बुधवार, 19 मई 2021

साहब के दर्शन की आस...💐

लोग उनसे मिलने के लिए बरसों प्रतीक्षा किया करते हैं, लाखों की संख्या में लोग उनके दीदार की उम्मीद बांधे आते हैं। अनेकों उनके दर्शन मात्र की अभिलाषा लिए ही इस संसार से कूच कर जाते हैं। वहीं कई महात्मा तो मुक्ति के दरवाजे को त्यागकर उनके चरणों में ही बंधे रहने की आकांक्षा लिए फिर से धरती पर जन्म लेते हैं।

उनका आकर्षक ही कुछ ऐसा है कि मन नहीं भरता। उनके दमकते ओजमयी चेहरे से नजर हटाने का मन नहीं करता। मैं जब भी उनके दर्शन बंदगी करके लौटा, हर बार प्यास बढ़ती ही गई, मन की प्यास कभी बुझी ही नहीं। बल्कि और... और... और बढ़ती ही गई। हर बार लगता है दर्शन में कुछ कमी रह गई, कुछ बाकी रह गया। एक अनजाना अव्यक्त अहसास, एक रिक्तता का बोध सदैव दिल में रह जाया करता है।

कहने को बहुत कुछ है, लेकिन जब वो सामने आते हैं हृदय गहरी चूप्पी से भर जाता है, नयन रो पड़ते हैं, होंठ लड़खड़ाने लगते हैं। दिल का दर्द लिए वापिस घर की ओर लौट पड़ता हूँ।

साहब की गूंज...💐

कलशे पर रखा टिमटिमाता दीया धीमी लौ में प्रकाशित हो रहा था। कपूर, अगरबत्तियों की भीनी महक वातावरण में घुल रही थी। वहीं दो फीट की दूरी पर बिछी चटाई में जीवन के दिन कट रहे थे। अमृत कलश के पन्ने पलटते हुए अंधेरी रहस्यमयी रात का एक और पहर गुजरने को था। उलझे से मनोभाव थे, अधजगे नैन, अस्थिर से तन और मन, विचारों का द्वन्द...। रात भर आंखों के कोरों से पानी की बूंदे छलकती रही।

काले काले अजीबोग़रीब चित्र आंखों में अब नहीं आते थे। चौका में बैठे उनका विमल स्वरूप ही अब रह गया जो बंद आंखों के साथ खुले नयनों से भी देख सकता था। कोई तो था जो मुझे आवाज दे रहा था, मेरा नाम लेकर मुझे पुकार रहा था, मुझसे कुछ कहना चाहता था शायद, कुछ बताना चाहता था।

उस रहस्यमयी आवाज की गूंज अब रोज सुनाई पड़ती, मैं अवाक रह जाता, सुन्न पड़ जाता। धीरे धीरे इस बात का अहसास हुआ कि ये तो वही हैं...वही हैं...जिनकी तलाश में कलशे पर रोज दीया जलाया करता, उन्हें फूल अर्पण किया करता। उस मीठी आवाज की गूंज से अब जीवन ओतप्रोत और आह्लादित हो उठा...।

उसकी बंदगी ...💐

सूरज, चांद, सितारे रोज उदय होते हैं और समय आने पर अस्त भी हो जाते हैं। यह प्रकृति का भयावह और क्रूर स्वरूप भी है तो यही उसकी सुंदरता और गीत भी है।

एक मासूम सा चेहरा बार बार आंखों में तैर रहा है। उसकी करूण पुकार कानों को भेद रही है। वह नन्हा तारा अस्त होने को है, जगत के बंधनों से मुक्त होने को है। होश खोने से पहले, शाम ढलने से पहले, गहरी नींद में सोने से पहले उसने अंतिम बार बंदगी कहा है।

आपके चरणों में उसकी सादर बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी...💐






साहब से मुलाकात ...💐

सन 2008... दामाखेड़ा... चौका स्थल।
मैं पूरी तैयारी के साथ गया था कि आज कैसे भी करके सुमिरण ध्यान के बारे में साहब से पूछकर ही आऊंगा।
पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब चौका कर रहे हैं। वहीं थोड़ी दूर पर डॉ. भानुप्रताप साहब उनमुनि अवस्था में अकेले बैठे हैं।

मौका देखते ही भीगे नयनों से डॉ. भानुप्रताप साहब के चरणों में बंदगी करते हुए निवेदन किया कि मुझे सुमिरण-ध्यान के बारे में बताएं। साहब ने कुछ सेकंड का मौन तोड़ते हुए कहा- 
"अभी यहां बहुत भीड़ है जी..., यहां कुछ बताते नहीं बनेगा। ऐसा करो कि शाम को घर पर मिलना, तुम्हें सुमिरण-ध्यान के बारे में जरूर बताऊंगा।"

मैंने स्वीकारोक्ति भरी, बंदगी करके आश्रम लौट आया और शाम होने का बेसब्री से इंतेजार करता रहा। शाम हुई, लेकिन द्वारपालों ने मुझे दरवाजे पर रोक लिया। चिल्लाता रहा कि साहब ने बुलाया है, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ। रात भर दरवाजे पर रोते हुए बैठा रहा, लेकिन मुझे जाने नहीं दिया गया। इस तरह मैं पहली कोशिश में असफल रहा। लेकिन इस बात की आज भी खुशी है कि मैं साहब से बात कर पाया। वो पल अविस्मरणीय है।

जानना चाहेंगे आगे फिर कब मिला? साहब से क्या बातें हुई???

