रविवार, 23 जून 2019

अराधना पद्धति...💐

मेरी पत्नी नित्य गुरूमहिमा और संध्यापाठ करती है, साहब की आरती करती है, नियमपूर्वक हर पूर्णिमा को उपवास रखती है। उसे सारे नाम पान कंठस्थ है, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में किया करती है और खाली वक्त मिलने पर हारमोनियम पर साहब के भजन भी गाती है। घर में पधारे संतों के चरण पखारती है, चरणामृत और महाप्रसाद लेती है। हर परंपरा का अनुशरण करती है।

उसके उलट मैं तर्कों पर आधारित और प्रेक्टिकल में हो सकने वाले नियमों और आराधना पद्धति को अपनाने की कोशिश करता हूँ और उससे कहता हूं इन सबके लिए मेरे पास टाइम नहीं है, तुम्हीं कर लो।

अक्सर हम दोनों के बीच इन मुद्दों पर बहस हो जाया करती है। मुझे लगता है कि साहब को याद करने का सबसे आसान और सरल तरीका है नाम स्मरण है, और वो नाम स्मरण छोड़कर बाकी सबकुछ करती है। उसे लगता है कि मैं परंपराओं और मर्यादाओं का विरोधी हूँ, विद्रोही हूँ। हमारी आपस में ठन जाती है। दरअसल दोनों का उद्देश्य एक है साहब को याद करना। लेकिन रास्ते और तरीके भिन्न भिन्न हैं।

लेकिन अच्छे से जानता हूँ कि परंपराओं के पालन करने से जीवन में साहब के लिए सजगता बनी रहती है, इन परंपराएं को देखकर बच्चों में संस्कार के बीज प्रस्फुटित होते हैं, घर के वातावरण में चैतन्यता बनी रहती है। ये परंपराएं सामाजिक जीवन से भी जोड़े रखती है। इसलिए भले ही उसकी कठिन लगने वाली अराधना पद्धति में शामिल नहीं होता, लेकिन उसके क्रियाकलापों और उपासना के तरीकों का अव्यक्त भाव से आदर करता हूँ।

साहब को जीना...💐

वो मजदूर रोज ईंटे जोड़ने का काम करता है, लोगों के घर बनाने का काम करता है, लेकिन उसका खुद का घर नहीं है। जिस घर को बनाता है उसी घर में शरणार्थी के रूप में पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता है।

जब भी वो घर बनाता है सत्यनाम के सुमिरण से ईंटें उठाता है, सत्यनाम के सुमिरण से ईंटे जोड़ता है, सत्यनाम के सुमिरण से दिनभर जीतोड़ मेहनत करता है। थोड़ी बहुत जो भी मजदूरी उसे मिलती है, उसे साहब की इक्छा मानकर स्वीकार कर लेता है। साहब से वह कोई अपेक्षा नहीं रखता, बस वो साहब के नाम का खूंटा पकड़े रहना चाहता है।

जब भी कोई बच्चा बीमार पड़ता है, साहब का प्रसाद और पान परवाना खिलाता है, सत्यनाम की थपकी देकर उन्हें सुलाता है। उसके जीवन में अनेकों बाधाएं है, अनेकों समस्याएं हैं। लेकिन वो कभी साहब से शिकायत नहीं करता है, परिस्थितियों को रोता नहीं है।

जिस घर की हर ईंटे साहब के नाम से रखी गई हों, उस घर में कितनी दिव्यता होगी कल्पना करना भी मुश्किल है। उस घर में रहने वाले परिवार का जीवन भी उस मजदूर की भक्ति और साहब के नाम से सुवासित हो उठता है।

न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो हर पल साहब को जीते हैं, हर पल साहब के लिए मरते हैं। कोई चपरासी होता है, कोई शिक्षक होता है, कोई कम्प्यूटर आपरेटर होता है, कोई किसान होता है, कोई बड़ा अधिकारी होता है तो कोई व्यापारी होता है जो अपने कर्म क्षेत्र में साहब को जीते हैं।

अपने आसपास ऐसे अनेकों जीवन देखता हूँ, जो साहब की दिव्यता से आलोकित है, सुवासित है। उनका जीवन मुझे प्रेरित करता है, साहब की ओर कुछ और कदम बढाने का हौसला देता है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...