गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

चहुँओर साहब की अनुभूति...💐

धड़कते हृदय की धकधक आवाज हो या रग रग में बहते खून की धार हो। कम्प्यूटर के कीबोर्ड की ध्वनि हो या दूर से आती डीजे की आवाज हो। कदमों का पदचाप हो या घड़ी की सुइयों की टिक टिक हो। बारिश की फुहार हो या मेघों का गर्जना हो। मंदिर के घंटियों की मधुर आवाज हो या झरझर नदियों की उज्ज्वल धार हो।

बहती हवा की सरसराहट हो या पंछियों का मधुर गान हो। साँसों की अविरल बहती सरिता हो या फूलों की मनभावन मुस्कान हो। जलते दीए का प्रकाश हो या चाँदनी रात की उजली अंधियार हो। भोर की लालिमा हो या शाम का मध्यम प्रकाश हो। ओस की नन्ही बूंदो से सनी हरी घांस हो या नवप्रस्फुटित पौधों का अंकुरण हो। हृदय का ख़ुशनुमा अहसास हो या सरोवर में कोपलें फैलाती कुमुदिनी का दल हो। 

जीवन की हर आवाज में वही होते हैं, धरती के हरित श्रृंगार में वही होते हैं। जहां तक नजरें जाती हैं, वहां तक उनकी ही मनमोहक छवि नजर आती है। दसों दिशाओं में उनकी मौन उपस्थित दृष्टिगोचर होती है। धरती और अम्बर का कोना कोना उनके गीत गाते हैं। साहब की प्रत्यक्ष उपस्थिति का दर्शन कराते हैं।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

तर्क कुतर्क...💐

दो लोग मिले नहीं कि शुरू हो जाता है बुराइयों का दौर, तुलना का दौर। मेरा ज्ञान बड़ा, मेरा भगवान बड़ा, मेरी श्रद्धा बड़ी, मेरी भक्ति बड़ी, मेरे सुमिरन में ज्यादा शक्ति, मेरी उपासना पद्धति में ज्यादा ताकत, इस किताब में ऐसा लिखा है, उस किताब में वैसा लिखा है...!!!

कौन भला घण्टों भर ऐसी चर्चाओं में माथा खराब करे? हमें तो पका पकाया भोजन खाने की आदत है, रेडीमेड और ब्रांडेड ज्ञान की आदत है। हम तो शॉर्टकट रास्ता पकड़ते हैं और ऐसी चर्चाओं के बीच अपना बोरिया बिस्तर समेटकर पतली गली से कल्टी मार लेते हैं।

संतों का कठोर जीवन...💐

दो रोटी के लिए हाथ फैलाते देखा है, शारीरिक तकलीफों से कराहते देखा है, मदद के लिए गुहार लगाते देखा है, लोगों द्वारा उन्हें दुत्कारते देखा है, अंतिम समय में जीर्णशीर्ण अवस्था में पल पल मरते देखा है। बुढ़ापे में उनकी कठोर जिंदगी की कल्पना मात्र से ही हालत पतली हो जाती है, रूह काँप उठती है। 

कभी मैं भी घर द्वार छोड़कर उसी रास्ते पर चलने को आतुर था जिस रास्ते पर गृह त्यागी गुजरे थे। युवावस्था में संतों का जीवन बड़ा लुभावना लगता था, उनका ओजपूर्ण व्यक्तित्व आकर्षित करता था। उनकी वाणी बड़ी मीठी लगती थी, उर्जा से भर देती थी। 

बहुत सोच विचार और सलाह मशविरे के बाद रास्ते से लौट आया, शादी करके घर बसा लिया, पेट पालने लायक रोटी कमा लिया। आज अहसास होता है कि मेरा निर्णय सही था। शादी, परिवार, बच्चे, नौकरी, व्यवसाय आदि साहब के मार्ग में कभी बाधा नहीं बनते बल्कि सहयोगी ही होते हैं।

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

28 बरस का वह नवयुवक...💐

तब संतों की संगति थी, वो जहां जाते नवयुवक उनका झोला उठाकर उनके पीछे हो लिया करता, उनके पदचिन्हों का अनुशरण किया करता। तब उनकी ही तरह साहब को नस नस में जीने की व्याकुलता थी, तब ईश्वर को जानने की उत्सुकता थी, तब अज्ञेय से परिचय की उत्कंठा थी।

