उस वक्त जब तुम असहाय से थे, तकलीफों और पीड़ाओं से घिरे थे, नैय्या डूब रही थी, तब हाथ थामने का प्रणय निवेदन किया था, भरोसा दिलाया था कि साथ रहोगे। समय थोड़ा आगे क्या बढ़ा, पीठ दिखा दिए, मजबूरियां गिनाकर दामन छुड़ा लिए।
हमनें तो तुम्हें हृदय से लगाया था, बराबर की कुर्सी पर बिठाया था, हमकदम बनाया था, तुम्हारी तकलीफ़ पर हमने भी आँसू बहाया था, अपने हिस्से की रोटी भी तुम्हारे साथ बांट ली थी।
नाराज नहीं हूँ लेकिन "आदमी" की फितरत से हैरान जरूर हूं।