
नाम के संगीत में डूबा हर पल उसे और गहरे ले जाते थे। अजीब नशा था, कोई परछाई थी, लगता कोई तो है जो देखता है, सुनता है, साथ साथ चलता है, पीछा करता है, प्रश्नों के त्वरित उत्तर भी देता है। पीछा छुड़ाने के सारे उपक्रम फेल हो चुके थे। वो अवाक था, कुछ सूझता ही नही था, उस अजनबी अहसास से बरसों तक उसकी नींदे उड़ी रही।
"शरीर को यंत्र बनाने" का मतलब उस रात समझा था। उस अहसास से जीवन अब भी लबालब है। अब और गहरे उतरना है, और भी रास्ते तय करना है, और भी पड़ाव पार करना है।
मोको कहाँ ढूँढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल में, ना मैं मस्जिद में, न काबे-कैलाश में।
खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर के तलाश में।
ना मैं देवल में, ना मैं मस्जिद में, न काबे-कैलाश में।
खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर के तलाश में।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसन की सांस में।
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