रविवार, 30 जून 2019

जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस...💐

जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस।
मुझ ही जैसा होय रहो, सब सुख तेरे पास।।

कुछ दिनों से साहब की उपरोक्त वाणी मन में घूम रही थी। सोचा उनके जैसा बनने में मुझे सब सुख मिल जाएगा। फिर क्या था, दामाखेड़ा माघ मेले में मंच पर बैठे प्रवचन देते साहब की छवि दिमाग में उभर आई। उनकी तरह मैंने भी सफेद रंग का कुर्ता पायजामा बनवाया।

कमरे में अपने को बंद कर लिया। उनकी तस्वीर के सामने आसन बनाकर उनके बैठने के तरीके की नकल करता रहा, समाधि मंदिर में उनके नारियल भेंट करने के तरीके और भाव का नकल करता रहा, उनके बोलने की नकल करता रहा, चलने की नकल करता रहा। मिनट, घंटे, दिन, रात गुजरते गए। सुख की लालसा लिए उनकी तस्वीर कई दिनों तक निहारता रहा, लेकिन कोई सुख नहीं मिला, बल्कि तकलीफ ही तकलीफ मिली। ऊपर से सिर दर्द हो गया, पीठ दर्द हो गया, हालत खराब हो गई, डॉक्टर की शरण पहुँच गया।

कई सालों बाद साहब की उपरोक्त वाणी का सही अर्थ और भाव समझ में आया। मात्र सफेद कपड़े पहनकर उनके जैसा होना संभव ही नहीं है, उन्हें जीना सम्भव ही नहीं है...

💐💐💐

शनिवार, 29 जून 2019

असमर्थ हूँ...💐

मित्रों... मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों...😊

मैं साहब की वाणियों को दोहे चौपाई की भाषा में बिल्कुल भी समझ नहीं पाता, बड़ी कठिनाई होती है। जानने और समझने की बहुत कोशिश करता हूँ, लेकिन हमेशा असमर्थ रहता हूँ और अर्थ का अनर्थ कर बैठता हूँ।

मुझे मात्र साहब के प्रवचन ही थोड़े बहुत समझ में आते हैं। फेसबुक मित्रों द्वारा पोस्ट किए गए, टेग किए गए पंक्तियों और साहब की फोटो देखकर उसे साहब से संबंधित मानकर लाइक और कमेंट कर लिया करता हूँ, "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" लिख लिया करता हूँ। लेकिन मेरी खोपड़ी के अंदर कुछ नहीं जाता।

ये बात मुझे बहुत खलती है। मैं जब भी हमारे पवित्र ग्रंथो को पढ़ने के लिए पन्ने पलटता हूँ, जम्हाई आना शुरू हो जाता है, कुछ ही देर में बोर हो जाता हूँ। कृपया कोई उपाय सुझाइए, जिससे ग्रंथों के प्रति मेरी रुचि बढ़े और आप सभी की तरह मैं भी साहब की दिव्य वाणियों का आनंद ले सकूँ...

आदर्श गृहस्थी...💐

एक संत कहा करते थे कि हम गृहस्थों के लिए साहब और वंश ब्यालिश दामाखेड़ा का गृहस्थ जीवन ही आदर्श है। हमें उनका अनुकरण करते हुए इस भव सागर से पार जाना है, बंधनों से मुक्त हो जाना है। वो हमारे परमात्मा हैं, उनके आश्रय में जीवन जीना है, उनकी छाया में सांस लेना है, फलना-फूलना और खाक हो जाना है। उनका जीवन हम गृहस्थों के लिए प्रेरणास्रोत है।

ऐसा कहने वाले संत विरले ही होते हैं, साहब के आश्रय में अपना जीवन खाक करने वाले विरले ही होते हैं। जब हम पति-पत्नी संतों के ऐसे वचन सुनते हैं तो दुखी हो जाते हैं। लगता है हम कहीं भटके हुए हैं, कहीं रुके हुए हैं, हमारा जीवन उस ओर नहीं जा रहा जिस ओर जाने की कामना करते हैं।

