मंगलवार, 28 अगस्त 2018

बादल प्रेम का...💐

ब्रम्हांड के हर मूर्त और अमूर्त, दृश्य और अदृश्य कृतियों में साहब का ही अंश है। कहते हैं मनुष्य जीवन साहब की असीम कृपा से प्राप्त होता है। जिसको साहब ने स्वयं ही अपने से पृथक कर पुनर्मिलन के लिए रचा है। साहब से मिलन ही इस मानव जीवन का अंतिम ध्येय है। और इस ध्येय की पूर्ति केवल प्रेम के द्वारा ही हो सकती है।

जिन मनुष्यों के बीच आपसी प्रेम और सहयोग की भावना रहती है, जो दूसरों से प्रेम करते हैं, हृदय में हरेक जीवों के प्रति दया का भाव रखते हैं, और जो सबके प्रति स्नेह एवं शिष्टता का व्यवहार करते हैं, वे सब मानव साहब से मिलने के अपने लक्ष्य की ओर ही बढ़ रहे होते हैं।

साहब से मिलन के कई उपाय बताए जाते हैं, लेकिन यह उपाय तभी सफल होता हैं जब उन उपायों में अलौकिक और अगाध प्रेम हो। यह प्रेम श्रद्धा, भक्ति, आस्था, विश्वास आदि कई रूपों में होता है। श्रद्धा और प्रेम से रहित कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती। जिस भक्त को साहब से सच्चा प्यार होता है, वह भक्त भी साहब को प्यारा होता है। उस भक्त के हृदय की प्यास बुझ जाती है, उसे साहब मिल जाते हैं:-

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आय।
अन्तर भीगी आत्मा, हरि भई बनराय।।

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शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

जीवन क्या है...💐

जीवन क्या है? जीवन का मतलब समझा जाना चाहिए। जीवन से संबंधित सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं को सहजता से स्वीकार किया जाना चाहिए। कहते हैं जीवन एक चुनौती है, संग्राम है, जोखिम है। उसे इसी रूप में स्वीकार करने के अलावा और कोई मार्ग नहीं है।

जीवन एक रहस्य है, तिलस्म है, भूल-भुलैया है। एक तरफ जीवन कर्तव्य के रूप अत्यंत कठोर है लेकिन दूसरी तरफ किसी जोकर की तरह हँसाने वाला रंगमंच भी है। जीवन गीत है, प्रेम है, सौंदर्य है, स्वपन भी है । जिसमें अपने को खोया जा सके, जिसका आनंद लिया जा सके।

जीवन यात्रा भी है, जीवन अवसर भी है जिसे गँवा देने पर सब कुछ हाथ से चला जाता है। इसे किस प्रकार सफल बनाया जा सकता है, जिसने यह जान लिया, जी लिया, वह सौभाग्यशाली है।

मानुष जन्म अनमोल है, मिले न दूजी बार।
पक्का फल जो गिर पड़ा, बहुरि न लागे डार।।

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बुधवार, 22 अगस्त 2018

सो सतगुरु मोहे भावे संतो...💐

सुख और दुख हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। जैसे चलने के दायां और बायां पैर जरूरी है, काम करने के लिए दायां और बायां हाथ जरूरी है, चबाने के लिए ऊपर और नीचे का जबड़ा जरूरी है।

वैसे ही जीवन की उड़ान के लिए सुख और दुख रूपी दो पंख जरूरी हैं। लेकिन सुख और दुख का ठीक उपयोग हम नहीं कर पाते, उनसे प्रभावित हो जाते हैं, उनमें रस लेने लग जाते हैं, इसीलिए जीवन भर शरीर और इच्छाओ से बंधे ही रह जाते हैं, अपने मुक्त स्वभाव का पता नहीं चलता।

ऐसे में साहब सारे बंधनों को हटाकर हमें अपने निज स्वरूप का बोध कराते हैं, और कहते हैं:-

