गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

नाम का दीपक...💐

खामोशी से सांसो में घुलती नाम की खुमारी बढ़ती रही, अंदर ही अंदर पलती रही। अंधेरे से सुरंग में उसे किसी रौशनी की तलाश थी, जिंदगी की तलाश थी। बरसों पहले अपने अंतरतम में कलश रखकर दीया जलाया था। उसकी रौशनी से उसे मार्ग दिखता रहा, वो आगे बढ़ता रहा। एक दिन दीये की लौ धीमी हो गई, बुझने को आई... और बुझ गयी। अंधेरे में उसे दूर तक कोई नजर नही आता, सिर्फ काले काले से कुछ अजीब आकृति वाली छवियाँ थी, जिसे पीड़ा, दर्द, दुख, बेबसी, लाचारी कहते हैं।
एक दिन अकस्मात उस अंधेरे में जादू हुआ, दीया फिर से जल उठा, कोई फरिश्ता कहीं से प्रगट हुआ, जिसे लोग संत कहते हैं। उस फरिश्ते ने हाथ पकड़कर अंधेरे से सुरंग के बाहर निकाल लिया। रौशनी के स्पर्श से काली आकृतियां हट चुकी थी। प्रकाशित और खुले आकाश के नीचे आकर उसकी तलाश पूरी हो गई। प्रतीक्षा की वो घड़ी जिंदगी जितनी लम्बी थी।
कलशे पर रखा दीया अब भी जल रहा है, उसे अब बड़ी, और भी अंधेरी, और भी ज्यादा गहरी सुरंग पार करनी है...
(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahebg@gmail.com

शून्य शिखर...💐

शून्यता के शिखर पर बैठा व्यक्ति सबकुछ समर्पित कर चुका होता है। शून्य के जितने अंदर वह जाता है, और भी बड़े शून्य आकाश का उसे आभास होता है। उसकी यात्रा समाप्त ही नही होती, एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा फिर पाँचवा शून्य शिखर... यह क्रम चलते रहता है। दरअसल वह शून्यता चेतनता का चरम होता है।
शून्य शिखर पर वह अतीन्द्रिय और दिव्य सत्ता के स्पर्श को महसूस कर रहा होता है और उसी के अनुसार उसके सारे कार्य और जीवनशैली निर्धारित हो जाते हैं। उस शून्य चेतनता की अवस्था में वह सामान्य जीव जगत से संतुलन बनाकर जीने की बहुत कोशिश करता है, लेकिन असफल ही रहता है। वो इस जीव जगत में सबकी भाषा समझता है, सबको समझता है, लेकिन उसकी गहराई और शून्यता किसी सामान्य मानव के कल्पना से भी परे की बात होती है।
अनंत से संबंध जुड़ते ही उसे अंनत को देखने वाली आंखे और अनंत की आवाज सुनने वाले कान मिलते हैं। वह उस परमात्मा को, उस अनंत को अपने जीवन की डोर सौंप देता है। उसका जीवन साहब की मस्ती और खुमारी से ओतप्रोत हो जाता है। तब उसे साहब की लालिमा चहुँ ओर नजर आता है, और वह उसी मदहोशी में सर्वदा लीन रहना चाहता है...
(Lekhraj Sahu)
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पुर्णिमा...💐

आज माघपूर्णिमा है। सुबह से ही रसोई में बर्तन पटकने की आवाज आ रही है। आज रसोई की तरफ से आती कुलबुलाहट की आवाज से बीपी अलसुबह नौ बजे से ही बढ़ा हुआ है। घर में कुछ लोग उपवास पर हैं, कुछ नही खाएंगे। लेकिन शाम को खीर बनेगी, अन्य दिनों की अपेक्षा रसोई में ज्यादा अच्छा बनेगा।
इधर वो बेचारा घबराया हुआ है, महीने का आख़री दिन है, पगार कब का खत्म हो चुका है। महीने की पगार को बिटिया के स्कूल, घर का किराया, खुद की दवाइयाँ, पत्नी की दवाइयाँ और इलाज, दहेज में मिले फटफटी के पेट्रोल, जिओ सिम के रिचार्ज ने पलक झपकते ही डकार लिया। पड़ोस के भलमनसाहत दुकानदार ने उधार किराने का सामान दिया दे दिया है।
दिनभर दोनों पति पत्नी कई बातों को लेकर खूब लड़े। शाम तक दोनों तमतमाए हुए थे। पत्नी ने आरती जलाई, दोनों ने गले फाड़कर आरती गायी-
आरती सत्यनाम की कीजे, तन मन धन ही न्यौछावर कीजे।
उंगलियां चाटकर दोनों ने बिना दूध की खीर खाई। उसकी हर पूर्णिमा कुछ ऐसे ही बीतती है। आम गृहस्थी की किचकिच और समस्याएं ऐसी की जीवन बीत गया पूर्णिमा मनाते और उपवास करते हुए, फिर भी उसके जीवन मे उजास नही आया।
लेकिन उसने पूर्णिमा मना ही लिया...
(Lekhraj Sahu)
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नई सुबह...💐

