शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

साहब के लिए जुनून ...💐

अक्सर नाम सुमिरण की बात आने पर कुछ लोग कहते हैं कि साहब के दर्शन कर लिए, प्रसाद ग्रहण कर लिए, गुरु महिमा और संध्यापाठ कर लिए तो सुमिरण की क्या आवश्यकता है। बाकी का समय तो दैनिक कार्यों को निपटाने का होता है, जिम्मेदारियों को निभाने का होता है।

वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि नाम सुमिरण दिनभर नहीं हो पाता, हर स्वांस में नहीं हो पाता, बीच बीच में छूट जाता है, मन बीच बीच में कहीं भटक जाता है। इस विषय पर लोगों की अलग अलग मान्यताएं हैं।

दरअसल साहब के नाम का सुमिरण भी एक तरह की आध्यात्मिक पढाई ही है। इसमें कोई एक सप्ताह में साहब तक पहुंच जाता है, तो कोई तीन या छै महीने में। कुछ लोगों को तो तत्क्षण साहब मिल जाते हैं और कुछ लोग जीवन भर साहब की खोज में यहां वहां भटकते रह जाते हैं।

सफलता के लिए जुनून की हद क्रॉस करनी होती है। "जूनून मतलब जुनून"। शरीर की क्षमताओं से आगे, इन्द्रियों की क्षमताओं से आगे... जहाँ जाकर सबकुछ खो जाता है, खुद का अस्तित्व मिट जाता है... साधक भी। केवल साध्य रह जाता है। 

तब नजरों के सामने एक नई दुनिया प्रगट होती है, नए संगीत की धुन सुनाई देती है। साहब उस नई दुनिया को देखने के लिए दिव्य आंखें प्रदान करते हैं, और नए संगीत को सुनने के लिए दिव्य कान। तब चारों पहर हुजूर नजरों के सामने होते हैं। जीवन के सारे प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं। निशांत... निर्विकार... निःशब्द...बोध... जीवन की पूर्णता।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...