गुरुवार, 23 दिसंबर 2021

साहब क्यों मिलें ...💐

साहब मेरे गुरु हैं, मेरे परमात्मा हैं। लेकिन वो मुझसे भला क्यों मिलें? मुझसे मिलने का कोई कारण तो बनता नहीं। साहब ने दीक्षा दे दी, स्मरण करने के लिए नाम दान दे दिया। बस उनका काम एक गुरु के रूप में यहीं पर खत्म हो जाता है। 

दीक्षित होने के कुछ समय बाद नाम स्मरण छोड़कर अपनी भौतिक तकलीफें उन्हें बताने और समस्या का उपाय पूछने हम उनसे मिलने दामाखेड़ा पहुंच जाते हैं। जबकि सारी समस्याओं का हल "नाम का स्मरण" उन्होंने हमें पहले ही दे दी है। लेकिन हम निर्लज्ज तब भी साहब से मिलने की जिद पर अड़े रहते हैं।

उनके करोड़ों शिष्य हैं, वो भी साहब के प्रति समर्पित जीवन जीने वाले। तो क्या वो सबसे मिलते फिरें। हर कोई उनके चरणों में गिरकर सेल्फी लेना चाहता है, तो क्या साहब सभी शिष्यों के साथ फोटो खिंचवाते रहें?

माना शारिरिक, आर्थिक, मानसिक और व्यक्तिगत तकलीफों/समस्याओं में व्यक्ति घिरा रहता है, जब उसे कहीं सहारा नहीं मिलता, तब वह बेसहारा होकर अपने साहब की शरण आता है और विनती करता है कि इस विपरीत परिस्थितियों से उबार लीजिए। इन परिस्थितियों में शिष्य भी अपनी जगह पर ठीक है। अंत में वह साहब का आश्रय चाहेगा ही।

लेकिन सामान्य परिस्थितियों में जब हम दामाखेड़ा जाएं तो हमें साहब से ये उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वो हमसे मिलेंगे ही, वो हमारी समस्या पूछेंगे, हालचाल पूछेंगे, आवभगत करेंगे। 

बल्कि मैं तो यह उम्मीद करता हूँ कि ऐसे मिलने की जिद करने वाले शिष्य को साहब से डांट पड़े, साहब उनसे कहें की नाम स्मरण क्यों नहीं कर रहे हो, अगर करते तो दामाखेड़ा आने की जरूरत नहीं पड़ती ... उस आगंतुक का थैला, झोला, बैग दरवाजे के बाहर रखकर दरवाजा बंद कर दिया जाना चाहिए .... पर्दा गिरता है... कहानी खत्म हो जाती है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...