साहब और उनका गृहस्थ जीवन दिव्य होता है, उनमें परम् सत्ता का अंश होता है, वो खास उद्देश्य के लिए धरती पर अवतरित होते हैं। उनके धरती पर अवतरण का उद्देश्य ही जीव जगत का उद्धार होता है।

जबकि हमारा जीवन, हमारी गृहस्थी तो कीचड़ में सना हुआ है। थोड़ी दूर उनकी ओर बढ़ते हैं, उनकी ओर चलते हैं, फिर रुक जाते हैं। बार बार गिरते हैं, बार बार उठते हैं, फिर गिरते हैं...। यह क्रम सालों से चला आ रहा है। लेकिन जिंदगी वहीं की वहीं है।

शुक्रवार, 28 जून 2019

समर्पण का भाव...💐

दशहरा पर्व पर दामाखेड़ा में उस दिन समाधि मंदिर में साहब का आगमन होने को था। मैं कुछ संतों के साथ सौभाग्य से समाधि मंदिर में पहले से मौजूद था। बड़ी भीड़ थी, साहब के दर्शनों के लिए लोगों का हुजूम था। मृदंग बज रहे थे, सत्यनाम की धुन पर लोग झूम रहे थे, लोग उनकी प्रतीक्षा करते हुए जयघोष कर रहे थे।

तभी समाधि मंदिर में साहब का आगमन हुआ। साथ में पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब भी थे। पंथ श्री हुजूर साहब सभी वंश गुरुओं की समाधि में नारियल भेंट और बंदगी कर रहे थे। उदितमुनि नाम साहब छोटे थे। हुजूर साहब उनका सिर पकड़कर वंशगुरुओं के चरणों में उन्हें झुका रहे थे। मैं उन्हें दूर से माथा टेकते हुए देखता रहा। यह दृश्य अनेकों बार देखने को मिला।

उनके झुकने और बंदगी करने के भाव में सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन साहब की परंपराओं के लिए सर्वस्व समर्पित करने का भाव पाता हूँ, पीढ़ियाँ कुर्बान करने का भाव पाता हूँ।

आज मेरे दो बच्चे हैं, लेकिन समझ नहीं आता कि उन्हें साहब के प्रति झुकने का भाव, बंदगी करने का भाव, साहब के चरणों में माथा टेकने का भाव, समर्पण का भाव कैसे सिखाऊं।

मंगलवार, 25 जून 2019

पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब...💐

बचपन में उन्होंने मेरे कान में कुछ शब्द कहे थे, मेरे गले में कंठी बाँधी थी, पान परवाना देते हुए मुझे स्पर्श किया था। उनका वो दिव्य स्पर्श जिंदगी में कभी नहीं भुला। जब जवानी आई, खुद की खोज शुरू हुई तब अमृत कलश के उनके शब्दों ने मुझे उनका परिचय दिया। उनके एक एक शब्द जिंदगी में घुले हुए हैं, रचे बसे हैं। समय बीतने के साथ साथ उन्हें जानने की उत्सुकता बढ़ती ही गई। ज्यों ज्यों पन्ने पलटते गया, प्यास बढ़ती गई, खोज बढ़ती गई, उनकी ओर खींचता ही चला गया। फिर एक दिन अहसास हुआ कि वही परमात्मा हैं।

जब भी जिंदगी में कठिन लम्हें आते हैं, अमृत कलश के उनके शब्द मुझे रास्ता दिखाते हैं, उर्जा से भर देते हैं, फिर से जी उठता हूँ। मुझे आज भी अमृत कलश के उनके शब्दों के अलावा कुछ और समझ नहीं आता। अगर वो नहीं होते, उनका कोमल स्पर्श प्राप्त नहीं होता तो शायद जिंदगी में साहब भी न होते।