किसी उजाले की खोज में निकला था, सुबह होने की प्रतीक्षा थी, ओस की बूंदों से नहाया हरा घास का मैदान सामने था, वातावरण में धुंध फैला था, आसपास के पेड़ पौधे अस्पष्ट से थे, पर लक्ष्य एकदम साफ दिख रहा था।

घास पर जैसे ही पैर रखे, ठंड उसके हड्डियों तक पहुँच गया। जीने की तड़प, एक सांस ज्यादा लेने की जिद थी, कुछ दिन और जीना चाहता था। दर्द से कराहता दौड़ पड़ा।

मौत की छुअन से लौटा वह इंसान जिंदगी का मतलब समझ चुका था। वो बड़ी जल्दी में है, बहुत सारे काम बाकी है, अब वो दौड़ता है, खूब दौड़ता है। एक सांस में बहुत सारे अधूरे काम कर लेना चाहता है। रोज परमात्मा को शुक्रिया कहता है एक दिन और देने के लिए, चंद सांसे और देने के लिए।
शुक्रिया साहब...

(Lekhraj Sahu)
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अनुत्तरित प्रश्न...

गर्मियों की चाँदनी रातों में अक्सर आँगन में लेटे हुए गहरे आसमान की ओर ताकता और ओरछोर नापने की कोशिश करता। टिमटिमाते सितारों को जोड़कर अजीब अजीब सी आकृतियाँ बनाता, सोचता जब धरती गोल है और घूम रही है तो हम गिरते क्यों नही? धरती और आकाश की रचना करने वाला आखिर कौन है? रहता कहाँ है? न जाने क्यों गहरे काले आसमान में वो देवी देवताओं और साहब के पदचिन्ह खोजा करता।
पतली चादर में दुबके कनखियों से चारों ओर देखता, कहता कि आज वो आएगा तो उसे देख ही लेगा कि वो कौन है जो रात को दिन और दिन को रात बनाता है? वो रातभर अपने आँगन से चांद का पीछा किया करता।
कल वो अपने दादा से दिन और रात बनाने वाले का पता पूछता था, आज उसकी बेटी दिन और रात बनाने वाले का पता उससे पूछती है। प्रश्न का उत्तर न कल था और न आज है, कई प्रश्न अनुत्तरित हैं...
(Lekhraj Sahu)
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कोई तो है...💐

कोई तो है उस झीने आवरण के पीछे, जो आवाज देता है, पुकारता है, जगाता है, राह दिखाता है, हल्के से मधुर स्पर्श के साथ अपने आगोश में ले लेता है। कुछ तो ऐसा है जो शब्दों और भावों से भी अछूता है। कोई तो है जो अब तक अनकहा सा है, अनसुना सा है। उस आवरण की चादर जिंदगी पर फैली हुई सी है।
कुछ मीठी सी बात है, कुछ दर्द भी है, कुछ बेचैनी है, कुछ मदहोशी है, कुछ ख़ामोशी भरा गीत है, कोलाहल के बीच भी अनोखा सुकून है, सांसो के अनवरत गीत का अजब संतुलन है।
(Lekhraj Sahu)
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स्वयं का बोध...💐

कहते हैं जीवन के कर्म इतने गंदे हैं की उस दिव्य सत्ता के नाम का स्मरण करने योग्य भी नही हैं, उनके रूप का दर्शन करने योग्य भी नहीं हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ गलत कर्मों और विचारों में लिप्त है। मन है कि उनके रूप और नाम पर ठहरता ही नही है। उनसे प्रेम हो भी तो कैसे? मन की मलिनता इतनी ज्यादा और गहरी है की इतना भी ज्ञान और सुध नही है कि उस मलिनता को समझ भी पाएं, उसका बोध भी हो। अस्तित्व पर गलत कर्मों, अनुचित विचारों की बेल फैल गयी है। जब उस मलिनता का बोध होगा, तभी तो कोई सुमिरन ध्यान के साबून से उसे धोने का उपाय करें।

साहब का शरण ही वह उपाय है, साहब की वाणी और सत्संग ही वो उपाय है, जिससे अपने गलत कर्मों का बोध होता है, मलिनता का बोध होता है, अस्तित्व पर फैले कुविचारों का बोध होता है।

बोध होते ही जीवन का जागरण होता है, अस्तित्व का जागरण होता है। मानव जीवन के दायित्वों और कर्तव्यों का अहसास होता है। जब मन की मलिनता समाप्त होती है, सुमिरन का तार सुरति से जुड़ता है तब परमात्मा आकर खुद ही हाथ थाम लेते हैं। उनकी ओर एक कदम बढ़ाने से वो खुद की ओर चार कदम बढ़ाते हैं।

साईं से सब होत है, बंदे से कछु नाही...💐


(Lekhraj Sahu)
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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...