सोमवार, 11 जुलाई 2022

साहब से दूरी ...💐

मैं साहब से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रहता हूँ। लेकिन उनके चरणों तक कभी पहुंच ही नहीं पाया। ये किसकी गलती है कि एक जरूरतमंद व्यक्ति साहब के मार्ग में चलते हुए आने वाली बाधाओं से पार पाने, रास्ता पूछने, मार्गदर्शन की चाह में उमर भर मर मरकर जीता है, तड़प तड़पकर जीवन गुजारने पर मजबूर हो जाता है। जिन्हें अपना परमात्मा मानता है, गुरु मानकर उनके चरणों में जीवन बिछा देता है लेकिन समय पर उन तक पहुंच नहीं पाता।

क्या इसका जवाबदार मैं खुद हूँ? क्या यह सिस्टम की गलती है? क्या साहब मुझसे ही नहीं मिलना चाहते, अथवा मेरे भाग्य में जीते जी साहब से मिलना लिखा ही नहीं है। जब मैंने उन्हें चाहा तो वो नहीं मिले, अब उनसे मिलने का योग बन रहा तो मुझे उनसे मिलने की इक्छा नहीं है।

दिनरात उन्हें याद किया, उन्होंने जो कहा, मैंने सो किया। जीवन उनके चरणों में झोंक दी, फिर भी उनसे नहीं मिल पाया। मैं कभी भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, जिंदगी में मिल रहे दुखों से मुक्ति की चाह लेकर उनके चरणों में नहीं गया। जब भी गया उनकी राह में चलते हुए आने वाली बाधाओं के पार जाने के उपाय पूछने गया।

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