इस जीव जगत में जिसने भी उनके दिव्य और कोमल स्पर्श का सौभाग्य प्राप्त किया वो धन्य हो उठा, उसका जीवन महक उठा। उनके समकालीन लोग आज भी उन्हें जीते हैं, उनकी यादों को जीते हैं, और जब उनकी बात बताते हैं तो हर सुनने वाले की आँखे श्रद्धा से छलक उठती हैं। उनके बारे में कहते सुनते सारी रात गुजर जाती है लेकिन कहने और सुनने वाले नहीं अघाते।

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सोमवार, 24 जून 2019

करुण पुकार...💐

एक हल्की सी आवाज और धुंधले दृश्य से विचलित हो जाता हूँ, घबरा जाता हूँ, नींद उड़ जाती है, कई दिनों तक बेचैन रहता हूँ। लेकिन उनके पास तो हर पल लाखों करोड़ों की आवाजें पहुँचती है।

कोई स्वास्थ्य के लिए रो रहा होता है, कोई धन के लिए, कोई परिवार के लिए, कोई भक्ति के लिए, कोई प्रेम के लिए तो कोई मुक्ति के लिए। हर कोई अपना दुखड़ा उन्हें चीख चीखकर सुना रहा होता है। हर कोई दर्द से कराह रहा होता है, हर कोई तकलीफ़ों से जूझ रहा होता है, हर कोई समस्याओं में उलझा हुआ होता है।

उन चीखते चिल्लाते, छटपटाते, पुकार लगाते लोगों की करुण और दर्द से भरी आवाजें...। चारों तरफ शोर ही शोर है, चीख पुकार है, भीड़ है, भगदड़ है। चारों ओर पीड़ा से भरे वीभत्स और भयंकर दृश्य...।

जब उन्हें मानव तन में देखता हूँ तो सोचता हूँ कि उन्हें नींद कैसे आती होगी, वो कब सोते होंगे, वो खाते कब होंगे, इन सबके बीच वो जीते कैसे होंगे...

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कुंडलिनी जागरण...💐

जब कभी खास तरह के संतों से मुलाकात होती है, सत्संग होता है, गहरी बात निकलती है, तो वो अक्सर "कुंडलिनी जागरण" जैसे शब्दों की चर्चा करते हैं, और इस पर आकर बात अटक जाती है। मैं समझ नहीं पाता, और कन्फ्यूज हो जाता हूँ।

इसके आगे तो हवा में उड़ने, गायब होने जैसी बात कहते हैं और उनकी ये बातें किसी जादुई दुनिया जैसी लगती है। संतों की ऐसी बातें मुझे विचलित कर देती है। ऐसा लगता है जैसे उनके लिए खाना भी अपने आप प्रगट होता है, पानी भी अपने आप प्रगट होता है, उनके जीने के लिए रुपया भी अपने आप प्रगट होता है।

ऐसा ही है तो ऐसे संत, गृहस्थों और संसार पर आश्रित जीवन क्यों जीते हैं, उन्हें समाज और परिवार की आवश्यकता ही क्यों होती है? वो तो जिंदा रहते ही सीधे स्वर्ग लोक जा सकते हैं। फिर उन्हें धरती पर रहने की क्या जरूरत? ऐसे प्रश्नों पर उनका उत्तर होता है कि संत लोग तो जनकल्याण के लिए ही धरती पर रहते हैं। लेकिन मुझे उनका यह तर्क और उत्तर संतुष्ट नहीं करता।

क्या आप बता सकते हैं कुंडली जागरण के बारे में? क्या आप बता सकते हैं मेरे प्रश्नों के उत्तर? क्या आपने किसी को हवा में उड़ते हुए देखा है? गायब होते देखा है?

