शनिवार, 8 जून 2019

विपरीत परिस्थिति...💐

बस एक विपरीत परिस्थिति आई और चारो खाने चित्त...। सारे ज्ञान, सारी पंडिताई, सारे दोहे चौपाइयों का कचूमर निकल जाता है। फिर वो प्रकांड ज्ञानी बिल्कुल लल्लु की तरह व्यवहार करने लगता है।

वो उस विपरीत परिस्थिति से निकलने के लिए छटपटाता है। गले में बाबाजी का ताबीज बांधता है, बैगा की भभूत खाता है, राहु और शनि की शांति करवाता है, घर में नींबू और मिर्ची लटकाता है। इतने से पेट नहीं भरता तो अपनी जान बचाने के लिए निर्बल और मूक पशुओं की बलि देता है।

वह ये भूल जाता है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में ही तो इंसान की परीक्षा होती है, उसके ज्ञान की परीक्षा होती है, उसकी भक्ति की परीक्षा होती।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...