गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

यादों के पन्ने...💐💐💐

अगस्त का वो महीना था, गहरी हरियाली सड़क किनारे खेतों में फैली थी। दोनों अलग अलग शहरों में रहते थे, तीन घंटे का सफर तय कर, पूरे दो महीने बाद उनकी मुलाकात हुई थी।

मोटरसाइकिल एक किनारे टिकाकर, बारिश में भीगे वे दोनों चाय की चुस्की लेते सड़क किनारे झोपड़ीनुमा होटल में अलाव के पास बैठे थे। वो कह रही थी हम लोग अपने छोटे से घर के आँगन में ऐसे ही बारिश के दिनों में बैठकर चाय पीया करेंगे। थोड़ी देर बाद बारिश थम चुकी थी, उसने टिफिन खोलते हुए कहा, गोभी की सब्जी, पराठे और खीर लाई हूँ, आपको बहुत पसंद है न...!!! खुद बनाई हूँ।

बात बहुत पुरानी है, पीने वाले कहते हैं कि पुरानी शराब की बात ही कुछ और होती है। आशियाने में आँगन तब नही था, लेकिन आज किराये का जरूर है। वैसी बारिश अब भी होती है, सड़क किनारे का वो झोपड़ीनुमा होटल अब भी है, वहाँ अलाव अब भी जलता है। उसे गोभी की सब्जी, पराठे, खीर अब भी बेहद पसंद है। लेकिन अब वो पास नही है, करीब नही है।

सुबह सुबह पत्नी की आवाज से उसकी नींद खुली। पूछ रही थी आज ऑफिस के लिए टिफिन में गोभी की सब्जी, पराठे और खीर बना रही हूं, चलेगा न...???
उसने मुस्कुराते हुए हामी भर दी थी।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...