मेरे मन में यूं ही कई ख्याल आते हैं, विचार और प्रश्न आते हैं, जिसका उद्देश्य संतों का मान घटाना बिल्कुल भी नहीं है, संतों पर उंगली उठाना बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि वो सच में जनकल्याण के लिए ही जीते हैं। लेकिन क्या करूँ, न चाहते हुए भी ऐसे अजीब प्रश्न मन में आ ही जाते हैं।

रविवार, 23 जून 2019

अराधना पद्धति...💐

मेरी पत्नी नित्य गुरूमहिमा और संध्यापाठ करती है, साहब की आरती करती है, नियमपूर्वक हर पूर्णिमा को उपवास रखती है। उसे सारे नाम पान कंठस्थ है, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में किया करती है और खाली वक्त मिलने पर हारमोनियम पर साहब के भजन भी गाती है। घर में पधारे संतों के चरण पखारती है, चरणामृत और महाप्रसाद लेती है। हर परंपरा का अनुशरण करती है।

उसके उलट मैं तर्कों पर आधारित और प्रेक्टिकल में हो सकने वाले नियमों और आराधना पद्धति को अपनाने की कोशिश करता हूँ और उससे कहता हूं इन सबके लिए मेरे पास टाइम नहीं है, तुम्हीं कर लो।

अक्सर हम दोनों के बीच इन मुद्दों पर बहस हो जाया करती है। मुझे लगता है कि साहब को याद करने का सबसे आसान और सरल तरीका है नाम स्मरण है, और वो नाम स्मरण छोड़कर बाकी सबकुछ करती है। उसे लगता है कि मैं परंपराओं और मर्यादाओं का विरोधी हूँ, विद्रोही हूँ। हमारी आपस में ठन जाती है। दरअसल दोनों का उद्देश्य एक है साहब को याद करना। लेकिन रास्ते और तरीके भिन्न भिन्न हैं।

लेकिन अच्छे से जानता हूँ कि परंपराओं के पालन करने से जीवन में साहब के लिए सजगता बनी रहती है, इन परंपराएं को देखकर बच्चों में संस्कार के बीज प्रस्फुटित होते हैं, घर के वातावरण में चैतन्यता बनी रहती है। ये परंपराएं सामाजिक जीवन से भी जोड़े रखती है। इसलिए भले ही उसकी कठिन लगने वाली अराधना पद्धति में शामिल नहीं होता, लेकिन उसके क्रियाकलापों और उपासना के तरीकों का अव्यक्त भाव से आदर करता हूँ।

साहब को जीना...💐

वो मजदूर रोज ईंटे जोड़ने का काम करता है, लोगों के घर बनाने का काम करता है, लेकिन उसका खुद का घर नहीं है। जिस घर को बनाता है उसी घर में शरणार्थी के रूप में पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहता है।

जब भी वो घर बनाता है सत्यनाम के सुमिरण से ईंटें उठाता है, सत्यनाम के सुमिरण से ईंटे जोड़ता है, सत्यनाम के सुमिरण से दिनभर जीतोड़ मेहनत करता है। थोड़ी बहुत जो भी मजदूरी उसे मिलती है, उसे साहब की इक्छा मानकर स्वीकार कर लेता है। साहब से वह कोई अपेक्षा नहीं रखता, बस वो साहब के नाम का खूंटा पकड़े रहना चाहता है।

जब भी कोई बच्चा बीमार पड़ता है, साहब का प्रसाद और पान परवाना खिलाता है, सत्यनाम की थपकी देकर उन्हें सुलाता है। उसके जीवन में अनेकों बाधाएं है, अनेकों समस्याएं हैं। लेकिन वो कभी साहब से शिकायत नहीं करता है, परिस्थितियों को रोता नहीं है।

जिस घर की हर ईंटे साहब के नाम से रखी गई हों, उस घर में कितनी दिव्यता होगी कल्पना करना भी मुश्किल है। उस घर में रहने वाले परिवार का जीवन भी उस मजदूर की भक्ति और साहब के नाम से सुवासित हो उठता है।

