रविवार, 3 फ़रवरी 2019

पदचिन्ह...💐

खेतों के हरियाली भरे रास्तों से लंबे डग भरते पैदल ही उस महात्मा के पीछे वो भी चल पड़ा था, साथ मे घुमंतू लोगों का झुंड भी। एक गांव से दूसरे गांव, फिर तीसरे गांव...। घर वापिस लौटने का कोई निश्चित दिन तिथि निर्धारित नहीं था। बस वो महात्मा जहां कहते उनके पीछे चल पड़ते। न जाने ऐसी क्या बात थी उस झुंड के लोगों में कि एक दूसरे का साथ छोड़ना ही नहीं चाहते थे।

झुंड के लोग हर पग पर साहब के नाम का सुमिरण करते, चलते चलते भजन गाते। रास्ते में आने वाले नलकूपों से पानी पीते, पेड़ों की छांव में सुस्ताते, फिर अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाते। उस सफर के मूल में भक्ति की सुगंध थी, वैराग्य था, ध्यान था, ज्ञान था, परम् सत्ता की खोज थी, अल्हड़ता और नदी सी चंचलता थी।

आज पीछे पलटकर देखा, उस महात्मा और लोगों के झुंड के अमिट पदचिन्ह अब भी ज्यों का त्यों उन रास्तों पर नजर आ रहे हैं जिन रास्तों से वो लोग गुजरे थे।

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तुम वही तो नहीं...💐

कौन हो तुम जो अपने होने का अदृश्य अहसास कराते हो, इशारों में कई राज की बातें कह जाते हो। कौन हो तुम जो कभी रुलाते और कभी हंसाते हो, पर्दे के पीछे चुपके से सारा खेल रचाते हो? कौन हो तुम जो हर सुबह नींद से जगाते और हर रात प्यारी सी थपकी देकर सुलाते हो?

तुम वही तो नहीं जिसके इशारे पर पुरवाई बहती है, शाम ढ़लती है, भोर होता है। तुम वही तो नहीं जो धरती को हरे रंग से रंगते हो, जिसके स्पंदन से ब्रम्हांड गुंजायमान है, तारे और नक्षत्र निर्बाध गति से उगते और अस्त होते हैं। तुम वही तो नहीं जो रहस्य है शब्दातीत है, गुणातीत है? जिनका नाम और रूप प्रणम्य है, जिसे याद कर प्राणी मात्र का सिर श्रद्धानवत झुक जाता है, कहीं तुम वही तो नहीं?


कभी तो सामने आओ, अपने रूप से परिचय तो कराओ, तुम्हें जरा छूकर तो देखूं। सुख दुख की चार बातें कर लेंगे, साथ बैठकर चाय की प्याली का मजा ले लेंगे, एक सेल्फी ले लेंगे...

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...