स्वाभाविक रूप से हर मानव में कुछ न कुछ कमियां होती ही है। लेकिन पूजनीय और जिम्मेदारी के पदों को धारण करने वाले लोग, हमें साहब का मार्ग बताने वाले लोग, साहब से हमें जोड़ने वाले महंत लोग कम से कम बंदगी करने के काबिल तो हों, उनका बाहरी आचरण तो कम से कम साफ सुथरा हो।
ऐसा नहीं है कि सब लोग बुरे हैं। हमारे आसपास बहुत से अच्छे लोग भी हैं, जो बेदाग और मर्यादित जीवन जीते हैं, साफ छवि रखते हैं। उनका साहब के प्रति समर्पण सहज ही दिख पड़ता है, और जिन्हें देखते ही मन में श्रद्धा उमड़ पड़ता है।
जिस दिन किसी व्यक्ति को साहब से महंती पंजा प्राप्त होता है उस दिन से ही वह व्यक्ति समाज में साहब के प्रतिनिधि के रूप में पहचाना जाने लगता है। तब उसका जीवन उसका नहीं रह जाता, साहब का हो जाता है। वह महंत, साहब के जीव कल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, अपना जीवन देता है।
बदले में समाज उसे क्या नहीं देता? समाज उसे सम्मान देता है, आदर देता है, धन देता है, जगत कल्याण के लिए जीने का मकसद देता है, अपने घर और हृदय में स्थान देता है, चरणों में शीश नवाता है।
ऐसे में उनसे कम से कम पारदर्शिता, निष्पक्षता, अच्छे आचरण और मानवीय गुणों की अपेक्षा तो होती ही है।
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