एक दिन किसी गाँव मे संतों ने ग्रंथ कार्यक्रम के मंच पर अपने साथ उस नवयुवक को जबरदस्ती बिठा दिया, माईक मुँह में ठूंस दिया और आदेशित किया गया कि साहब की वाणियों को ग्रामीणों के समक्ष कहूँ। कुछ देर के लिए वह नवयुवक अवाक रह गया, कुछ कह ही नहीं सका, पूरा माहौल सुन्न हो गया, थोड़ी देर तक गहरा मौन पसरा रहा।

नवयुवक ने अपने को संभालते हुए नाम स्मरण पर बोलना शुरू किया। चंद शब्दों के बाद ही साहब से मिलन के सफर की कहानी सुनाते सुनाते मंच पर भावविह्ल फुट फुटकर रो पड़ा, कुछ न कह सका। बस वो रोता ही रहा, रोता ही रहा, रोता ही रहा। हिचकियाँ ले लेकर अपने हृदय की बात गांव वालों को बताता रहा। करीब 20 मिनट बीत गए, आँसू थमते नहीं थे, भाव रुकते ही नहीं थे। गांव के लोग अचरज भरी निगाहों से 28 बरस के उस नवयुवक को ताक रहे थे।

प्रियतम से मिलन...💐

परिवार की सारी जिम्मेदारियाँ पूरी करने के बाद, जब रात में सब सो जाते हैं तब वो चुपचाप उठता है। अंधेरे में अपने बिस्तर पर बैठे बैठे साँसों के संगीत में खो जाया करता है। सबकी नजरों से बचते बचाते किसी और का हो जाया करता है। मौन की चरम गहराई में वो अपने प्रियतम से मिलने जाता है, उनकी मधुर आवाज सुनने जाता है, उनका दीदार करने जाता है। वो भी अपनी प्रेयसी से हर रोज मिलने आते हैं। जब भी उन्हें पुकारता है, वो जरूर आते हैं।

सबके सो जाने के बाद वो हृदय का द्वार अपने प्रियतम के लिए खोलता है, उन्हें प्रेम का सुमन गुच्छ भेंट करता है, उनकी छाया में देर तक रहता है, उनसे दिल की बातें कहता है। उनके आगोश में अपना अस्तित्व बिछा देता है। कमरे के अँधरे में भी चांदनी खिल उठती है, उनकी खुशबू से रात महक उठती है, उनके दिव्य स्पर्श से अस्तित्व पुलकित हो उठता है।

इसी तरह हर रोज, हर पल, हर क्षण वो अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करता है, पलकें बिछाए उनके आने की राह देखता है। प्रेयसी की इस प्रतीक्षा में मिलन की गहरी व्याकुलता है, बरसों की प्यास है, स्वाति बून्द की आस है...

💐💐💐

सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

नशा उतार दिया...💐

भूगोल, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक हूँ, एचआर और फायनेंस में एमबीए किया हूँ, हिन्दी में स्टेनोग्राफी किया हूँ, तीन तीन बार पीजीडीसीए किया हूँ, हिंदी और अंग्रेजी टायपिंग उत्तीर्ण हूँ, फिटर ट्रेड से आईटीआई किया हूँ, दसवीं और बारहवीं में संस्कृत विषय के साथ पढाई की है, और अब अंग्रेजी भाषा में काम करता हूँ। कई शासकीय, अशासकीय जगहों और निजी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कार्य किया हूँ। सीना फुलाकर एक ही सांस में जिंदगी के सारे जद्दोजहद के दिन गिना दिए।

उन्होंने आग उगलते आंखों से देखा और कहा-
तो क्या?? कौन सा अहसान कर दिए मुझ पर। ये जो घमंडपूर्वक बता रहे हो कि तुमने जीवन में क्या क्या किया, इसका कोई मतलब नहीं। और हो सके तो अक्षर ज्ञान की जगह उस स्तर की ज्ञान कहो जिससे हृदय तृप्त हो जाए, जिससे जगत का भला हो जाए। 

उसने देशी पौव्वा का पूरा नशा उतार दिया...😢😢


शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

चलो दिवाली मनाएं...💐

नए कपड़े, चाँदी के सिक्के, गहने, मोटर कार, महंगे गिफ्ट नहीं ले सकता। हमेशा की तरह आज भी मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। बाजार से तुम्हारी पसंद की सब्जी लाया हूँ, मिठाई का एक डिब्बा लाया हूँ, बच्चों के लिए फुलझड़ी के दो पैकेट और डेयरी मिल्क की दो चॉकलेट लाया हूँ।

चलो एक बार फिर से एक दूसरे के हृदय में उम्मीदों और आशाओं के कुछ दीए जलाएं। जो है, जैसा है आज उसी में दिवाली मनाएं। जब राजयोग आएगा तो सारी इक्छाएँ और सारे सपने पूरी कर लेंगे...

