शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2018

रास्ते के फूल...💐

खिली चांदनी रातों की मौन लम्हें कहती रही कि सुबह ही न हो, परंतु गर्मी की उस रात चांद को घर जाने की जल्दी थी। किसी जोर की आवाज से चौककर रात भर हड़बड़ाए छत पर अकेले बैठे रहा। पहली दफे चांद के साथ प्रकृति में भी अपने साहब, अपने परमात्मा की लालिमायुक्त छवि देख रहा था। जो अंदर था वही बाहर था, और जो बाहर था वही अंदर भी दिखता था। दृष्टिकोण और दृष्टि दोनों का दायरा बहुत विस्तृत हो चुका था।

नाम के संगीत में डूबा हर पल उसे और गहरे ले जाते थे। अजीब नशा था, कोई परछाई थी, लगता कोई तो है जो देखता है, सुनता है, साथ साथ चलता है, पीछा करता है, प्रश्नों के त्वरित उत्तर भी देता है। पीछा छुड़ाने के सारे उपक्रम फेल हो चुके थे। वो अवाक था, कुछ सूझता ही नही था, उस अजनबी अहसास से बरसों तक उसकी नींदे उड़ी रही।
"शरीर को यंत्र बनाने" का मतलब उस रात समझा था। उस अहसास से जीवन अब भी लबालब है। अब और गहरे उतरना है, और भी रास्ते तय करना है, और भी पड़ाव पार करना है।

मोको कहाँ ढूँढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल में, ना मैं मस्जिद में, न काबे-कैलाश में।
खोजि होय तो तुरंत मिलिहौं, पल भर के तलाश में। 
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसन की सांस में।

...

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...