संतो सो सदगुरु मोहे भावे,
जो आवागमन मिटावे...
कर्म करे और रहे अकर्मी
ऐसी युक्ति बतावे...
कहें कबीर सतगुरु सोई साँचा,
घट में अलख लखावे...
संतो सो सद्गुरु मोहे भावे।।

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शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

तुम याद आयी...💐

अगस्त का वो महीना था, गहरी हरियाली सड़क किनारे खेतों में फैली थी। दोनों अलग अलग शहरों में रहते थे, तीन घंटे का सफर तय कर, पूरे दो महीने बाद उनकी मुलाकात हुई थी।

मोटरसाइकिल एक किनारे टिकाकर, बारिश में भीगे वे दोनों चाय की चुस्की लेते सड़क किनारे झोपड़ीनुमा होटल में अलाव के पास बैठे थे। वो कह रही थी हम लोग अपने छोटे से घर के आँगन में ऐसे ही बारिश के दिनों में बैठकर चाय पीया करेंगे। थोड़ी देर बाद बारिश थम चुकी थी, उसने टिफिन खोलते हुए कहा, गोभी की सब्जी, पराठे और खीर लाई हूँ, आपको बहुत पसंद है न...!!! खुद बनाई हूँ।

बात बहुत पुरानी है, पीने वाले कहते हैं कि पुरानी शराब की बात ही कुछ और होती है। आशियाने में आँगन तब नही था, लेकिन आज किराये का जरूर है। वैसी बारिश अब भी होती है, सड़क किनारे का वो झोपड़ीनुमा होटल अब भी है, वहाँ अलाव अब भी जलता है। उसे गोभी की सब्जी, पराठे, खीर अब भी बेहद पसंद है। लेकिन अब वो पास नही है, करीब नही है।

सुबह सुबह पत्नी की आवाज से उसकी नींद खुली। पूछ रही थी आज ऑफिस के लिए टिफिन में गोभी की सब्जी, पराठे और खीर बना रही हूं, चलेगा न...???

उसने मुस्कुराते हुए हामी भर दी थी।

अनंत की यात्रा...💐

अनंत की यात्रा पर निकले इंसान को पहले पहल अनंत की बातें कठिन लगती हैं। फिर धीरे-धीरे जब उसका असली ज्ञान के साथ तारतम्य जुड़ने लगता है तब वह आगे का सत्य सुनने और समझने को तैयार होता है। फिर ऐसा दौर आता है कि उसे सत्यरूपी ज्ञान पूर्णतः समझ में आ जाता है।

एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार करने के बाद अगर खोजी वहीं रुक जाए, और समझे की आगे का ज्ञान मुझे मालूम है, अब मुझे और आगे बढ़ने की आवश्यकता नहीं है, तो उसकी यात्रा मंज़िल पाने से पहले ही बंद हो जाती है। तब इंसान को सजगता रखनी चाहिए ताकि सत्य की यात्रा कभी भी बंद न हो। वो अनंत है, विराट है, अथाह है...

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

साहब की ओर कदम...💐

हम अपना जीवन यूँ ही गुजार देने के लिए नहीं आए हैं, बल्कि कुछ लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हमें जीवन मिला है। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सत्य की खोज आवश्यक है। जिस प्रकार चातक को प्यास बुझाने के लिए सिर्फ बारिश की बूँदों का इंतजार रहता है। उसी प्रकार ज्ञान को प्राप्त करने के लिए ऐसे ही त्याग और समर्पण की दरकार होती है। यह ज्ञान साहब की अनुभूति से प्राप्त होता है। प्रेम, आनंद, गहन मौन, उनमुनि की अभिव्यक्ति ही निराकार से, साहब से मिलन की सीढ़ी है।

