एक दिन किसी गाँव मे संतों ने ग्रंथ कार्यक्रम के मंच पर अपने साथ उस नवयुवक को जबरदस्ती बिठा दिया, माईक मुँह में ठूंस दिया और आदेशित किया गया कि साहब की वाणियों को ग्रामीणों के समक्ष कहूँ। कुछ देर के लिए वह नवयुवक अवाक रह गया, कुछ कह ही नहीं सका, पूरा माहौल सुन्न हो गया, थोड़ी देर तक गहरा मौन पसरा रहा।
नवयुवक ने अपने को संभालते हुए नाम स्मरण पर बोलना शुरू किया। चंद शब्दों के बाद ही साहब से मिलन के सफर की कहानी सुनाते सुनाते मंच पर भावविह्ल फुट फुटकर रो पड़ा, कुछ न कह सका। बस वो रोता ही रहा, रोता ही रहा, रोता ही रहा। हिचकियाँ ले लेकर अपने हृदय की बात गांव वालों को बताता रहा। करीब 20 मिनट बीत गए, आँसू थमते नहीं थे, भाव रुकते ही नहीं थे। गांव के लोग अचरज भरी निगाहों से 28 बरस के उस नवयुवक को ताक रहे थे।