न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो हर पल साहब को जीते हैं, हर पल साहब के लिए मरते हैं। कोई चपरासी होता है, कोई शिक्षक होता है, कोई कम्प्यूटर आपरेटर होता है, कोई किसान होता है, कोई बड़ा अधिकारी होता है तो कोई व्यापारी होता है जो अपने कर्म क्षेत्र में साहब को जीते हैं।

अपने आसपास ऐसे अनेकों जीवन देखता हूँ, जो साहब की दिव्यता से आलोकित है, सुवासित है। उनका जीवन मुझे प्रेरित करता है, साहब की ओर कुछ और कदम बढाने का हौसला देता है।

शनिवार, 22 जून 2019

मैली चादर...💐

जीवन में इतनी मलिनता है कि ये शरीर उनके ओजस्वी और दिव्य स्वरूप का दर्शन-बंदगी करने के काबिल ही नहीं है, उन्हें स्पर्श करने के काबिल ही नहीं है। काम, क्रोध, लोभ, माया और अहंकार की मैली चादर से जिंदगी ढंकी हुई है।

न जाने कितनों को धोखा दिया, न जाने कितनों से झूठ बोला, न जाने कितनों का दिल तोड़ा, न जाने कितनी बार लालच किया, न जाने कितने ही व्यर्थ के प्रपंचों में पड़ा रहा। पूरा जीवन ही कीचड़ से सना है। और यह सिलसिला अनेक जन्मों से निरंतर चला आ रहा है।

गले में उनके नाम की कंठी भी नहीं बाँधी, कभी उनकी आरती नहीं गाई, कभी संध्या पाठ भी नहीं की, कभी श्रद्धा पुर्वक पान परवाना नहीं लिया, कभी मेला नहीं गया। कभी हृदय खोलकर संतों के शरणागत नहीं हुआ, उनसे बहस करता रहा, तर्क कुतर्क करता रहा।

परमात्मा के लिए हृदय के कपाट कभी खोले ही नहीं, उन्हें कभी अंतरतम से पुकारा ही नहीं। लेकिन अब पश्याताप होता है, और उनके सामने जाने में लाज आती है। समझ नहीं आता कि अपने विचारों की मलिनता और जीवन में फैली गंदगी उनसे कैसे छुपाऊँ। किस विधि अपना हृदय लेकर उनके पास जाऊँ।

दिल करता है...💐

दिल करता है घर में बने हर स्वादिष्ट सब्जी और व्यंजन उन्हें ले जाकर खिलाऊं। मेरे पसंद की तिवरा भाजी, बोहार भाजी, मुनगा भाजी उन्हें भेजूँ। घर की बाड़ी से खट्टी इमलियाँ तोड़कर भेजूँ, आम के पेड़ों से ताजे खट्टे मीठे आम भेजूँ। जब वो किसी कार्यक्रम से थककर आएं तो उनके पैर दबाउं, ठंडे और शीतल तेल से उनकी मालिश करूँ। उन्हें सोते हुए निहारूँ।

दिल करता है उन्हें यह भी बताऊं की एक सप्ताह से तबियत खराब है, बिस्तर पर पड़ा हूँ। इसके लिए उनसे नाराजगी जताऊं। दिल करता है उन्हें यह भी बताऊं की छोटी बच्ची अब एक साल की होने वाली है, और बड़ी बेटी इस साल दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली है।

दिल करता है उन्हें यह भी बताऊं की जब भी आप सामने आते हैं रो पड़ता हूँ, जिंदगी बड़ी मलिन है और आपके सामने जाने में लाज आती है। इसलिए दूर से ही छुप छुपकर आपको देखता हूँ।

दिल करता है हर पल और हर सांस का हाल उन्हें सुनाऊं, जिंदगी के हर छोटी बड़ी घटनाओं और पलों को उनसे कहूँ, उन्हें मुस्कुराते देखने के लिए उनकी तकलीफें अपनाऊँ।

दिल करता है उन्हें हर रोज प्रेम पत्र लिखूं और बार बार कहूँ - "शुक्रिया जिंदगी देने के लिए, सांसे देने के लिए, सुंदर जगत के मनमोहक नजारे दिखाने के लिए, अपनाने के लिए, चरणों में थोड़ी सी जगह देने के लिए ...।

दिल करता है उन्हें यह भी कहूँ, दिल करता है उन्हें वह भी कहूँ...

