यह बात जरूर है कि साहब की शरण में जाकर सुकून मिलता है। लेकिन साहब की शरण से हटते ही, सत्संग से हटते ही ये सुकून, ये सुख फिर से गायब हो जाता है। कितना अच्छा हो कि हमें हर रोज और हर पल साहब की शरण में रहने का मौका मिले, और यह सम्भव होता है सतत नाम के स्मरण से।
जिस दिन नाम की तारी लगती है, जिस दिन जागते सोते, उठते बैठते, खाते पीते, काम करते भी साहब नहीं बिसरते उस दिन आप दुखों से मुक्त हो जाते हैं। जिस सहजता से सुखों को स्वीकारते हैं, उसी अहोभाग्य से और उतनी ही सहजता से समस्याओं और दुखों का भी स्वागत करते हैं, उन्हें गले लगाते हैं।
वो दशा बड़ी अलौकिक होती है। उस अलौकिक दशा में रात और दिन, अंधेरा और उजाला, सुख और दुख, तेरा और मेरा, अपना पराया का भेद मिट जाता है।
संसार के हर प्राणी, हर जीव, हर दृश्य में वह साहब की छवि देखता है, उसका जीवन साहब से एकाकार हो जाता है। धन्य हैं वो अलौकिक लोग जिनके जीवन में साहब के नाम की ऐसी तारी लागी। धन्य है उनका दिव्य और सुवासित जीवन...कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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