बहुत दूर चले जाना है... बहुत दूर। नदी के उस पार चले जाना है। चलते चलते पथिक थक चुका है, अब और नहीं चला जाता। रात भी हो चली है, इस घनघोर अंधियारे और वीराने में आसमान पर एक तारा चमक रहा है। उसकी मध्यम रौशनी के सहारे पग आगे बढ़ रहे हैं, उसी प्रकाशित पुंज की ओर बढ़ चुका हूं, विश्वास है कि वही प्रकाशपुंज मुझे मेरे गंतव्य तक पहुँचाएगा।
पीछे छूटते हुए कुछ लोगों की करुण पुकार सुनाई देती है, वो मुझे आगे बढ़ने से रोकने की असफल कोशिशें कर रहे हैं। ये वो लोग हैं जिन्होंने सँवारा संभाला, स्नेह दिया, दिशा दी। जबकि वो लोग भी जानते हैं कि सबको एक न एक दिन उस पार जाना ही होता है, उस प्रकाशपुंज में समा जाना ही है, साहब में मिलकर एकमेव हो जाना है।
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