कहते हैं सत्य को जानना बहुत आसान है, लेकिन उस तक पहुँच इसलिए नहीं पाते क्योंकि अक्सर हम उसे मनोरंजन की तरह ले रहे होते हैं। जानने की ललक में तीव्रता नहीं होती है, गहरी प्यास नहीं होती है, लगन नहीं होता है। सत्य की भूख में जब तक जलकर राख न हो जाएं, तब तक वह पहुँच से दूर ही रहता है।
मुक्ति की राह संतो की संगति से आसान हो जाती है।
"बुद्धं शरणम् गच्छामि का सामान्य अर्थ यही लगाया जाता है, कि बुद्ध की शरण लेता हूँ या जाता हूँ, किन्तु इसका वास्तविक अर्थ है, किसी भी अच्छे संत या जागे हुए व्यक्ति के समीप जाना ! वही मोक्ष के अनुभव का सर्वोत्तम साधन बन जाते हैं !”
कहते हैं-
”आत्मा भी अंदर है,
परमात्मा भी अंदर है,
आत्मा के परमात्मा से मिलने का,
रास्ता भी अंदर है”
”आत्मा भी अंदर है,
परमात्मा भी अंदर है,
आत्मा के परमात्मा से मिलने का,
रास्ता भी अंदर है”
जिस दिन परमात्मा को याद करते करते अपने में डूब मरते हैं, इक्छाएँ और चाहनाएँ जलकर राख हो जाती है, उस दिन अंतर्मन में प्रकाश होता है, अंतरात्मा में फूल खिलते हैं, हृदय परमात्मा की दिव्य सुगंध से भर उठता है, वो मिलते हैं, परम् सत्ता का मौन स्पर्श महसूस होता है।