मतदान के कुछ दिन पहले ही गोपाल की झोपड़ी में नेताजी के खास आदमी की मार्शल गाड़ी आकर रूकती है। सफेदपोश खास आदमी कहता है- "पूरा इंतेजाम कर लिए हैं, गाड़ी सुबह 7 बजे तुम्हारे घर पहुँच जाएगी, वोटिंग के बाद प्लेन, मसाला, टंगड़ी की पूरी व्यवस्था है। साथ ही भैयाजी आपको कुछ लिफाफे के पैकेट भी भेंट करेंगे।"
चुनाव आते ही सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, कर्मचारी संगठन अपने हित साधने में एड़ी-चोटी एक कर देते हैं। ऐसे में बेचारे गोपाल की आंखों में भी एक खोली के पट्टे वाले घर का सपना तैरना बड़ी बात नहीं है।
वो नेताजी के खास आदमी से पहले की भांति ही डील पक्की करता है। घर के चार सदस्यों के वोट के बदले एक खोली का पक्का घर।
मतदान होता है, नेताजी चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन फिर पांच साल बीतने को आए, वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। गोपाल अब भी माता-पिता, पति-पत्नी और दो बच्चों के साथ उसी कच्चे मकान में रहता है। अब गोपाल नेताओं को अच्छी तरह से समझने लगा है, और अपनी नियति भी।
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