मंगलवार, 6 मार्च 2018

एक अवसर...💐💐💐

जिंदगी सिर्फ एक मौका देती है। इस बार भी बस एक ही अवसर है। हर बार चुकता रहा, करीब पहुँचकर फिसलता रहा। कभी किसी की मोहरा बनता रहा तो कभी किस्मत के हाथों हारता रहा। इस बार ठान ले, चुकेगा नहीं, रुकेगा नहीं, टूटेगा नहीं।

चलना तो अकेले ही है, फिर किसी और से उम्मीद भला क्यों? उस रास्ते अकेले ही चला था, और अकेले ही चलना होगा। हिम्मत तो कर।

सीमाएँ तो तुम्हीं ने बांधी हुई है। सीमाओं से पार जाना है तो बंधन तोड़ दे, बेड़ियाँ खोल दे, उड़ान भर। अकथ की ओर उड़ान, अथाह की ओर उड़ान, अगम्य की ओर उड़ान, निःशब्द की ओर उड़ान, विराट की ओर उड़ान...

साहब का घर...💐💐💐

बालपन से उसे पेट में दर्द है, जब से होश संभाला दर्द के सिवाय कुछ और याद नही है। दादा दादी गाँव में झाड़ फूंक, बैगा से उसका इलाज कराते हुए सत्यलोक सिधार गए। माता पिता ने बहुत सारी पूंजी अपने बेटे के इलाज में फूंक डाली, राजधानी के किसी भी डॉक्टर को दर्द का कोई कारण समझ नहीं आया। 38 बरस की उमर हो गयी, बरसों से दर्द से बेहाल उसकी जिंदगी अब छुटकारा पाना चाहती है, वो अब सदा के लिए चले जाना चाहता है। वो दर्द के कारण कभी ठीक से हंस भी नहीं सका, बस सारी उमर रोता ही रहा, रोता ही रहा, रोता ही रहा।
किस्मत ऐसी की जिस चीज को उसने छुआ मिट्टी बन गया। घर के लोग अपनी किस्मत को कोसते हैं कहते हैं "पैदा ही क्यों हुआ, मर क्यों नही गया।" उसकी जिंदगी और उसे लोग कोसते हैं। सांसारिक रिश्ते अब कहने के रह गए, सबने एक एक करके साथ छोड़ दिया।

डॉक्टर कहते हैं उसकी बीमारी का कोई इलाज नही है। वो डॉक्टर के कहने का मतलब समझ चुका है, जान चुका है कि समय जरा कम है, और काम बहुत सारे।

आज शाम को भी आँगन में चटाई बिछाकर चांदनी को ताकते अकेले तन्हाई में दर्द से रो रहा था। बिटिया की आवाज आई- "पापा, क्या कर रहे हो आँगन में?" सकपकाते हुए आंसू पोछे और बनावटी हंसी से उसे गोद में बिठाते हुए बोला- साहेब जी का घर देख रहा हूँ, वो दूर जो सबसे ज्यादा चमकीला सितारा है न... वही है साहब का घर है, सत्यलोक है... वहीं घर बनाएंगे।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...