मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

वो ठूंठ खड़ा है...💐

अरसे से वो ठूठ की तरह खड़ा है। लोग कहते हैं वो जिंदा है। जब शब्द मौन हो जाते हैं, तब उसकी अभिव्यक्ति होती है। अस्तित्व बोलता है, उसे चलाता और नियंत्रित करता है।
उस शिखर पर वो अकेले ही है, लोग कहते हैं वहां अदभुत आनंद है। लेकिन दर्द उसका पीछा नही छोड़ता। जमीन में रह रहे लोगों की चीख पुकार शिखर की ऊंचाई में ज्यादा अच्छे से सुनाई देती है।

अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा एक व्यक्ति, मेले की भीड़ में सामान बेचकर दो वक्त की रोटी जुटाता रिश्तेदार, एक लड़की विवाह के बंधन में बंधने के सपने संजोए, बेटे के घर लौटने के इंतेजार में खड़ी उसकी माँ, पड़ोस की गाय की दुर्घटना में मौत, किसी नए जीवन के पनपने की आवाज... शिखर से वो सुनता, देखता और रोता है।
सच में वो ठूठ ही है, लेकिन लोग कहते हैं वो अभी जिंदा है।

प्रार्थना के वो पल...💐

वो दिन बड़े उत्साह से भरे होते थे, रिश्तेदारों और गाँव के लोगों का समूह अक्सर एक घर में इकठ्ठा होता था। ऊंच, नीच, जाति बंधन, सम्प्रदाय, और उम्र की सीमाओं को तोड़कर सब एक दूसरे को साहेब बंदगी कहते। जिस घर मे वो सब ठहरते वो कच्चा जरूर था, लेकिन सबकी बोली मीठी थी, लोग भी मीठे ही हैं। महिलायें सोहर, मंगल गाती, सबके लिए नाम स्मरण के साथ खाना बनाती। अन्न का हर एक निवाला सत्यनाम के स्मरण के साथ ग्रहण किया जाता।
उस घर मे लोग साहब की वाणियों को जीने आते थे, साहब को महसूस करने आते थे। आरती, सुमिरन, ध्यान, भजन, सत्संग और प्रश्न उत्तरों का अंतहीन दौर चलता, न जाने कैसे लोग थे जो वापिस अपने घर लौटना ही नही चाहते थे। लोगों का वह समूह अदभुत आनंद और जोश से भरा होता था। ये सिलसिला कई कई दिनों तक चलता रहता।
उस घर के माहौल में गहरे अध्यात्म की अजीब सी खुशबू थी, महक थी, असीम दिव्यता थी, सुकून था, चेतनता थी, सबके हृदय में प्रेम की पराकाष्ठा थी। लोग प्रेमातुर रो पड़ते थे।
जिन्होंने हाथ पकड़कर दामाखेड़ा का रास्ता बताया, साथ चलाया, जागृति दी, जीवन को ज्ञान से पल्लवित किया, सबके आंसू पोछे, साहब को नस नस में जीने वाले कोनारी गांव के मनोहर साहब याद आते हैं, वो दिन, वो लोग याद आते हैं। उनके चरणों में फिर से जीने का मन करता है...

यादों के पन्ने...💐

वो सांवली सी लड़की जो बचपन में वादा करके गयी थी कि अगली बार गर्मियों की छुट्टियों में अपने शहर से बैट बॉल लेकर गांव आएगी, तब हम लोग खूब क्रिकेट खेलेंगे।

अगली गर्मियों की छुट्टियों में वो नही लौटी। लेकिन प्यार भरा गुलाबी पन्नों में मोगरे के ताजे फूलों की महक लिए हुए उसका पहला लव लेटर मिला। वो सातवीं कक्षा का प्यार था, अल्हड़ सी, नदी की धारा सी, ओस की हल्की फुहार सी, किसी खूबसूरत गीत की तरह...रजनी की तरह।

वो अच्छी लगती थी, सच्ची लगती थी। समय बीतता गया, रिश्ते प्रगाढ़ होते गए। शहर और गांव की दूरियां भी उनके रिश्ते को परवान चढ़ने से रोक नही पाई।

रंगीन कागज में लिखे वो लव लेटर करीब आठ बोरियों में भरे थे। उन पन्नों में छोटी छोटी खुशियां, भावनायें, सपनों की ऊँची उड़ान, और न बिछुड़ने का वादा था।
यादों के कुछ पन्ने...

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...