गुरुवार, 20 जून 2019

नाम की तारी...💐

यह बात जरूर है कि साहब की शरण में जाकर सुकून मिलता है। लेकिन साहब की शरण से हटते ही, सत्संग से हटते ही ये सुकून, ये सुख फिर से गायब हो जाता है। कितना अच्छा हो कि हमें हर रोज और हर पल साहब की शरण में रहने का मौका मिले, और यह सम्भव होता है सतत नाम के स्मरण से।

जिस दिन नाम की तारी लगती है, जिस दिन जागते सोते, उठते बैठते, खाते पीते, काम करते भी साहब नहीं बिसरते उस दिन आप दुखों से मुक्त हो जाते हैं। जिस सहजता से सुखों को स्वीकारते हैं, उसी अहोभाग्य से और उतनी ही सहजता से समस्याओं और दुखों का भी स्वागत करते हैं, उन्हें गले लगाते हैं।

वो दशा बड़ी अलौकिक होती है। उस अलौकिक दशा में रात और दिन, अंधेरा और उजाला, सुख और दुख, तेरा और मेरा, अपना पराया का भेद मिट जाता है।

संसार के हर प्राणी, हर जीव, हर दृश्य में वह साहब की छवि देखता है, उसका जीवन साहब से एकाकार हो जाता है। धन्य हैं वो अलौकिक लोग जिनके जीवन में साहब के नाम की ऐसी तारी लागी। धन्य है उनका दिव्य और सुवासित जीवन...कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

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दुविधा...💐

चूंकि साहब फेसबुक पर हैं, और वो सबको पढ़ते भी हैं। हर किसी की खबर रखते हैं। उनके सामने किसी भी विषय पर कुछ कहने या लिखने में बड़ी घबराहट होती है, डर लगता है। जो खुद ज्ञान हैं, ध्यान हैं, प्रेम हैं, मुक्ति हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, उनके सामने भला क्या कहें और किस भाँति कहें?

जिंदगी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है, इसलिए लिखने के लिए उनके अलावा कोई और विषय भी नहीं सूझता। बड़ी दुविधा है।

मेरी बात...💐

हृदय में छोटी छोटी बातें हैं, छोटे छोटे भाव हैं, जिन्हें कहना चाहता हूं, थोड़े और सरल शब्दों में उकेरना चाहता हूं। अपनी बात अपने आप से कहना चाहता हूं।

मुझे किसी ज्ञानी की तरह ज्ञान का बोध नहीं है, न ही किसी ध्यानी की तरह ध्यान की कोई जानकारी है। मुझमें किसी कवि, लेखक या विद्वान की तरह शब्दों को सजाकर प्रस्तुत करने की कला भी नहीं है। किसी विषय का विशेषज्ञ भी नहीं हूँ, न ही किसी विशेष मत या सम्प्रदाय का आलोचक हूँ।

मुझे लिखने का शौक है। बचपन में डायरी लिखता था, लड़कपन में प्रेम पत्र लिखने लगा, और अब कुछ अन्य विषयों पर अपने हृदय के भाव लिखने की कोशिश कर रहा हूँ।

भाग्य से पिछले कुछ वर्षों में अच्छे महात्माओं से परिचय हुआ, जिन्होंने मुझे नींद से जगाया, जीना सिखाया, हाथ थामकर चलना सिखाया। उन्हीं महात्माओं ने मुझे साहब का मार्ग भी बताया। जो मुझे रुचिकर लगा, और उस मार्ग में उनकी उंगली पकड़े निकल पड़ा। उस मार्ग में चलते हुए जो महसूस किया, जो देखा, जो सुना, जिन घटनाओं का साक्षी रहा, उन्हें कहने की कोशिश करता हूँ।

कई बार कुछ लिखते लिखते अनेकों त्रुटियां हो जाती हैं, कई बार आपा खो बैठता हूँ, मर्यादा भी लांघ जाता हूँ। आप सभी मित्रों से सादर अनुरोध है कि मेरे लेखन की त्रुटियों से मुझे अवगत कराएं, अमर्यादित लेखन पर मुझे टोकें। मैं अपनी गलती अवश्य सुधारूँगा।

सप्रेम साहेब बंदगी साहेब...💐

खुशनुमा यादें...💐

चिलचिलाती गर्मी, बारिश की फुहारें, हड्डियां जमाने वाली ठंड, बसंत की बहार, शीत और ओस की बूंदे... न जाने कितनी ऋतुएँ आई और चली गई। हमनें हर ऋतुओं का लुत्फ़ उठाया, पल-पल को जिया।

महानदी के किनारे सुरम्य वादियों में दिन बिताए, सड़क किनारे ठेले में चाय की चुस्कियों का आनंद लिया, एक दूसरे के हाथों में हाथ लिए जंगलों की हरियाली देखी, खेतों के हरे भरे सुरम्य दृश्य देखे, चाँदनी रात में तारों से बातें की। जिंदगी लहकते फूलों की पगडंडियों से होकर गुजरती रही और समय पंख लगाकर उड़ गया।

जीवन में उसके आने से खालीपन भर गया, सूनापन भर गया। जैसे किसी ने नितांत खामोशी के बीच मधुर बाँसुरी बजा दी हो। वक्त का पता ही नहीं चला, लगता है ये तो कल की ही बात है। आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि उन मधुर और दिलकश लम्हों में एक पूरा जीवन जी लिया।

साँवली सी वो लड़की...💐

सूरज के उगने से पहले और गांव के जागने से पहले ही वह उसके घर के पास पहुँच जाया करता था। उसे एक नजर देख पाने की उत्सुकता में रातें करवटें बदलते गुजारती था। दिनभर उसे देखते रहने और बातें करते रहने के लिए न जाने कितने ही बहाने बनाया करता।

साँवली सी वो लड़की किसी अल्हड़ नदी सी थी, पूरे गाँव में उसकी चर्चा होती थी, सबसे मिलती, खूब हँसती, खूब बतियाती। शहर से दूर हर गर्मियों की छुट्टी में वो अपनी नानी गांव आया करती। न जाने कब वो आंखों में रच बस गई।

जामुनी रंग सा उसका चेहरा बेहद आकर्षक था, पता नहीं क्यों वो अच्छी लगती थी, हर साल गर्मियों में उसका इन्तेजार रहता था।

क्रिकेट उसे पसंद था। उसके घर के सामने की गली में, नीम के पेड़ की छांव में हमारा क्रिकेट का मैदान हुआ करता। वो मुझे डेविड बुन के नाम से बुलाती। क्रिकेट के हर शॉट पर कमेन्ट्री करती, तो कभी खिलखिलाकर हंस पड़ती, कभी झूम उठती।

वो नीम का पेड़, वो गली, वो क्रिकेट का खेल, उसकी चहकती हंसी, उसका भोलापन, वो लोग, वो दिन बड़े याद आते हैं। वो बचपन का मासूम और अव्यक्त प्यार याद आता है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...