मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

बस इतनी सी ख्वाहिश...💐

अपने घर वालों को अपनी सेहत के बारे में अब तक ज्यादा कुछ नहीं बताया था। लेकिन कब तक उन्हें अंधेरे में रखूँ, कभी न कभी सच्चाई उनके सामने आ ही जाएगी। दर्द को एक्सप्रेस न करते हुए एक लाइन में कहूँ तो "जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चलेगी।"

आज हिम्मत करके माँ को बता ही दिया। सुनकर थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ गई, फिर रोने लगी। उनको रोते देखकर बड़ी पीड़ा हुई। बेटे के होते हुए माँ रोए, ये किसी भी सूरत में अच्छी बात नहीं। माता पिता उमर की जिस ढलान पर हैं, मुझे उनकी सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें मेरी देखभाल और सेवा करनी पड़ती है।

आज कह रही थी कि चलो साहब के पास, उनसे निवेदन करेंगे, दर्शन बंदगी करेंगे, पान परवाना मांगेंगे, तुम ठीक हो जाओगे, साहब जरूर कृपा करेंगे। लेकिन उन्हें कैसे समझाऊँ कि साहब से मेरा "छत्तीस का आंकड़ा है"।

उनकी दया, उनकी कृपा तो हर पल मुझ पर बरसती ही रहती है। तभी तो जी पा रहा हूँ, तभी तो सांसे चल रही है। वो तो मेरे आसपास सदैव रहते ही हैं, मेरी साँसों में घुले हुए हैं। वो तो घर बैठे ही दिखाई दे जाते हैं, सुनाई पड़ जाते हैं। लेकिन माँ तो माँ होती है, उसे मेरी पीड़ा देखी नहीं जाती। 

मेरी ख्वाहिश तो बस इतनी सी है कि जब देह त्यागूँ तो नजरों के सामने साहब हों, और देह त्यागने के पश्चात उनके करकमलों से मेरा चलावा चौका हो।

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