सोमवार, 6 दिसंबर 2021

चौका आरती...💐

लम्बी प्रतीक्षा और सौभाग्य से आज मेरे घर चौका आरती हुआ। मेरी कुटिया में साहब, संतजन, मेहमान और रिश्तेदारों का आगमन हुआ। आज मेरा हृदय साहब की भीनी खुशबू से महक रहा है, मेरे आसपास का वातावरण साहबमय हो उठा है। खुशी के आँसुओ से नयन छलक रहे है।

न मैं नारियल भेंट करना जानता, न साहब की बंदगी करना जानता, न ही संतों का आवभगत जानता। बस टूटी फूटी, विकारों से भरे मन से साहब की बंदगी कर ली और प्रसाद ग्रहण कर लिया। लेकिन मेरी बंदगी साहब तक जरूर पहुंची होगी, वो भी मेरा ध्यान किए होंगे, मुझे निहारे होंगे।

हर कबीरपंथी का सपना होता है कि उसके जीते जी घर में कम से कम एक बार साहब का आगमन हो, साहब की भेंट बंदगी हो, साहब के करकमलों से चौका हो। ऐसा ही मेरा भी सपना है, लेकिन मैले मन से साहब को निवेदन करने में संकोच होता है।

किरण दीदी की विदाई ...💐

जीने के लिए आधारभूत वस्तुएं जैसे-रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, व्यवसाय, परिवार के होते हुए भी न जाने क्यों अकेलापन सताता है। अपनी हर पीड़ा, अपना हर दुख जीवन संगिनी के साथ शेयर करता हूँ। कभी जब ज्यादा परेशान, उदास होता हूँ तो उसकी बाहों में लिपटकर किसी बच्चे की तरह रो लेता हूँ। साहब को बुरा भला कह देता हूँ।

जो लोग किरण दीदी की शादी में गए थे वो लोग बताते हैं कि ऐसी दिव्य और भव्य शादी उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखी। किरण दीदी की विदाई का वीडियो फेसबुक पर देखा। उस पल साहब को भावुक देखकर अनेकों की आंखें छलछला उठीं, मैं भी फफक पड़ा। यूँ लगा मानो मैं अपनी बेटी की विदाई कर रहा हूँ। 

बच्चे कब बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। मेरी दो बेटियां हैं, स्वास्थ्यगत कारणों से उनके प्रति मैं अपना फर्ज, जिम्मेदारी ठीक से निभा नहीं पाता, जिससे मन व्यथित रहता है। एक दिन मेरी बेटियाँ भी विदा होकर अपने जीवनसाथी के घर चली जाएंगी। जिसे सोचकर मेरा दिल बैठा जा रहा है। माता पिता के लिए अपनी बेटी का हाथ किसी और के हाथ थमाकर विदा करना बहुत कठिन क्षण होता है।

साहब और साहब का पूरा परिवार हमारे लिए परमात्मा के स्वरूप हैं। उनका जीवन दिव्य होता है। उनका हर कदम इतिहास बनता है, उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है, उनके शब्द हमें मार्ग बताते हैं। लेकिन इस शादी में पहली बार साहब को एक आम पिता की तरह देखा, हमारे जैसे सामान्य व्यक्ति की तरह देखा। साहब के चेहरे के भावों से किरण दीदी की विदाई की उनकी पीड़ा, व्यथा देखकर आंखों में आँसू आ जाते हैं।

वो हमारे परमात्मा हैं, हमारे गुरु हैं। लेकिन मर्यादा तोड़कर उनसे लिपटकर रोने को जी करता है। कैसे और किन शब्दों में उनसे कहूँ की दुनिया की रीत यही है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...