मेरे पिताजी फेसबुक क्या होता है, नहीं जानते। लेकिन वो मेरे लेखों के बारे में दूसरों से सुनते हैं। आज कह रहे थे कि ये सब लिखना बंद करो। कुछ भी लिखते रहते हो, तुम्हारी जग हंसाई होती है।
मैं घर वालों को कैसे समझाऊँ की साहब के बिना जी नहीं सकता यार, और साहब से कुछ कहने के लिए, उनके चरणों में प्यार उड़ेलने के लिए, मेरे पास फेसबुक ही एकमात्र जरिया है।
क्या करूँ, साहब के लिए पागलपन रहता है, जुनून रहता है, दिनभर उनकी यादों से, उनकी अनुभूति से आंखें नम रहती है। अपने हृदय की बात उनसे नहीं कह पाया तो पागल हो जाऊंगा।
हे साहब, हे मालिक, जब तक सांसे हैं, बांहें थामें रखिएगा।
😢😢😢
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