शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

परमात्मा की अभिव्यक्ति...💐

परमात्मा की अभिव्यक्ति की स्थिति में व्यक्ति सामान्य नही हो सकता। उस दिव्य सत्ता का स्पर्श होते ही अस्तित्व जाग उठता है। अकस्मात ही पूरे जीवन का परिवर्तन हो जाता है, मौन की गहनता में चेतनता का उदय होता है। उसी चेतनता के इर्द गिर्द ही उसके मनोभाव, विचार और जीवन ढलने लगता है। उस सर्वदृष्टा, सर्व ज्ञाता का अंश उसके अस्तित्व में समा जाता है। तब उस सामान्य से व्यक्ति में महामानव का उदय होता है।
जब वो आंखे खोलकर बाहर देखता तो उसे हर कहीं अपना ही रूप और अंश दिखाई पड़ता है। हर दुख उसे अपनी पीड़ा लगती है, जीवन और प्रकृति के हर रूप में उसे अपना ही स्वरूप नजर आता है। अपने और पराये का भाव समाप्त होने लगता है। पूरे जीव जगत को अपना परिवार स्वीकार कर लेता है। उस विराट को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है। वह मौन बोल उठता है-
मेरा मुझमे कुछ नही, जो कुछ है सो तोर।
तेरा तुझको सौंपता क्या लागत है मोर।।
सप्रेम साहेब बंदगी साहेब...


(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahebg@gmail.com


टुक टुक होए गिरे धरणी पर...💐

टुक टुक होए गिरे धरणी पर...
आज उन्होंने फिर से ढाई इंच अंदर हृदय की बात ढाई अक्षरों में कही। अच्छा लगता है जब सर्वोच्च सत्ता आम लोगों के बीच बैठकर, आम लोगों को जीने का रास्ता बताते हैं। अच्छा लगता जब वो हँसते हैं, मुस्कुराते हैं, लोगों की बड़ी समस्याओं का हल ढाई अक्षरों में कह देते हैं।

उनकी बात सुनकर जीवन का कोना कोना महक जाता है, सारी थकान, सारी पीड़ा, सारा दुख दूर हो जाता है, सारे भ्रम, दूर हो जाते हैं। जब वो कुछ कहते हैं तो फूल झरता है, रेगिस्तान में तपती जिंदगी को उनकी अमृत बून्द मिलती है, इतिहास बनता है, धरती और आसमान उन्हें सुनता है।
मन और आत्मा को फिर भी तृप्ति नही मिलती। लगता है वो सदा यूँ ही सामने रहें, कहते रहें, कहते ही रहें... और जिंदगी बीत जाए...
(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahu@gmail.com

मुक्ति...💐

खोलबाहरीन काकी की उमर करीब 45 की थी, वो गांव के आंगनबाड़ी में काम करती थी। उसे गम्भीर रोग हो गया, शरीर का ऊपरी हिस्सा ही चलता था, दोनों हाथ और कमर से नीचे का हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया था। तीन शादीशुदा बेटियाँ अपने ससुराल में रहती थी। कई बरस बीत गए, काकी खटिया में पड़ी भूख से कराहती, रोती, और चिल्लाती रहती। उसका सारा दैनिक क्रिया बिस्तर पर ही होता था।
काका ने सारी पूँजी जीवन संगिनी के दवा दारू में लगा दिया। पत्नि का दर्द देखा नही जाता था, वो टुट चुका था। बाहर से संकरी लगाकर रोटी और दवाई के जुगाड़ में दिनभर घर से बाहर रहता।
अक्सर काकी बिलखते हुए उससे कहती- "मुझे मुक्ति दे दो"। एक रात उसने काकी को जगाया, प्यार से उसके सिर को गोद मे उठाया, टपकते आंसूओं और सिसकियों को पोछते और छुपाते हुए कहा- "खोलबाहरीन आज तुम्हें दवाई पिलाना भूल गया, ले दवाई पी ले।" काकी को दवाई पिला दी, और कान में चुपके से कह दिया- "मुक्ति दे दिया तुम्हें खोलबाहरीन, मुक्ति दे दिया...।
सुबह तक पूरे गाँव मे बात फैल गयी थी कि खोलबाहरीन काकी अब न रही। काका और तीनों बेटियाँ खुश थी कि काकी को मुक्ति मिल गई, पर काकी की आत्मा कह रही थी कि उसके परिवार को मुक्ति मिल गई...
(Lekhraj Sahu)
Lekhrajsahebg@gmail.com

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...