शनिवार, 18 जनवरी 2020

साँसों की लड़ियाँ...💐

साँसों से बनी मोतियों की लड़ियाँ... न जाने कब बिखर जाए। एक एक मोतियों को ध्यान पूर्वक अथक प्रयास से धागे के महीन डोर में पिरोया था, उन्हें सहेजने और संभालने में जीवन फूंक डाला। मोतियों की लड़ियाँ अब पुरानी हो चुकी है, धागे भी जर्जर हो चले हैं। मोती की ये माला किसी भी वक्त समय की बेरहम स्पर्श से बिखर सकती है।

अब हाथ कपकंपाने लगे हैं, जुबान लड़खड़ाने लगे हैं। नजरों के सामने की आकृति भी अब धुंधली हो चली है। आँखों की कोरों से अश्कों की कुछ बूंदे बांहों को भिगो रही है। धागे की टूटन की आहट स्पष्ट सुनाई और दिखाई पड़ रही है।

शिकायत नहीं है, बल्कि अहोभाव का अहसास है। खुश हूं कि आपने मुझे भरपूर दिया, मुझ पर अपना अतुलनीय स्नेह लुटाया। जब भी जीवन मिले, जब भी इस धरा पर आने का सौभाग्य मिले, विनती है... मुझे फिर मिल जाना, सांसों की लड़ियों को धागे में फिर से पिरोना सिखाना।


साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...