💐💐💐

सिर्फ भाव हैं, ज्ञान नहीं...💐

समझा समझाकर थक गया कि मेरे पास कोई ज्ञान नाम की चीज नहीं है। पर तुम समझते ही नहीं हो, बार बार मुझी से ज्ञान मांगने चले आते हो। मेरे पास शब्द हो सकते हैं, विचार हो सकते हैं, भाव हो सकते हैं लेकिन ज्ञान नहीं, बिल्कुल भी नहीं। अगर ज्ञान होता तो किलो के भाव में घर घर जाकर बेचता और धन्ना सेठ बन जाता।

अरे भैय्या मैं तो खुद ही कन्फ्यूज हूँ, दीन हीन स्थिति में जिंदगी चल रही है और खुद ही ज्ञान की तलाश में निकला हूँ। कुछ लिख देता हूँ तो ज्ञानी समझ लेते हो। मेरे भैय्या ज्ञान के लिए किसी और का दरवाजा खटखटाओ, किसी और के चरण पकड़ो, लेकिन मुझे माफ़ करो।

मैं तो अपने जीवन में घटी घटनाओं को लिखता हूँ, आपबीती सुनाता हूँ। जिसमें रोमांस होता है, ड्रामा होता है, ट्रेडजी होता है, हीरो हीरोइन और खलनायक होते हैं। मेरी दुखभरी और मसालेदार पिक्चर में न जाने तुम कहाँ से ज्ञान के दर्शन पाते हो।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

सदगुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐

साहब तो सभी जीव का ध्यान रखते हैं, सबकी फिक्र करते हैं तभी तो हम सब सांस ले पा रहे हैं, जगत में भरण पोषण कर पा रहे हैं। लेकिन जरा ऊपर उठकर सोचिए, कल्पना कीजिए साहब के उन भक्तों के बारे में, उनके बीच के दिव्य और अलौकिक सम्बन्धों के बारे में जो सीधे तौर पर चेतना की सतह पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, जो साहब की राह में जीवन खपाते हैं, उन्हें देखकर जीते और मरते हैं। कल्पना कीजिए उस चरम प्रेम की जो सदगुरु कबीर और धर्मनि आमीन के हृदय में रहा होगा। साहब और भक्त के बीच के इस अलौकिक प्रेम को महसूस करके देखिए। ये मेरी मात्र कल्पना ही है, बस उस अद्भुत प्रेम की थाह लेना चाहता हूँ, उस उच्चतम शिखर को करीब से देखना चाहता हूं जिस शिखर पर सदगुरु कबीर, धनी धर्मदास साहब और आमीन माता मिले। ग्रंथों में उल्लिखित उनके बीच के संवादों को महसूस कीजिए। जिस प्रकार धनी धर्मदास साहब और आमीन माता सदगुरु कबीर के लिए बेचैन थे उसी तरह साहब कबीर भी उनके लिए उतने ही व्याकुल थे। खैर, जगत में उनके जैसा प्रेमी अब संभव नहीं, लेकिन मन में उनके अलौकिक संबंधों को लेकर विचार आया, हृदय में भाव उमड़ा, जिसे अपनी भाषा में लिख दिया..💐

मेरी पुकार की सार्थकता...💐

मैं कितनों भी उनके नाम का स्मरण करूँ, कितनों भी उनका ध्यान धरूँ, कितनों भी उनकी आरती गाऊं, कितनों भी उन्हें सुरति से निहारूँ, कितनों भी उन्हें पुकारूँ। मुझे लगता है मेरी इस पुकार का कोई अर्थ नहीं, मेरी व्याकुलता का कोई मोल नहीं।

मेरी पुकार की सार्थकता तब है जब वो मुझे याद करें, जब वो मुझे पुकारे, जब वो मेरी सुरति करें, जब वो मेरा ध्यान धरें। मेरी प्रार्थना तब सफल होगी जब वो मेरे लिए बेचैन रहें, मुझे सुलाने के लिए खुद रात रात भर जागें, मेरे साथ हँसे और मेरे साथ रोएँ, पल पल मुझे सजाए और पल पल मुझे संभालें। मेरी पुकार तब सार्थक होगी जब निशदिन उनके जेहन में मैं रहूं।

