सुमिरन ध्यान... सारी समस्याओं का हल। चैतन्यता की ऊँचाई और समर्पण की गहराई है। नितप्रति कम से कम आधे घंटे का ध्यान जीवन में शामिल कर लेने से साहब मिल सकते हैं। ज्यों-ज्यों सुमिरन ध्यान का समय बढाते हैं, त्यों-त्यों साहब के और करीब पहुँचते जाते हैं।
सुमिरण ध्यान में साधक अपनी हर बुराई की बलि देता है। फिर एक दिन ऐसा आता है जब मनोमस्तिष्क बुराइयों से विहीन हो जाती है, मनोमय साहब की दिव्यतम रौशनी से भर जाता है, तब चुपके से आपका हाथ साहब थाम लेते हैं।
साहब की वाणी है:-
ज्यों मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि फिरे, कहत कबीर कबीर।।
एक अदृष्य ऊर्जा पीछे लग जाती है, दरअसल यह ऊर्जा साहब की होती है, वो साहब ही होते हैं। जीवनी शक्ति का मिलन परमात्मा से हो जाता है, साहब से हो जाता है। सुरति जाग उठती है। तब चहुँ ओर साहब नजर आते हैं, उनकी मनोरम कृति नजर आती है। साधक साहब का विराट, दिव्य, आभामय स्वरूप का दर्शन कर प्रेममय रो पड़ता है।
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