शनिवार, 29 जून 2019

असमर्थ हूँ...💐

मित्रों... मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों...😊

मैं साहब की वाणियों को दोहे चौपाई की भाषा में बिल्कुल भी समझ नहीं पाता, बड़ी कठिनाई होती है। जानने और समझने की बहुत कोशिश करता हूँ, लेकिन हमेशा असमर्थ रहता हूँ और अर्थ का अनर्थ कर बैठता हूँ।

मुझे मात्र साहब के प्रवचन ही थोड़े बहुत समझ में आते हैं। फेसबुक मित्रों द्वारा पोस्ट किए गए, टेग किए गए पंक्तियों और साहब की फोटो देखकर उसे साहब से संबंधित मानकर लाइक और कमेंट कर लिया करता हूँ, "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" लिख लिया करता हूँ। लेकिन मेरी खोपड़ी के अंदर कुछ नहीं जाता।

ये बात मुझे बहुत खलती है। मैं जब भी हमारे पवित्र ग्रंथो को पढ़ने के लिए पन्ने पलटता हूँ, जम्हाई आना शुरू हो जाता है, कुछ ही देर में बोर हो जाता हूँ। कृपया कोई उपाय सुझाइए, जिससे ग्रंथों के प्रति मेरी रुचि बढ़े और आप सभी की तरह मैं भी साहब की दिव्य वाणियों का आनंद ले सकूँ...

आदर्श गृहस्थी...💐

एक संत कहा करते थे कि हम गृहस्थों के लिए साहब और वंश ब्यालिश दामाखेड़ा का गृहस्थ जीवन ही आदर्श है। हमें उनका अनुकरण करते हुए इस भव सागर से पार जाना है, बंधनों से मुक्त हो जाना है। वो हमारे परमात्मा हैं, उनके आश्रय में जीवन जीना है, उनकी छाया में सांस लेना है, फलना-फूलना और खाक हो जाना है। उनका जीवन हम गृहस्थों के लिए प्रेरणास्रोत है।

ऐसा कहने वाले संत विरले ही होते हैं, साहब के आश्रय में अपना जीवन खाक करने वाले विरले ही होते हैं। जब हम पति-पत्नी संतों के ऐसे वचन सुनते हैं तो दुखी हो जाते हैं। लगता है हम कहीं भटके हुए हैं, कहीं रुके हुए हैं, हमारा जीवन उस ओर नहीं जा रहा जिस ओर जाने की कामना करते हैं।

साहब और उनका गृहस्थ जीवन दिव्य होता है, उनमें परम् सत्ता का अंश होता है, वो खास उद्देश्य के लिए धरती पर अवतरित होते हैं। उनके धरती पर अवतरण का उद्देश्य ही जीव जगत का उद्धार होता है।

जबकि हमारा जीवन, हमारी गृहस्थी तो कीचड़ में सना हुआ है। थोड़ी दूर उनकी ओर बढ़ते हैं, उनकी ओर चलते हैं, फिर रुक जाते हैं। बार बार गिरते हैं, बार बार उठते हैं, फिर गिरते हैं...। यह क्रम सालों से चला आ रहा है। लेकिन जिंदगी वहीं की वहीं है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...