ऐसे अनेकों लोग होंगे इस दुनिया में, अनेकों पूण्य आत्माएँ होंगी इस जगत में, जिन्हें साहब निशदिन देखा करते होंगे, जिनकी साहब फिक्र किया करते होंगे, जिनके लिए साहब व्याकुल हुआ करते होंगे। न जाने वो कैसे लोग होंगे जिनकी चिंता साहब को होती होगी, परमात्मा को होती होगी। ऐसे लोगों का जीवन निश्चित ही दिव्यता से ओतप्रोत होता होगा। उफ़, सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2019

उन दिनों की बात है...💐

ढेरों नाजुक और कोमल भावनाएं थी। पलकों पर अनगिनत रंगबिरंगे और गुलाबी सपने थे। आशाएं ऊँची उड़ान पर थी। इक्छाएँ और उम्मीदें किसी और ही दुनिया के सफर पर हुआ करती। जब किसी चेहरे के लिए दिल धड़का करता।

लड़कपन के वो दिन सौंदर्य से लबालब थे। ओस की बूंदों से सना सवेरा हुआ करता और गोधूलि बेला की लालिमा में दिन का सूरज अस्त हुआ करता। मदमस्त दिनचर्या उसकी यादों में बीतता और खामोश खुशनुमा रातें उसे लिखते हुए रंगीन पन्नों में ढला करती।

प्रतीक्षा के दिन बड़े लंबे और खूबसूरत हुआ करते।  गुजरने वाली पवन में उसकी खुशबू होती, हर दृश्य में उसका अल्हड़ चेहरा होता। इंतेजार में पल पल गिनता, क्षण क्षण जीता और क्षण क्षण मरता।

ताजे मोगरे की महक, हाथों में रची मेहंदी के चटक रंग, आंगन की मनभावन रंगोली, पूजा की थाल, मंदिर का जलता दिया, कल-कल की आवाज करती रास्ते की नदी, पंछियों का शोर...ये उन दिनों की बात है।




कोमल भावनाएं...💐

साहब को लेकर मैं बहुत संवेदनशील हूँ, सेंटी और भावुक हूँ। उन्हें लेकर मन में अनेकों छोटे बड़े विचार आते हैं, कल्पनाएं उठती है। अकेले में उनसे खूब सारी बातें करता हूँ, कभी विनती करता हूँ, तो कभी बच्चों के जैसे उनसे नाराज होता हूँ, तो कभी उन पर गुस्सा करता हूँ। हर दुख दर्द, हर पीड़ा, खुशियों की फुलझड़ियों को उनसे कह देना चाहता हूँ। मर्यादा से परे जाकर किसी बचपन के मित्र की भाँति जीवन के हर लम्हों में उन्हें शामिल कर लिया करता हूँ।

कभी कोई इक्छा पूरी नहीं होती तो उनकी तस्वीर पलटकर उल्टा रख देता हूँ, तो कभी इक्छा पूरी होती है तो उन्हें सिक्के भी चढ़ाता हूँ। कभी बच्चों की तरह उन्हें चाकलेट खाने को देता हूँ, तो कभी उनकी तस्वीर लेकर देर तक रोता हूँ। उन्हें मेरी हर बात पता है, हर राज पता है।

उन्हें लेकर अनेकों छोटी बड़ी बातें, विचार मन में तैरते रहते हैं। उनके साथ हृदय के एक कोने में अलग ही दुनिया बसा रखी है। उस दुनिया में मैं उनके साथ हंसता हूँ, रोता हूँ, जीता हूँ। जिन्हें लिख दूं तो आप सब मुझे पागल कहेंगे, अहंकारी कहेंगे, गुरुद्रोही कहेंगे, नास्तिक कहेंगे और तुरंत अनफ्रेंड भी कर देंगे। कहने को बहुत कुछ है लेकिन हृदय की बात किससे कहें, कैसे कहें, किन शब्दों में कहें??

सोमवार, 21 अक्तूबर 2019

साहब से मोहब्बत कर लो...💐

उसे छोड़ दो और साहब से उतनी ही मोहब्बत कर लो। उस चेहरे की जगह साहब के अनुपम रूप को दिल में उतर जाने दो। जिस तरह उसके लिए रात रात भर जागे, उससे मिलने के लिए दुआएं मांगी, अनगिनत सपने सजाए। उसी तरह साहब के लिए तड़प उठो, साहब के लिए जीवन मे पागलपन छा जाने दो, जीवन का कतरा कतरा उनकी याद में महक जाने दो, साहब के लिए पल पल फूँक डालो, जिंदगी फूँक डालो। 

