सोमवार, 11 जुलाई 2022

स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे का विरोध ...💐

वक्तव्य

छत्तीसगढ़ के माननीय स्कूली शिक्षा मंत्री श्री प्रेमसाय सिंह जी आपके विधानसभा वक्तव्य दिनाँक 18 जुलाई 2019 के सम्बन्ध में मेरा और हम सभी कबीरपंथियों का अभिमत इस प्रकार है, उस गम्भीरता से चिंतन एवम मनन की आवश्यकता है ।

हम आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों में कुपोषण के खिलाफ सरकार के प्रयास की प्रशंसा करते हैं, और कुपोषण के विरुद्ध सरकार के इस लड़ाई  का हम समस्त कबीर पंथी स्वागत करते हैं। आपसे विनयपूर्वक कहना चाहते हैं कि हम कुपोषण के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि कुपोषण से मुक्ति के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में अंडा वितरण के तौर तरीके से असहमत हैं।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख की संख्या में कबीरपंथी विभिन्न जिलों में निवास करते हैं। हम सभी कबीरपंथी और हमारा पूरा परिवार शाकाहारी हैं, साथ ही कुछ और भी मत एवं सम्प्रदाय के लोग भी अंडा अथवा किसी भी अन्य प्रकार के मांसाहार का सेवन नहीं करते है ।

अनेक बच्चे जो अंडा अथवा मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करते वे मांसाहार भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने में असहज महसूस करेंगे। अनेकों को भोजन में अंडा देखकर उल्टी भी हो जाती है। इसके ठीक विपरीत अगर अंडा खाने वाले बच्चों को शाकाहारी बच्चों से अलग जगह पर भोजन परोसा जाता है तो उन बच्चों में असमानता और भेदभाव बढ़ेगी ।

चूंकि सरकारी विद्यालय सार्वजनिक जगह है या दूसरे शब्दों में ये कहे तो कोई अतिसंयोक्ति नही होगी कि स्कूल विद्या की मन्दिर है । ऐस स्थिति में हमें सभी बच्चों और पालकों की हितों, भावनाओं और आस्था का ध्यान रखना होगा। हमारी तो सरकार से सिर्फ इतनी ही विनती है कि  विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्रों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं, वहां पर अंडा न परोसा जाए । यदि अबोध स्कूली बच्चों को उनके पालक अथवा अभिभावक अंडा खिलाना चाहते हैं उन्हें उनके घर पर अंडा पहुँचा दिया जाए लेकिन शिक्षा के मंदिर में अंडा बिल्कुल भी न परोसा जाए।

(1) आपने उल्लेख किया है कि एसआरएस के सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 83 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं। जबकि एक सर्वे में यह भी कहा गया है कि राज्य में 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब राज्य के 83 प्रतिशत लोग अंडे और मांस का नियमित सेवन कर रहे हैं तो 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार कैसे हो सकते हैं।

(2) प्रतिष्ठित संस्था "जामा" की सर्वे कहती है कि अंडे में बहुत ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्रॉल उपस्थित होता है, जिससे कि अंडा खाने वाले बच्चे हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से दिल की गंभीर बीमारियों के साथ ही अन्य लाइलाज बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। और हमारे नौनिहालों को अंडा परोसकर गंभीर बीमारियों का शिकार बनाए जाने की साजिश रची जा रही है।

(3) आपने देश के कुछ अन्य राज्यों के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे के वितरण का जिक्र किया है। आपको अवगत कराया जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य की अपेक्षा अन्य राज्यों में कबीरपंथियों की संख्या अपेक्षाकृत कम हैं लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख लोग कबीरपंथी हैं जो अंडा अथवा मांसाहार का सेवन नहीं करते। राज्य की इतनी बड़ी आबादी मध्यान्ह भोजन में अंडे परोसने का विरोध करती है।

(4) अनेक शोधों से पता चला है कि अंडे से ज्यादा प्रोटीन, विटामिन, फाइबर प्राकृतिक रूप से भीगे मूंग, चना, मूंगफली में पाया जाता है जो मानव के लिए उत्तम स्वास्थ्यवर्धक है। इससे उच्च स्तर का पोषण मिलता है।

(5) अनेकों शोधों से यह भी पता चला है कि मांसाहारियों का जीवन शाकाहारियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। जिसका उदाहरण अनेक धर्म ग्रन्थों में है।

अतः विशाल कबीरपंथ समाज की जनभावनाओं का ख्याल हुए हमारी मांगे पूरी की जाए और राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों के मध्यान्ह भोजन से अंडे को तत्काल हटाया जाए। अन्यथा राज्य और पुरे देश में हम कबीरपंथियों द्वारा विरोध प्रदर्शन, चक्का जाम किया जाएगा। किसी अप्रिय स्थिति की जिम्मेदार सरकार होगी।

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