सोमवार, 27 मई 2019

जीवन का अवसान...💐

हर किसी की अपनी अपनी कहानियाँ अपनी अपनी दास्तान होती है। ये कहानियां खुशियों के छोटे छोटे महकते लम्हों और आँसुओ के नन्हें नन्हें बूंदों से सना होता है। इनकी खुशबू, इनकी कसक लिए जिंदगी नदी की धारा की तरह निर्बाध आगे बढ़ती रहती है।

जीवन रूपी नदी को आखिरकार एक दिन सागर रूपी परमात्मा में मिल ही जाना है, उनसे एकाकार हो ही जाना है। लेकिन उनसे मिलना सिर्फ औपचारिक न हो, उनसे मिलना सिर्फ जीकर मर जाने की तरह न हो।

उस मधुर मिलन में जीवन की पूर्णता का आभास हो, तृप्ति का भान हो, मानव तन के सदुपयोग का अहसास हो। तभी उनसे मिलन की सार्थकता है, तभी वह मिलन दिव्यता को छू सकेगा, तभी अस्तित्व को संतुष्टि मिल सकेगी।

हे प्रभु, जब जीवन का अंत निकट हो, आंखे सदा के लिए बंद होने को हो, साँसे उखड़ने को हो, धड़कनें मौन होने को हो, अवसान करीब हो, ....संभाल लेना। एक बार आवाज जरूर दे देना, चेतना को जगा देना, चरणों में जगह देना, अपने में समेट लेना...💐

शुक्रवार, 24 मई 2019

साहब की लीला...💐

लोग उन्हें दया के सागर कहते हैं, कृपा के सिंधु कहते हैं। लेकिन मुझे वो जब भी मिलते हैं बड़े निष्ठुर से प्रतीत होते हैं, बड़े कठोर से जान पड़ते हैं।

मनोकामना की पूर्ति के लिए लोग उन्हें नमन करते हैं, उनकी आरती गाते हैं, उन्हें याद करते हैं। लेकिन वो मेरी कोई इक्छा पूरी नहीं करते, बल्कि मेरे माध्यम से अपनी चाहनाओं और उद्देश्यों की पूर्ति करवा लिया करते हैं।

लोग उन्हें प्रेम की प्रतिमूर्ति कहते हैं, उनमें प्रेम निहारा करते हैं, उनमें परालौकिक प्रेम का दर्शन करते हैं। लेकिन जब भी वो मुझसे मिलते हैं प्रेम से दुलार नहीं करते, प्रेम पूर्वक बात नहीं करते, बड़े रूठे और कड़े स्वर में सीधे आदेश करते हैं।

विचित्र लीला है उनकी...💐

शुक्रवार, 10 मई 2019

सप्रेम साहेब बंदगी साहेब...💐

आजकल साहब को चाहने वाले फेसबुक, वाट्सएप और विभिन्न प्रसार माध्यमों में साहब की वाणियों, प्रवचनों, साहब से संबंधित लेखों में "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" की जगह पर "पायलागू" शब्द का खूब उपयोग कर रहे हैं।

यूं तो हर किसी को अपने अपने तरीके से साहब को याद करने, साहब को नमन और बंदगी करने का अधिकार है। अलग अलग राज्यों, संस्कृतियों और बोली में अभिवादन का तरीका भी भिन्न-भिन्न हो सकता है।

चूंकि हमारे साहब ने अब तक कहीं भी "पायलागू" शब्द का उपयोग नहीं किया है, न किसी मंच में, न किसी ग्रंथ में और न ही कभी सोशल मीडिया में। वो तो हर मंच और हर माध्यमों से केवल "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" ही कहते और लिखते हैं।

इसलिए हमें साहब का अनुशरण करते हुए "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" ही लिखना चाहिए, और इन्हीं शब्दों के साथ अभिवादन भी करना चाहिए। दरअसल "बंदगी" शब्द में साहब के प्रति समर्पण का अहसास होता है, उनके चरणों मे झुककर माथा रखने का भाव जागता है।

Saprem
SAHEB BANDAGI SAHEB...💐

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...