तो चलिए उनकी ओर कदम बढ़ाते हैं...💐💐

खुद के वजूद का अहसास...💐

मनुष्य संसार की समस्याओं के थपेड़ों से परेशान हो कर आन्तरिक शांति और वास्तविक सुख के लिए कभी न कभी आध्यात्मिकता की ओर आशा भरी नजरों देखता ही हैं। संसार में अनेक प्रकार की समस्याओं से, दुखों से, पीड़ाओ से, बाधाओं से प्रताड़ित होकर उन सबसे छुट्कारा पाने के लिए अनगिनत उपायों को करने के पश्चात् जब हमें निश्चय हो जाता है कि इन सब उपायों से वास्तविक समाधान होने वाला नहीं है तब वह किसी ऐसे उपाय का अन्वेषण करने में लग जाता हैं जहाँ नितान्त शान्ति हो।

जीवन की तकलीफें, समस्याएं व्यक्ति को भीतर से तोड़ देती है और बाहरी जगत से समस्याओं का हल नहीं मिलता। वह हताश, निराश अदृश्य सत्ता को तड़पकर पुकारता है। उस पुकार में उसकी जीवनी शक्ति शामिल हो जाती है, तब उसे प्रश्नों और समस्याओं का हल मिलता है, गहरी अनुभूति मिलती, सुकून और शांति मिलती है, परम् सत्ता का बोध होता है, खुद के वजूद का अहसास होता है।

शिष्यत्व...💐

गुरु मिलना तो सहज सुलभ है, पर शिष्य बनना, अपने में शिष्यत्व धारण करना अत्यंत कठिन है। जिस दिन शिष्यत्व के गुण विकसित होते हैं, गुरु का लाभ उसी क्षण मिलना शुरू हो जाता है। शिष्य का पहला और अंतिम लक्ष्य है गुरु में लीन हो जाना। गुरु में लीन होने पर स्वयं के विचार, स्वयं की भावनाएं, काम, क्रोध, लोभ सब विलीन हो जाते हैं। गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरि हो जाती है। उसमें न विचार होता है, न तर्क।

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प्रेम की पराकाष्ठा...💐

प्रेम का आनन्द अवर्णीय है। जिसकी तुलना संसार के किसी अन्य आनन्द से नहीं किया जा सकता। साहब के प्रेम के आनन्द में शिष्य वैकुण्ठ और मोक्ष को भी तुच्छ मानता है। प्रेम की इसी पराकाष्ठा की अनुभूति सदगुरू कबीर साहब को धर्मदास साहब और आमीन माता में हुई।

साहब कहते हैं:-
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।
जो सुख साधु संग में, सो बैकुण्ठ न होय।

आनन्द, संतोष, प्रफुल्लता, स्निग्धता और आत्म-भाव की दिव्य अनुभूतियाँ वहीं प्राप्त हो सकती हैं, जहाँ निर्मल और निःस्वार्थ प्रेम हो। प्रेम मानव-जीवन की एक महान उपलब्धि है। प्रेम विहीन जीवन शुष्क मरुस्थल के समान होता है।

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गुरु और शिष्य...💐

गुरु चाहते हैं कि मेरे प्रिय शिष्य को सारी सम्पदा मिल जाए। वो बांटने के लिये, झोली भरने के लिये सदा तैयार रहते हैं। गुरु तो एड़ी चोटी एक कर देते हैं, पसीना बहा देते हैं कि मेरी सारी सम्पदा मेरे प्रिय शिष्य को मिल जाय। मेरे प्राण, मेरी आत्मा, मेरे शिष्य को मिल जाय।

यही तो गुरु कि करुणा है, यही तो गुरु का गुरुत्व है और यही तो गुरु कि महिमा है। वो अपना सब कुछ चौबीस घण्टे अपने प्रिय शिष्य में उलेड़ने को तत्पर रहते हैं। इसलिए शिष्य को ठोकते पीटते हैं, संभालते हैं, सब कुछ करते हैं कि कैसे अपने को शिष्य के भीतर उलेड़ दें?

