गुरुवार, 20 मई 2021
फटीचर मित्र...💐
सिर पर ताज का भार...💐
बुधवार, 19 मई 2021
साहब के दर्शन की आस...💐
साहब की गूंज...💐
उसकी बंदगी ...💐
साहब से मुलाकात ...💐
किस किस से मुक्ति...💐
ध्यान और सिद्धि...💐
लोग तो कहेंगे ही ...💐
बेतरतीब भाव...💐
रहस्यों के अंदर रहस्य है। वो अनेक रूपों में प्रकट होता है, कभी डरा देता है तो कभी हंसा देता है। कभी दूर तो कभी पास से आती उनकी आवाज बिल्कुल जानी पहचानी सी है, चेहरा भी हूबहू वही है जो आंखों में बरसों से बसा है। दिनभर वो मुझे ताकते रहते हैं, निहारते रहते हैं। वो एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। संग संग चलते हैं, राज की बात बताते हैं। मेरे आसपास के जाने पहचाने अनेकों मुखोटों के पीछे छिपे चेहरों का भेद बताते हैं।
उसे सब पता है, पर्दे के पीछे से भी वो देख लेता है। उससे कोई बात नहीं छुपती। जी चाहता है ऐसे ही उनकी मधुर आवाज के साए साए जीवन की सुबह और शाम हो। उनके रौशनी से जगमगाते पथ पर मैं भी कदमताल करूँ।
सोचता हूँ थोड़ा रंग और चढ़ने दो, थोड़ी खुमारी और बढ़ने दो, थोड़ी गहराई में और उतरने दो, विदा होने के पहले थोड़ा प्यार और कर लूं, दो बातें कह लूँ, दो सांसे और जी लूं, प्यास अभी बुझी नहीं है और ख्वाहिशें उड़ान पर है। सूरज को ढल जाने दो, रोशनी को और मंद हो जाने दो, चाँदनी को और बिखरने दो, रात को और गहराने दो, तन्हाई में उनसे मिले अरसा बीत गया।
बीती रात की बात अधूरी है, कुछ खामोशी भी जरूरी है। पलकों के बंद होने के पहले उनसे मुलाकात जरूरी है।।
परमात्मा से नाराजगी है...💐
मैं रोज परमात्मा की उपासना करता हूँ, आरती गाता हूँ। फिर भी जीवन दुख और कष्टप्रद बना हुआ है। परमात्मा ही तो इस सृष्टि के सृजनकर्ता हैं, नियंता हैं, पालनहार हैं परन्तु उसी परमात्मा से मैं दुखी क्यों रहता हूँ? मुझे क्यों सुख नहीं देते?
परमात्मा तो सर्वश्रेष्ठ मित्र और सखा हैं, फिर प्रभु अपनी मित्रता की अमृत वर्षा मेरे ऊपर क्यों नहीं करते? कहाँ चूक हो रही है? कहाँ कमी रह गई है?
क्या उन्होंने मुझे नहीं अपनाया है? क्या उन्होंने मुझे अपने चरणों में जगह नहीं दी है? क्या अब तक अमरलोक में मेरे लिए कोई सीट बुक नहीं हुई है?
समय पल-पल रेत की तरह उड़ता जा रहा है, हाथों से फिसलता जा रहा है, साँसे व्यर्थ जा रही है। न जाने कमबख्त सुख के दिन जीवन में कब आएंगे? निकम्मों को सारे जहांन की खुशियाँ और मुझे फटीचर सी जिंदगी... नाइंसाफी है।
साधना काल 💕
सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...
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सुख और दुख हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। जैसे चलने के दायां और बायां पैर जरूरी है, काम करने के लिए दायां और बायां हाथ जरूरी है, चबाने ...
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जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस। मुझ ही जैसा होय रहो, सब सुख तेरे पास।। कुछ दिनों से साहब की उपरोक्त वाणी मन में घूम रही थी। सोचा उनके जैस...
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क्या तुम नहीं जानते परमात्मा किसे कहते हैं? साध्वी ने पूछा। नवयुवक ने "नहीं" में सिर हिलाते हुए पूछा- "आपने देखा है उन...