लड़कपन के वो दिन सौंदर्य से लबालब थे। ओस की बूंदों से सना सवेरा हुआ करता और गोधूलि बेला की लालिमा में दिन का सूरज अस्त हुआ करता। मदमस्त दिनचर्या उसकी यादों में बीतता और खामोश खुशनुमा रातें उसे लिखते हुए रंगीन पन्नों में ढला करती।
प्रतीक्षा के दिन बड़े लंबे और खूबसूरत हुआ करते। गुजरने वाली पवन में उसकी खुशबू होती, हर दृश्य में उसका अल्हड़ चेहरा होता। इंतेजार में पल पल गिनता, क्षण क्षण जीता और क्षण क्षण मरता।
ताजे मोगरे की महक, हाथों में रची मेहंदी के चटक रंग, आंगन की मनभावन रंगोली, पूजा की थाल, मंदिर का जलता दिया, कल-कल की आवाज करती रास्ते की नदी, पंछियों का शोर...ये उन दिनों की बात है।