शनिवार, 1 जनवरी 2022

पत्नी और बच्चों के चरणों में मेरी बंदगी...💐

मैं घर पर रोज शाम को होने वाली संध्या आरती में कभी शामिल नहीं होता। अधिकतर जब संध्या आरती होते रहती है उस समय मैं ऑफिस से घर लौटकर कम्बल ओढ़े बिस्तर पर पड़े रहता हूँ। मेरी पत्नी और दोनों बेटियाँ मिलकर संध्या आरती करतीं हैं। संध्या आरती के बाद मेरी पत्नी और दोनों बच्चे मेरी बंदगी करने और साहब का चरणामृत देने कमरे में आतीं हैं।

जिस ढंग से जिंदगी को मैं देखता हूँ, तो पाता हूँ कि मेरे जैसा मलिन व्यकितत्व किसी का भी नहीं है, सारे जहान की मलिनता मेरे ही अंदर है, सारी बुराइयाँ मुझमें ही भरी पड़ी है। अपने जीवन को जब साहब की ऊँचाई से, साहब की दृष्टि से देखता हूँ तो पाता हूँ की कोई मेरी बंदगी करे, "इस काबिल तो मैं बिल्कुल भी नहीं हूं।"

अक्सर मैं पत्नी और बच्चों से कहता हूं कि वो आरती सम्पन्न होने के बाद साहब की लगी तस्वीर की बंदगी करें, साहब की बंदगी करें, मेरी नहीं। जबकि मैं यह भलीभांति जानता हूँ कि किसी को साहेब बंदगी बोलते हैं, साहेब बंदगी करते हैं, "तो साहब की ही बंदगी होती है", किसी व्यक्ति विशेष की नहीं।

जब पत्नी और बच्चे मेरी बंदगी करने कमरे में आती हैं तो यह मेरे प्रति उनका स्नेह है, प्रेम है, एक पति और एक पिता का सम्मान है। यही कबीरपंथ की परंपरा भी है, और इसी परंपरा के अनुरूप मेरी पत्नी और मेरे बच्चे जन्म से पले बढ़े हैं।

यह सब जानते और समझते हुए भी उनसे कहता हूं कि मेरी बंदगी न करें, पर वो नहीं मानते। उनके द्वारा नियमित रूप से इस परंपरा के निर्वाहन के सामने मैं नतमस्तक रहता हूँ और मुझे लगता है कि मैं अपने बच्चों और पत्नी की बंदगी करूँ। "उनके चरणों में मेरी बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी।"

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साधना काल 💕

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