गुरु देते हैं तो छोटी-मोटी चीज नहीं देते। साहब कहते हैं:-
गुरु समान दाता नहीं, याचक शिष्य समान।
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान।।

यदि मन में गुरु को परमात्मा स्वीकार करने का भाव जाग गया तो फिर सारा वेद, सारे पुराण, सारा ज्ञान हृदय के भीतर अपने आप उतर जाएगा।

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विरह की पीड़ा...💐

हृदय से निकले ढाई अक्षर के शब्द 'प्रेम' से ही जीवन की सारी बात बनती है। साहब के प्रति प्रेम से ही साधना और भक्ति के बीज शुष्क मानव जीवन में पोषित और पल्लवित होता है। उनको पाने की इतनी उत्कंठा, ललक और बेचैनी हो जाए कि कुछ न सूझे, वैराग्य हो जाए, विरह भाव हो जाए। प्रेम इतना गहरा हो कि वही प्रेम और विरह परमात्मा का रूप हो जाए।

तभी उस भाव में ध्यान, उनमुनि और समाधि के पुष्प खिलते हैं। तब साहब का वह शिष्य पूरे संसार से प्रेम करता है, संसार के प्रत्येक जीव और घटनाओं में साहब की मौजूदगी का अहसास करता है। जीवन का सारा अहंकार, सारा द्वेष, सारी मलिनता दूर हो जाती। स्वयं में अहोभाव जागने लगता है, इसी अहोभाव से वह संसार को देखता है। प्रेम और विरह की पराकाष्ठा साहब के शब्दों में-

इस तन का दीवा करौ, बाती मेल्यूं जीव ।
लोही सींची तेल ज्यूं, कब मुख देखौं पीव।।

साहब का प्रेम और विरह इतना गहरा है कि भाव समझ में आते ही भक्त रो उठता है।

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मधुर मधुर अनहद धुन बाजै...💐

हृदय में साहब के लिये प्रेम होगा तो उन्हें भी अपने भक्त की चिन्ता अवश्य होगी। साहब के प्रति प्रेम होता है तभी सच्ची भक्ति बन पड़ती है। प्रेम आत्मा के परमात्मा से मिलन की पहली सीढ़ी है। अन्त में जीव और परमात्मा का मिलन, प्रणय संस्कार होता है और दोनों एक दूसरे में आत्मसात और विलीन हो जाते हैं। न जीव रहता है और न परमात्मा, केवल शुद्धतम रूप में प्रेम ही रह जाता है। यह भक्ति की पराकाष्ठा है, आध्यात्मिक यात्रा की पूर्णता है।

जगमग जोति गगन में झलकै, झीनी राग सुनावै।
मधुर मधुर अनहद धुन बाजै, अमृत की झर लावै।।

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जिन पाया तिन रोय...💐💐💐

भक्ति साहब के प्रति एक पवित्र भावना होती है, साहब के प्रति तीव्र प्रेम होता है। हमें परमात्मा से, साहब से कोई शर्त या मांग नहीं करनी चाहिए कि वह हमारी इच्छाओं की पूर्ति उसी तरह करे जिस तरह हम उन्हें पाना चाहते हैं। भक्त साहब से प्रेम रखता है, उस प्रेम में कोई शर्त नहीं होती, कोई बंधन नहीं होता। उस प्रेम में चरम उत्कंठा होती है। वह हर समय साहब को ही सोचता है और उनके नाम का सतत स्मरण करता है। नींद में, जागरण में, कार्य में, घर में, भोजन के दौरान, टहलने के दौरान, भक्त साहब के ही विचारों में डूबा रहता है। हर पल, हर क्षण साहब को ही सोचता है। यह एक तरह का जूनून है, और यह जूनून भक्त को साहब से बांधे रखता है। जब तन और मन स्थिरतापूर्वक, दृढ़तापूर्वक एवं लगातार साहब पर केन्द्रित होता है, तब वह क्षण भी आ जाता है जब वह परमात्मा से, अपने साहब से एकाकार हो जाता है। वह उस अद्वितीय प्रेमवश फुट फुटकर रो पड़ता है।

हँस हँस कंत न पाइया, जिनि पाया तिन रोय।
हँसी खेला जो हरि मिलै, तो कौन सुहागिन होय॥

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...