मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

साहब और शिष्य का मिलन...💐

पीढ़ी बीत गयी, घर में संतों के चरण नहीं पड़े। संतु बड़े आस से इस पूर्णिमा अपने घर में चौका आरती कराने जा रहा है। वह मिट्टी के टूटे फूटे और कच्चे घर में बड़े ही संकोच के साथ संतो और रिश्तेदारों को आमंत्रित करता है।

साल भर गांव में मजदूरी की। पाई पाई जोड़कर बड़े ही प्रेम भाव से वह चौका आरती और भोजन भंडारे की सारी व्यवस्थाएं करता है। उसके साथ पूरा परिवार बेहद खुश है कि आज बरसों बाद संतों के माध्यम से साहब के कदम घर आँगन में पड़ेंगे, साहब के चौका आरती से जन्मों का मैल धूल जाएगा। संतु ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। वो चौका का कोई विधि विधान नहीं जानता, सिर्फ बंदगी जानता है, समर्पण जानता है।

अश्रुपूरित नेत्रों से आरती करते हुए पूरा परिवार महंत साहब के रूप में "साहब" की आगवानी करता है। चौका शुरू होता है, संतु अपने परिवार के साथ साहब को नारियल, फूल, पान, सुपारी, द्रव्य भेंट करता है। वह और उसका परिवार महंत साहब के चरणों में, बरसों की प्रतीक्षा और जीवन का भार अश्रु धारा के रूप में अर्पित कर देता है।

चौका के समापन तक संतु बैठे बैठे महंत साहब को निहारता रहता है, रोता और सिसकता रहता है। दीनता से भरे उसके भाव देखकर महंत साहब भी अपने को रोक न पाए, चौका के आसन में बैठे बैठे वो भी रो पड़े।

"साहब" और "साहब के भक्त" का चौका के बीच सुखमनी लगन में निःशब्द मिलन हो रहा था।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...