किस किस से मुक्ति...💐

ध्यान और सिद्धि...💐

आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग सिद्धियों से होकर गुजरता है। लेकिन कई लोगों के मन में यह गलत धारणा होती है कि अध्यात्म मलतब सिद्धियां प्राप्त करना है। इस तरह के विचारधारा के लोगों को लगता है कि सिद्धियों के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति एकाग्रता के साथ ध्यान में बैठता है, दृढ़ होकर अलग अलग मत्रों का जाप करता है, त्राटक, यज्ञ हवन आदि करता है। साधारण इंसान जब ऐसे व्यक्ति को अनेकों कर्मकांड करते देखता है तो वह उसे बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति समझता है।

बाहर से ऐसे लोग घोर आध्यात्मिक दिखाई देते हैं लेकिन अंदर ही अंदर अहंकार पल रहा होता है। उनकी आंतरिक भावना यही होती है कि आज तक जिन लोगों ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया उन सबको अब सिद्धियों के द्वारा अपना मूल्य दिखा सकता हूँ। यह सोच केवल अंहकार प्रतिबिंबित करता है। सिद्धियों के मार्ग पर चलते हुए ऐसी सोच रखना असली अध्यात्मिकता नहीं है।

आज के सामाजिक ढांचे में लोग बाहरी वेशभूषा और दिखावे के आधार पर तय करते हैं कि सामने वाला व्यक्ति आध्यात्मिक है या नहीं। किंतु यह आध्यात्मिकता का गलत आधार है।

लोग तो कहेंगे ही ...💐

जब ज्ञान की बात करता हूँ तो कहते हैं- 
"ज्ञान का घमंड हो गया है।"

भक्ति की बात कहता हूं तो कहते हैं-
"भक्ति का ढोंग कर रहे हो।"

जब प्रेम की बात कहता हूँ तो कहते हैं-
"आशिक बने फिरते हो।"

सामाजिक मुद्दों पर कुछ कहता हूँ तो कहते हैं-
"तू अपना घर देख, फालतू का भाषण मत दे।"

राजनीति की बात करता हूँ तो कहते हैं-
"सरकारी नौकर हो, किसी दिन नौकरी चली जाएगी।"

इन सब बातों से भला क्या फर्क पड़ता है। लोग तो कहेंगे ही, कुछ न कुछ कहते ही हैं।






बेतरतीब भाव...💐

रहस्यों के अंदर रहस्य है। वो अनेक रूपों में प्रकट होता है, कभी डरा देता है तो कभी हंसा देता है। कभी दूर तो कभी पास से आती उनकी आवाज बिल्कुल जानी पहचानी सी है, चेहरा भी हूबहू वही है जो आंखों में बरसों से बसा है। दिनभर वो मुझे ताकते रहते हैं, निहारते रहते हैं। वो एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। संग संग चलते हैं, राज की बात बताते हैं। मेरे आसपास के जाने पहचाने अनेकों मुखोटों के पीछे छिपे चेहरों का भेद बताते हैं।

उसे सब पता है, पर्दे के पीछे से भी वो देख लेता है। उससे कोई बात नहीं छुपती। जी चाहता है ऐसे ही उनकी मधुर आवाज के साए साए जीवन की सुबह और शाम हो। उनके रौशनी से जगमगाते पथ पर मैं भी कदमताल करूँ।

सोचता हूँ थोड़ा रंग और चढ़ने दो, थोड़ी खुमारी और बढ़ने दो, थोड़ी गहराई में और उतरने दो, विदा होने के पहले थोड़ा प्यार और कर लूं, दो बातें कह लूँ, दो सांसे और जी लूं, प्यास अभी बुझी नहीं है और ख्वाहिशें उड़ान पर है। सूरज को ढल जाने दो, रोशनी को और मंद हो जाने दो, चाँदनी को और बिखरने दो, रात को और गहराने दो, तन्हाई में उनसे मिले अरसा बीत गया।

बीती रात की बात अधूरी है, कुछ खामोशी भी जरूरी है। पलकों के बंद होने के पहले उनसे मुलाकात जरूरी है।।

परमात्मा से नाराजगी है...💐

मैं रोज परमात्मा की उपासना करता हूँ, आरती गाता हूँ। फिर भी जीवन दुख और कष्टप्रद बना हुआ है। परमात्मा ही तो इस सृष्टि के सृजनकर्ता हैं, नियंता हैं, पालनहार हैं परन्तु उसी परमात्मा से मैं दुखी क्यों रहता हूँ? मुझे क्यों सुख नहीं देते?

परमात्मा तो सर्वश्रेष्ठ मित्र और सखा हैं, फिर प्रभु अपनी मित्रता की अमृत वर्षा मेरे ऊपर क्यों नहीं करते? कहाँ चूक हो रही है? कहाँ कमी रह गई है?

क्या उन्होंने मुझे नहीं अपनाया है? क्या उन्होंने मुझे अपने चरणों में जगह नहीं दी है? क्या अब तक अमरलोक में मेरे लिए कोई सीट बुक नहीं हुई है?

समय पल-पल रेत की तरह उड़ता जा रहा है, हाथों से फिसलता जा रहा है, साँसे व्यर्थ जा रही है। न जाने कमबख्त सुख के दिन जीवन में कब आएंगे? निकम्मों को सारे जहांन की खुशियाँ और मुझे फटीचर सी जिंदगी... नाइंसाफी है। 

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...