गुरुवार, 3 मई 2018

आत्म मंथन...💐💐💐


चाहनाओं से रिश्ता उस दिन खत्म हो गया जब एक साधु ने जोरदार चोटकर जिंदगी का मूल हिला दिया। दरअसल वो पहला ऐसा संत था, जिसने कहा था कि उसने परमात्मा को देखा है। उस दिन जीवन की डोर उनको सौंपकर शरणागत हो गया।

वो अक्सर कहते थे जिंदगी जीना तो तभी आएगा जब खुद से खुद की मुलाकात होगी, एक ही मौका और एक ही जीवन है, चूकना बिल्कुल भी नहीं। अगर अख़्स पर पड़े धूल की परत हटाकर अपना असली चेहरा नहीं देख पाए, तो जीवन निर्लक्ष्य और बेकार हो जाएगा।

नाम में भीगी गहरी सांस अपने अंदर भर लो, अपने से मिलने की फुर्सत निकाल लो, जी उठो, चैतन्य हो जाओ, कुछ कदम तो उनकी ओर बढ़ाओ... उनके शब्द और उनका साथ जीवन को पल्लवित कर गए...

प्रार्थना के वो पल...💐💐💐


वो रात करीब दो बजे अपने बिस्तर पर ध्यान मुद्रा में तनकर बैठा अमृत कलश ग्रंथ के पन्ने पलट रहा था। कई रातों से जागा, आसपास साहब की उपस्थिति के पद चिन्ह तलाश रहा था। कमरे में अगरबत्ती और कपूर की महक फैली हुई थी, कलशे के ऊपर आम के पत्तों पर रखा दीया भी नाम की सांसे भर रहा था।

न जाने क्यों मन ही मन प्रसाद खाने का विचार उठा। सोचा सुबह चार बजे नहा धोकर आरती करके घर मे रखे दामाखेड़ा का प्रसाद ले लूंगा। तभी किसी चीज की चटकने की आवाज आई। यहां वहां बहुत तलाश किया कि इतनी जोर की आवाज किस चीज की हुई, लेकिन कुछ समझ नही आया। अमृत कलश के शब्दों और विचारों में ये रात भी गुजर गई।

सुबह चार बजे नहा धोकर फिर सांसे फेरने की इच्छा लिए अगरबत्ती जलाई, दीये में तेल डाला। तभी रखे हुए नारियल पर नजर गई, वो चटककर दो टुकडों में बंट चुका था। अवाक और आश्चर्यचकित होकर नारियल को निहारता रहा। अलसुबह एक संत से जानकारी लेने उनके पास पहुँच गया की नारियल अपने आप कैसे फूट गया? उन्होंने पूरी बात सुनी और बताया कि प्रसाद खाने की तुम्हारी इच्छा थी तो साहब ने प्रसाद भेज दिया, प्रसाद ग्रहण करो... आंखों से गिरते आँसू संभालते, बदहवास और अवाक साहब का प्रसाद खुद खाया और घर मे सबको खिलाया।

उस कमरे में वो पन्द्रह दिन बंद था, अब तो वो रोज प्रसाद खाने लगा था....

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...