक खोज है, अतृप्त प्यास है। कुछ तो ऐसा है जो मुझे जीने नहीं देता है, हंसने और मुस्कुराने की वजहें नहीं देता। क्या कोई मेरे जैसा खालीपन, सूनापन, दर्द और उदासियों में जीता है? कोई हो तो मुझे भी बताएं।

साहब का द्वारपाल ...💐

2008 में मैं रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में भर्ती था। डॉ. मनोज साहू, मनोरोग विशेषज्ञ मेरा इलाज कर रहे थे। मैंने उनसे एक घण्टे के लिए अस्पताल से बाहर जाने की परमिशन मांगी। हाथ में ड्रीप चढ़ाने वाली सुई लगी हुई थी। मैं उसी हालत में पत्नी के साथ ऑटो रिक्शा पकड़ कर कटोरा तालाब रायपुर साहब से मिलने निकल पड़ा।

वहाँ एक द्वारपाल मिले। वो मुझे देखते ही समझ गए कि अस्पताल से आया है। मैंने उनसे साहब से मिलने की इक्छा जताई। उन्होंने आंखें ततेरते हुए वापिस जाने को कहा। लेकिन मैं जिद पर अड़ा रहा। वे मुझे झल्लाते हुए बोले कि जब बीमार हो, तो ऐसी हालत में साहब के पास मत जाओ, साहब को भी बीमारी लग सकती है। चाहो तो पान परवाना और प्रसाद तुम्हें दे सकता हूँ। 

लेकिन मैं भी अहंकारवश जिद पर अड़ा रहा कि मेरे साहब हैं, मुझे उनसे मिलने का अधिकार है, और साहब की प्रतीक्षा में वहीं बैठ गया। उस दिन डॉ. भानुप्रताप साहब के दर्शन हुए, बंदगी हुई, प्रसाद मिला। लेकिन उस द्वारपाल के लिए मन में चिढ़ हो गई, क्योंकि उन्होंने मुझे साहब से मिलने से रोका था।

समय बीतने के बाद जब उस द्वारपाल के बारे में विचार उठे तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। साहब और साहब के पूरे परिवार का जीवन अनमोल हैं, अमूल्य है। वो सारे जगत की पीड़ा हरने ही तो हम सबके बीच इस धरा पर अवतरित हैं। ऐसे में साहब अथवा साहब के परिवार पर हमारी वजह से किसी तरह का संकट न आ जाए, इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। 

जब हम उनके चरणों तक जाएं तो कम से कम नहा धोकर और साफ सुथरे तरीके से जाएं, सलीके से जाएं, बीमारी लेकर न जाएं, अगर बीमारी लेकर जाना भी पड़े तो निश्चित दूरी बनाए रखें। साहब से फरियाद करने बहुत गंभीर और जीर्णशीर्ण अवस्था में लोग आते हैं।

अब तक मैं साहब के द्वारपालों से बहुत चिढ़ता रहा हूँ, उनको लेकर मेरे अनुभव कभी अच्छे नहीं रहे हैं। लेकिन देर से ही सही उस द्वारपाल/संत के लिए हृदय में आज प्रेम उमड़ ही पड़ा।

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मेरे हुजूर पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब ...💐

मुझे ठीक से याद नहीं है, लेकिन शायद सन 1984 या 1985 की बात है, तब मैं 4 या 5 वर्ष का था। हमारे गाँव कारी, जिला बलौदाबाजार (छ.ग.) में पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब का आगमन हुआ था। तब गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी, न ही लाउडस्पीकर, और कैरोसिन वाली लालटेन जलाकर सभा स्थल पर रौशनी की गई थी। जाड़े का मौसम था, लोग जमीन पर धान के पैरा बिछाकर और चादर ओढ़कर बैठे थे। मैं भी बहुत खुश था कि साहब हमारे गाँव आएं हैं, और अपने दादा की गोद में वहां मौजूद था।

