बुधवार, 19 जून 2019

सिर पर साहेब राखिए...💐

पत्नी रोज निम्न पंक्ति दुहराती है, अक्सर सुनता हूँ-

सिर पर साहब राखिए, चलिए आज्ञा माँहि।
आगे साहेब हाँक देत है, तीन लोक डर नाहिं।।

साहब ने जो कह दिया उस पर बिना सोचे विचारे, आंख मूंदकर अमल कर लेना चाहिये। लेकिन बुद्धि तर्क कुतर्क करती है, साहब के वचनों पर भी मन अपने लिए फायदा-नुकसान सोच ही लेता है।

कई बार मन में यह भी आता है कि इन बातों को साहब ने मेरे लिए थोड़ी कहा है, जिनके लिए कहा है वो लोग जानें, वो लोग उस पर अमल करें...और मन उनके वचनों का भी प्रतिकार करता है।

जबकि उनकी बातों में अपना हित छुपा होता है। समय जब बीत जाता है, तब आँखे खुलती है। वो दूर की बात कहते हैं, जीवन और जीवन के पार की बात कहते हैं, जो जल्दी समझ नहीं आते।

सुगम्य पथ...💐

जीवन है तो समस्याएं हैं। जब तक जीवन रहेगा, तब तक समस्याएं भी रहेंगी। समस्याएं होंगी तो साथ ही विकास की सीढ़ी भी होगी, सीख होगी, सबक होगा, चुनौती होगी।

हम संसार रूपी पेड़ पर रहते हैं और अज्ञान रूपी अंधेरे में दुखी होकर जीवन जीते हैं। लेकिन जब जीवन में साहब का प्रकाश पड़ता है, तब हमारी बेहोशी टूटती है। प्रकाश का वह स्रोत हमारा पल पल मार्गदर्शन करता है, उज्ज्वल रौशनी से हमारा पथ रौशन करता है। फिर समस्याओं के काले बादल छंट जाते हैं। उनके आलोक से जीवन आलोकित हो जाता है।

उस उजले और दिव्य प्रकाश के सहारे व्यक्ति उनके गीत गुनगुनाते सुगम्य जीवनपथ पर आगे बढ़ जाता है।

विरले व्यक्ति...💐

पनिहारिन की भांति सिर पर उनके वचनों को धारण कर चलना, उन्हें बिना बिसारे रोज के दैनिक कार्यों को करना, पारिवारिक दायित्वों और समस्याओं के बीच संतुलन बनाकर उन्हें जीना बड़ा कठिन है। पता नहीं उनका जीवन कैसा होता होगा जो साहब को जीवन भर पल पल जीते हैं, उनकी प्रतीक्षा में जीवन भर क्षण क्षण मरते हैं।

कदम जब उनकी ओर बढ़ते हैं तो मन और बुद्धि प्रतिकार करता है, शरीर और इन्द्रियाँ विरोध करती हैं। साथ ही साथ हर चेहरा विरोध भी करता है, और इसकी शुरुआत घर परिवार से ही होती है।

चूंकि व्यक्ति किसी और ही धुन में जी रहा होता है, उसे साहब की लगन लगी हुई होती है, उसके जीवन में सर्वप्रथम साहब होते हैं और संसार का अन्य प्रत्येक क्रियाकलाप उसे तुच्छ और नगण्य सा लगने लगता है। ऐसे में उसके और सांसारिक लोगों के बीच विचारों का आपसी खिंचाव होता है, टकराव होता है।

लेकिन इन सबके बीच विवेक से काम लेते हुए द्वन्दों से उबर जाना साहब की अगाध कृपा से ही सम्भव हो पाता है। कहते हैं साहब की ऐसी कृपा किसी विरले व्यक्ति को ही मिल पाती है।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...