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शुक्रवार, 21 जून 2019

राजयोग...💐

राहु की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा चल रही है। जनम कुंडली के अनुसार यह योग 2024 तक चलेगा। जो मारकेश और अनिष्ठ कारक है। शरीर को कष्ट, धन की हानि और गृहस्थी में समस्या पैदा करता है। समय पक्ष में नहीं है, लिए गए निर्णय विफल सिद्ध होंगे। अच्छे स्वास्थ्य के लिए चार रत्ती का मूंगा गंगाजल में स्नान कराकर मंगलवार को धारण करो। नौकरी में तरक्की के लिए सात शनिवार अनार के फूल शहद में डुबाकर नदी में प्रवाहित करो। खुशहाल गृहस्थी के लिए सात सोमवार शिवजी और पार्वती को बेल पत्र और दूध अर्पित करो। सब मंगल ही मंगल होगा।

2024 से गुरु की महादशा प्रारंभ होगी, जो राजयोग का कारक होगा। साथ ही कुंडली के दसवें भाव में बुधादित्य योग बना हुआ है, जिससे जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की होगी, लक्ष्मी बरसेगी। दाहिनी बांह में हल्दी की गांठ बांध लेना, केले के वृक्ष की पूजा करना। सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा। पंडित जी ने यही बताया था।

राजयोग की बात सुनकर नींद उड़ी हुई है। एफिल टावर और ताजमहल के पास बंगला बनाने का सोच रहा हूँ। बुर्जखलिफ़ा का एक फ्लोर भी ले लूंगा। लासवेगास में शॉपिंग करने जाऊंगा, शाहरुख खान को अपने बर्थडे पर डांस करवाऊंगा, ट्रंप, पुतिन, और मोदीजी को भी डिनर पर इनवाइट करूँगा, ऑडी, रोल्स रॉयल की लाइन होगी, अम्बानी मेरे पास कर्जा लेने आएंगे, एक चार्टर्ड प्लेन भी रख ही लूंगा।

क्या लागत है मोर...💐

उस नवयुवक के मन में साहब को जानने की गहरी प्यास थी। उसने कुछ महीने संतो की शरण में बिताए, सत्संग किया, ध्यान किया, साहब को याद किया, साहब के नाम का रस चखा। उसे संतों की संगत रास आने लगी। सफेद लिबास में ओजमय, शांति और संतुष्टि से दमकता संतों का चेहरा उसे आकर्षक लगता।

संतजन अक्सर कहा करते थे जगत में अपना कुछ भी नहीं है-
"मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोर।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लागत है मोर।।"

एक दिन उस नवयुवक को भी अहसास हुआ कि उसके जीवन में जो कुछ भी है, वो सबकुछ परमात्मा का है, साहब का है, जीव जगत का है। उसे तन, मन, धन और जीवन साहब ने जनकल्याण के लिए दिया है।

एक दिन सड़क किनारे एक मैले कुचैले वस्त्रों से लिपटी, छोटे से बच्चे को लिए महिला ने भीख मांगने के उद्देश्य से उसकी ओर हाथ बढ़ाया। वो नवयुवक उसे वहीं रुकने को कहकर पास के एटीएम गया, अठारह हजार रुपए की सारी जमा पूंजी निकाल लाया और उस महिला के हाथ में थमाकर आगे बढ़ गया।