साहब ने सभा स्थल में क्या कहा, मुझे नहीं पता। लेकिन उस एक पल की हल्की सी धुंधली तस्वीर है। मंच स्थल पर साहब किसी खड़े हुए व्यक्ति से कुछ बात कर रहे थे। मैं जब बड़ा हुआ तब दादाजी ने उस घटना का विवरण मुझे बताया कि करीब शाम के 7 बजे पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब का मंच पर आगमन हुआ। "उस वार्तालाप को हुबहू शब्दों में नहीं कह पा रहा हूँ, इसलिए उसका सार लिख रहा हूँ।"

उस मंच से साहब ने प्रश्न करते हुए कहा था कि "दुनिया में विरले लोग ही हैं जो परमात्मा को जीते हैं। कौन है जिसे साहब की प्यास है? कोई है?" तब गाँव के एक व्यक्ति ने खड़े होकर साहब से कहा की मुझे परमात्मा दिखा दीजिए। तब साहब ने कहा था चलो मेरे साथ तुम्हें परमात्मा से मिलवाता हूँ। लेकिन पागल हो जाओगे तो मुझे दोष मत देना। जो भी परमात्मा से मिलना चाहता हो, चलो मेरे साथ। यह सुनकर सभा स्थल में सन्नाटा छा गया। वह व्यक्ति सकपका गया, घबरा गया, और अपनी जगह बैठ गया। गांव का कोई भी व्यक्ति साहब के साथ चलने को तैयार नहीं हुआ। 

दादाजी से पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की ऐसी कहानियां, उनकी अनेकों लीलाएँ सुनते हुए बड़ा हुआ हूँ। इसलिए उनके प्रति गहरा जुड़ाव है, उन्हें शिद्दत से याद करता हूँ।

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शनिवार, 1 जनवरी 2022

पत्नी और बच्चों के चरणों में मेरी बंदगी...💐

मैं घर पर रोज शाम को होने वाली संध्या आरती में कभी शामिल नहीं होता। अधिकतर जब संध्या आरती होते रहती है उस समय मैं ऑफिस से घर लौटकर कम्बल ओढ़े बिस्तर पर पड़े रहता हूँ। मेरी पत्नी और दोनों बेटियाँ मिलकर संध्या आरती करतीं हैं। संध्या आरती के बाद मेरी पत्नी और दोनों बच्चे मेरी बंदगी करने और साहब का चरणामृत देने कमरे में आतीं हैं।

जिस ढंग से जिंदगी को मैं देखता हूँ, तो पाता हूँ कि मेरे जैसा मलिन व्यकितत्व किसी का भी नहीं है, सारे जहान की मलिनता मेरे ही अंदर है, सारी बुराइयाँ मुझमें ही भरी पड़ी है। अपने जीवन को जब साहब की ऊँचाई से, साहब की दृष्टि से देखता हूँ तो पाता हूँ की कोई मेरी बंदगी करे, "इस काबिल तो मैं बिल्कुल भी नहीं हूं।"

अक्सर मैं पत्नी और बच्चों से कहता हूं कि वो आरती सम्पन्न होने के बाद साहब की लगी तस्वीर की बंदगी करें, साहब की बंदगी करें, मेरी नहीं। जबकि मैं यह भलीभांति जानता हूँ कि किसी को साहेब बंदगी बोलते हैं, साहेब बंदगी करते हैं, "तो साहब की ही बंदगी होती है", किसी व्यक्ति विशेष की नहीं।

जब पत्नी और बच्चे मेरी बंदगी करने कमरे में आती हैं तो यह मेरे प्रति उनका स्नेह है, प्रेम है, एक पति और एक पिता का सम्मान है। यही कबीरपंथ की परंपरा भी है, और इसी परंपरा के अनुरूप मेरी पत्नी और मेरे बच्चे जन्म से पले बढ़े हैं।

यह सब जानते और समझते हुए भी उनसे कहता हूं कि मेरी बंदगी न करें, पर वो नहीं मानते। उनके द्वारा नियमित रूप से इस परंपरा के निर्वाहन के सामने मैं नतमस्तक रहता हूँ और मुझे लगता है कि मैं अपने बच्चों और पत्नी की बंदगी करूँ। "उनके चरणों में मेरी बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी।"

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...