बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

इशारों में कहिए...💐

कहते हैं परमात्मा की उपस्थिति तो हर जगह है, जगत के प्रत्येक रूप में है। वो सूक्ष्म में भी है और स्थूल में भी। वो पवन में भी है और निर्वात में, वो जड़ में भी है और चेतन में भी। वो हर अणु में है और हर परमाणु में भी। वो दृश्य में भी है और अदृश्य में भी।

जब वो संसार के हर प्राणी में मौजूद हैं, हर किसी के अस्तित्व में मौजूद है, ब्रम्हांड के हर रूप में उसकी उपस्थिति है, जब वो सार्वभौम हैं तो उनकी बात छुपाकर क्यों की जाती है? उनकी बात धीमी आवाज में क्यों बताई जाती है? उनके बारे में हर कोई इशारों में ही क्यों कहता है? जबकि हर कोई उनके बारे में जानना चाहता, उन्हें हर कोई छूकर देखना चाहता है, रहस्यों के पार झांकना चाहता है, पर्दे के पीछे छुपे राज को जानना चाहता है।

अधिकतर लोग कहते हैं परमात्मा की बात खुलकर सार्वजनिक रूप से नहीं करनी चाहिए, इशारों में बता देना चाहिए और इशारों में समझ लेना चाहिए, राज को राज ही रखना चाहिए। लोग शायद सही कहते हैं।

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वो मेरी दशा पर मुस्कराते हैं...💐

वो कहते हैं "जो हो रहा है उसका आनंद लो।" अब उन्हें कैसे बताऊं कि वहां कोई आनंद नहीं है, कोई मजा नहीं है, बल्कि वहां तो आंसू ही आंसू है, तड़प ही तड़प है, सजा ही सजा है।

भगवान कसम वो मेरा एक मिनट के लिए भी पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे साथ खाते हैं, मेरे साथ सोते हैं, मेरे साथ ऑफिस जाते हैं, मेरा काम भी वही करते हैं। रात रातभर मुझे जगाए रहते हैं, बिना बुलाए वो सपने में भी चले आते हैं, यहां तक कि टॉयलेट में भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। बहुत कोशिश करता हूँ कि उनसे पीछा छूट जाए, वो मेरे पीछे न आएं। लेकिन वो तो मेरी परछाई बनकर मुझसे चिपके हुए हैं, कभी अलग ही नहीं होते।

यार कोई ताबीज बताओ, कोई मंतर बताओ, कोई उपाय बताओ, कोई तो तरीका बताओ कि वो मेरे पीछे न आएं। कम से कम सुकून से चार पल सो तो सकूँ, शरीर सूखकर कांटा हो गया है। उन्हें मेरे ऊपर बिल्कुल भी तरस नहीं आता। ऊपर से मेरी दशा पर वो मुस्कुराते हैं, मजा लेते हैं।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...