संतों को जब ये बात पता चली तो वो नवयुवक पर आग बबूला हो गए, खूब खरी खोटी सुनाई। नवयुवक ने कहा- "आपका ही दिया ज्ञान है, जिसे जी लिया।"

आखिर उन संतों ने उस नवयुवक को क्यों डाँटा होगा? नवयुवक से वो संत क्यों खुश नहीं हुए? नवयुवक तो साहब की वाणी को जीने की कोशिश कर रहा था।

आम जिंदगी और अवसर...💐

दरअसल यही आम जिंदगी है, आम जिंदगी की मुसीबतें थमने का नाम नहीं लेती। व्यक्ति हर तरफ से असहाय होता है। और यही आम जिंदगी, तकलीफों और परेशानियों से घिरी परिस्थिति साहब से जुड़ने का सुनहरा अवसर भी होता है। जब दुखों और परेशानियों का पहाड़ उस पर टुटता है, कहीं से भी उसे कोई मदद नहीं मिलती, तब दहाड़ मारकर साहब को मदद के लिए पुकारता है। वह चिर निद्रा से जागता, साहब को याद करता है। मेरी दृष्टि में यही आम जिंदगी श्रेष्ठ है, यही वो पल होता जिस पल साहब मिल सकते हैं, हमारी हृदय की गहरी पुकार पर साहब हमारा हाथ थाम सकते हैं।

विपरीत परिस्थितियों से घिरी जिंदगी में बेपनाह तड़प होती है, तलाश होती है, गहरी प्यास होती है। बस तड़प को, उस प्यास को, उस तलाश को साहब से जोड़ दें तो बात बन सकती है।

आम जिंदगी की परेशानियाँ...💐

लाख जतन कर लो, लेकिन हर महीने पैसे कम पड़ जाते हैं। सेलेरी आने के पहले ही खर्चों के लिए रास्ता तैयार रहता है। परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य, चिकित्सा, दवाइयों का व्यय, बच्चों की शिक्षा और ऑटो का खर्च, पेट्रोल का खर्चा, मोटर साइकिल की सर्विसिंग, मोबाइल का रिचार्ज, टीवी का रिचार्ज, घर का किराया, रोज की सब्जी भाजी, हर महिने का आटा और चावल, बिजली का बिल, तेल, नमक, मिर्ची, हल्दी, धनिया जैसे आवश्यक सामानों का खर्च, परिवार की छोटी छोटी जरूरतें और इक्छाओं पर व्यय, आकस्मिक ख़र्चे...उफ़ लिस्ट बड़ी लंबी है।

दूसरों की नौकरी की तब भी पैसे कम पड़ते थे, खुद का व्यवसाय करके देखा तब भी पैसे कम पड़ते थे, सरकारी नौकरी करके देखी फिर भी पैसे कम पड़ते हैं।  हर महीने चिरकुट दोस्तों से उधारी मांगे बिना काम ही नहीं चलता। एटीएम से निकली पर्ची भी हर बार जीरो बैलेंस बताती है।

जेब खाली रहने से मन में बेचैनी रहती है, मन उदास रहता है, कांफिडेंस खत्म हो जाता है। घर चलाने में अच्छे अच्छे मैनेजमेंट की पढ़ाई करने वालों का तेल निकल जाता है। और ये हाल सिर्फ मेरा ही नहीं है।

तो क्या सुख सिर्फ पैसों से है? इस समस्या का आखिर सोलुशन क्या है? क्या ज्यादा पैसे कमाने से वो फिर से कम नहीं पड़ेंगे?

