सोमवार, 24 दिसंबर 2018

मेरे परमात्मा...💐

क्या तुम नहीं जानते परमात्मा किसे कहते हैं? साध्वी ने पूछा।

नवयुवक ने "नहीं" में सिर हिलाते हुए पूछा-
"आपने देखा है उन्हें? मुझे भी उनका दर्शन करा दीजिए, जीवन भर आपका ऋणी रहूँगा।"

साध्वी ने नवयुवक के उल्टे-पुल्टे सवालों से खीझते हुए कहा-
"परमात्मा को लड्डू समझ लिए हो... कि तुम्हारे हाथ में थमा दूँ और तुम खा जाओ..? उन तक पहुँचना है, उनका दीदार करना है तो उनके नाम की डोर पकड़ लो, नाम की चाबी से ही सत्यलोक का दरवाजा खुलेगा, परमात्मा मिलेंगे।"

नवयुवक ने फिर से प्रश्न दागा-
"परमात्मा दिखते कैसे हैं?"

साध्वी ने दीवार पर लगे "प्रकाशमुनि नाम साहब" की तस्वीर की ओर इशारा करते हुए कहा- "ऐसे ही दिखते हैं।"

नवयुवक ने फिर प्रश्न किया- "क्या परमात्मा के भी हाथ पाँव होते हैं साहब की तरह?"

साध्वी ने पुनः खीझते हुए गुस्से से कहा-
"अरे बुद्धू साहब ही परमात्मा हैं, साहब ही भगवान हैं, साहब ही सतपुरुष हैं।"

इस बार साध्वी के गुस्से को भांपते हुए नवयुवक और प्रश्न करने की हिम्मत नहीं जुटा सका, लेकिन बड़े दिनों तक "साहब" और "परमात्मा" शब्दों में ही उलझा रहा। परमात्मा के चार हाथ वाली छवि उसके जेहन में थी, और उसके लिए "परमात्मा" और "साहब" दोनों भिन्न थे।



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