रविवार, 29 सितंबर 2019

पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब मेरे परमात्मा...💐

अक्सर लोग कहा करते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर परमात्मा होता है, लेकिन अज्ञानतावश वह अपने भीतर के परमात्मा से अंजान रहता है। यह भी कहा जाता है आत्मा ही परमात्मा है। अपने आप से जुड़ने पर, अपने आत्मा का साक्षात्कार करने पर खुद के भीतर उपस्थित परमात्मा तत्व से परिचय प्राप्त हो जाता है।

लेकिन मैं लंबे समय से दुविधा में हूँ। मुझे ऐसा नहीं लगता कि आत्मा ही परमात्मा है। अभी तक मैं यही मानता हूं कि परमात्मा कोई और है, कोई और ही तत्व है, जो अपने से अलग है, अपने से जुदा और भिन्न है।

चूंकि जिनकी नाद कानों में पड़ती है, जिनकी मधुर आवाज हृदय में उतरती है, जो इन आँखों से जगत के सतरंगी दृश्य दिखाते हैं, जो हर पल साथ चलते हैं, परछाई बनकर पीछा करते हैं, वो तो साहब ही हैं। इसलिए साहब ही परमात्मा हैं, उनके अलावा किसी और को परमात्मा मानने से मेरा मन इंकार कर देता है। स्वयं के अंदर परमात्मा तत्व के होने की बात मुझे समझ में नहीं आती।

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शनिवार, 28 सितंबर 2019

ताज पर उंगली मत उठाओ...💐

क्या यार... छोटी छोटी बातों में पीढियां गिना देते हो, तलवार निकाल लेते हो। जो बात समझ नहीं आती, या किसी पोस्ट के विषय में आप नहीं जानते तो उस पर कमेंट ही क्यों करते हो?

बड़े गुरुर से अपने को उसी एक बरगद की शाखा समझते थे, परिवार का हिस्सा समझते थे। जिसकी छांव में अब तक जिंदगी गुजारी, पीढियां गुजारी। आज उसी बरगद की जड़ों को खोदना चाहते हो, उसी परिवार से अलग होने की बात करते हो।

एक बात समझ लो कि परिवार का मुखिया हमेशा परिवार को एकसूत्र में जोड़े रखना चाहता है, सबको खुश देखना चाहता है। वो तो हर डाली, हर फूल और हर पत्तों को अपने शरीर का अंग समझकर खून से सींचता है। जब वो कुछ कहता है तो किसी एक के लिए नहीं कहता, बल्कि सबकी बात कहता है, सबके भले के लिए कहता है। मुखिया को हर जायज और नाजायज बात पर नाराज होने का हक़ है, डांटने का हक़ है। उनकी हर बात परिवार के सभी सदस्यों के लिए शिरोधार्य होनी चाहिए।

एक बात और समझ लो कि ताज पर उँगली उठाने वाले कितनों आए और कितनों खाक हो गए। लेकिन ताज को हिला भी न सके। वो तो रूहानी है, पारलौकिक है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐

सद्गुरु के चरण जब आमिन माता और धनी धर्मदास साहब के आँगन में पड़ते हैं तो उनके हृदय के भाव आँसुओ के रूप में छलक पड़ते हैं। न जाने वह कैसा समर्पण रहा होगा, न जाने उनकी भक्ति की पराकाष्ठा कैसी रही होगी। सद्गुरु से ऐसा प्रेम आमिन माता साहिबा और धनी धर्मदास साहब जैसे गृहस्थ ही कर सकते हैं।

सद्गुरु के प्रति उनके गहरे भाव, उनका अनुराग, उनका समर्पण शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जब भी सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन के गहरे आत्मीय संबंधों की कल्पना करता हूँ, सिहर उठता हूँ, तिलमिला जाता हूँ।

उनका सद्गुरु के प्रति भाव, उनका सद्गुरु के प्रति आश्रित जीवन सोचने पर विवश कर देता है कि मेरा जीवन कहाँ है? क्या मैं उनके मार्ग पर चल रहा हूँ? क्या मैं उनकी तरह सद्गुरु के चरणों में जीवन रख सकता हूँ? और मेरा उत्तर "न" में आता है।

चूँकि हम सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन की परंपरा को अपना आदर्श मानते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, तो अपने साहब की छोटी छोटी बातों को शिरोधार्य करने में क्यों हिचकिचाते हैं? जबकि वो हमें जीवन के बंधनों से मुक्त कर अपने लोक "सत्यलोक" ले जाने के लिए ही इस धरा में अवतरित हुए हैं।

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रविवार, 22 सितंबर 2019

कथनी और करनी में भेद...💐

कहने और करने में बड़ा फर्क होता है भैया। ज्ञान तो अथाह है, और ज्ञानी शब्दों की खिचड़ी बनाकर सबको परोसते रहता है, डींगे हांकते रहता है। लेकिन जिसे उस ज्ञान के अनुसार जीना है, उस ज्ञान को जीवन में उतारना है, उसके लिए आसान नहीं होता, बेचारे का तेल निकल जाता है, भर्ता बन जाता है।

कहने वाला कुछ भी कह देता है, कुछ भी सलाह दे देता  है। लेकिन जिसे उस सलाह के अनुसार ज्ञान को धारण करके जीना है, उसके लिए बहुत कठिन है मेरे भैया। वैसे भी धर्म और अध्यात्म अब बाजार की वस्तु बन गई। कुछ लोग इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी करते हैं। इसलिए ऐरे-गैरे आदमी की बात मानकर उसके जाल में नहीं फँसना चाहिए।

पनघट का रास्ता बड़ा कठिन है, बेहद दुर्गम है। रास्ते से भटकाने वालों की लंबी फेहरिस्त है। जिसे देखो वही गुरूवाई करने पर उतारू है। इसलिए सावधानी से आगे बढ़ो, कदम फूंक-फूंककर कदम बढ़ाओ। मार्ग में कोई भी बाधा आए या कोई भी रुकावट आए तो सीधे ताज से मार्ग पूछो, सीधे उनके शरणागत हो जाओ, वो हाथ थाम लेंगे...।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...