गुरुवार, 20 जून 2019

नाम की तारी...💐

यह बात जरूर है कि साहब की शरण में जाकर सुकून मिलता है। लेकिन साहब की शरण से हटते ही, सत्संग से हटते ही ये सुकून, ये सुख फिर से गायब हो जाता है। कितना अच्छा हो कि हमें हर रोज और हर पल साहब की शरण में रहने का मौका मिले, और यह सम्भव होता है सतत नाम के स्मरण से।

जिस दिन नाम की तारी लगती है, जिस दिन जागते सोते, उठते बैठते, खाते पीते, काम करते भी साहब नहीं बिसरते उस दिन आप दुखों से मुक्त हो जाते हैं। जिस सहजता से सुखों को स्वीकारते हैं, उसी अहोभाग्य से और उतनी ही सहजता से समस्याओं और दुखों का भी स्वागत करते हैं, उन्हें गले लगाते हैं।

वो दशा बड़ी अलौकिक होती है। उस अलौकिक दशा में रात और दिन, अंधेरा और उजाला, सुख और दुख, तेरा और मेरा, अपना पराया का भेद मिट जाता है।

संसार के हर प्राणी, हर जीव, हर दृश्य में वह साहब की छवि देखता है, उसका जीवन साहब से एकाकार हो जाता है। धन्य हैं वो अलौकिक लोग जिनके जीवन में साहब के नाम की ऐसी तारी लागी। धन्य है उनका दिव्य और सुवासित जीवन...कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

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दुविधा...💐

चूंकि साहब फेसबुक पर हैं, और वो सबको पढ़ते भी हैं। हर किसी की खबर रखते हैं। उनके सामने किसी भी विषय पर कुछ कहने या लिखने में बड़ी घबराहट होती है, डर लगता है। जो खुद ज्ञान हैं, ध्यान हैं, प्रेम हैं, मुक्ति हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, उनके सामने भला क्या कहें और किस भाँति कहें?

जिंदगी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है, इसलिए लिखने के लिए उनके अलावा कोई और विषय भी नहीं सूझता। बड़ी दुविधा है।

मेरी बात...💐

हृदय में छोटी छोटी बातें हैं, छोटे छोटे भाव हैं, जिन्हें कहना चाहता हूं, थोड़े और सरल शब्दों में उकेरना चाहता हूं। अपनी बात अपने आप से कहना चाहता हूं।

मुझे किसी ज्ञानी की तरह ज्ञान का बोध नहीं है, न ही किसी ध्यानी की तरह ध्यान की कोई जानकारी है। मुझमें किसी कवि, लेखक या विद्वान की तरह शब्दों को सजाकर प्रस्तुत करने की कला भी नहीं है। किसी विषय का विशेषज्ञ भी नहीं हूँ, न ही किसी विशेष मत या सम्प्रदाय का आलोचक हूँ।

मुझे लिखने का शौक है। बचपन में डायरी लिखता था, लड़कपन में प्रेम पत्र लिखने लगा, और अब कुछ अन्य विषयों पर अपने हृदय के भाव लिखने की कोशिश कर रहा हूँ।

भाग्य से पिछले कुछ वर्षों में अच्छे महात्माओं से परिचय हुआ, जिन्होंने मुझे नींद से जगाया, जीना सिखाया, हाथ थामकर चलना सिखाया। उन्हीं महात्माओं ने मुझे साहब का मार्ग भी बताया। जो मुझे रुचिकर लगा, और उस मार्ग में उनकी उंगली पकड़े निकल पड़ा। उस मार्ग में चलते हुए जो महसूस किया, जो देखा, जो सुना, जिन घटनाओं का साक्षी रहा, उन्हें कहने की कोशिश करता हूँ।

कई बार कुछ लिखते लिखते अनेकों त्रुटियां हो जाती हैं, कई बार आपा खो बैठता हूँ, मर्यादा भी लांघ जाता हूँ। आप सभी मित्रों से सादर अनुरोध है कि मेरे लेखन की त्रुटियों से मुझे अवगत कराएं, अमर्यादित लेखन पर मुझे टोकें। मैं अपनी गलती अवश्य सुधारूँगा।

सप्रेम साहेब बंदगी साहेब...💐

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...