यकीन मानो, निराश नहीं होओगे, फिर से जी उठोगे। ये जीवन फूलों की पगडंडियों से होकर गुजरेगी, लहकते हरी वादियों से गुजरेगी, जहां भी जाओगे साहब की दिव्य और भीनी सुवास चहुँ ओर पाओगे।

मोहब्बत ही करनी है, प्रेम ही करनी है तो धनी धर्मदास साहब और आमीन माता साहिबा की तरह कर लो, जिन्होंने सदगुरु कबीर से अनुपम और अलौकिक प्रेम किया। उस प्रेम में दिव्यता है, पवित्रता है, अध्यात्म की ऊंचाई है, परमात्मा का बोध है, जीवन की सार्थकता है।


रविवार, 20 अक्तूबर 2019

उनके लिए जीऊं उनके लिए मरूँ...💐

सपने में भी भान नहीं था कि साहब ऐसे हंसते खेलते मिल जाएंगे। लगता था साहब आसमान हैं तो मैं जमीन, जो कभी एक दूसरे से नहीं मिल सकते। जीवन में बस दामाखेड़ा का मेला था, उनके दर्शन और बंदगी थी। साधारण सी जिंदगी जो सिर्फ जीने के लिए जिए जा रहा था। फेसबुक पर उनके एक स्पर्श ने पूरे जीवन का कायापलट कर दिया। अब 24x7 वो मेरे सामने रहते हैं, फेसबुक पर रहते हैं।

धीरे धीरे उनका रंग जीवन पर चढ़ता गया, और उनके रंग से पूरा अस्तित्व रंग गया। अब उनके बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। वो जिंदगी में इतने इम्पोर्टेन्ट हो जाएंगे कभी सोचा नहीं था। अब उनकी मुस्कान में अपना सुख पाता हूँ, और उनकी उदासी से मेरा हृदय भी छलनी हो जाता है।

उनके लिए बेचैनी असहनीय है, अकथनीय है। लेकिन उनसे दूर रहने की जो कसक है, जो पीड़ा है वही इसकी सुंदरता है, वही इस प्रेम का प्रतिफल है। ये पीड़ा, ये दर्द, ये जुदाई मुझे पल पल उनसे जोड़े रखती है। लगता है उनके लिए ही जिऊँ और उनके लिए ही मरूँ। 

जीवन की अतल गहराई...💐

क्या करें...?? आपकी बात हमें बिल्कुल भी समझ नहीं आती। जड़-चेतन, साकार-आकार-निराकार, भक्ति, ध्यान, योग, पाठ-पूजा, मंत्र-तंत्र, आत्मा-परमात्मा जैसी मोटी मोटी बातें मुझे कन्फ्यूज कर देती है। और जो मैं कहना चाहता हूँ, उसे आप समझ नहीं समझते। बड़ी विचित्र स्थिति है।

इसका मतलब यह हुआ कि किसी को आपबीती समझा ही नहीं सकते। यहां हर कोई अपने अपने तरीके से हृदय के भावों को शब्दों के रूप में समझना चाहता है, लेकिन डूबना कोई नहीं चाहता। अगर आप भी संतों की परंपरा का अनुशरण करते हुए जीवन की अतल गहराई में डूबोगे, तब खुदबखुद बिना समझाए, निःशब्द रूप में ही सबकुछ समझ जाओगे। तब कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी, तब कुछ सुनने की जरूरत भी नहीं होगी।

जरा गहराई में उतरकर तो देखो, डूबकर तो देखो। खुद को जी सकोगे, परमात्मा को जी सकोगे। सुंदर सृष्टि के अनगिनत और विभिन्न रूपों का दीदार कर सकोगे, साहब का विराट स्वरूप निहार सकोगे...।


मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा के उत्सव पर्व...💐

सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा का माघी मेला, दशहरा पर्व, बसंत पंचमी के इंद्रधनुषी रंग मुझे बचपन से अपनी ओर खींचते रहे हैं। मेरे लिए इन उत्सवों और रंगों के अनेकों गहरे मायने हैं। दामाखेड़ा इन उत्सवों और पर्वों में जीवंत हो उठता है, सत्यनाम की महक से चारों दिशाएँ सुवासित हो उठती है, जनजीवन उल्लासित और प्रफुल्लित हो उठता है। हर पर्व का सीधा संबंध हृदय से है, आस्था से है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का है।

दामाखेड़ा के इन उत्सवों में कोई अपने को खोजने आता है, कोई साहब को खोजने आता है। कोई अपनी मुक्ति के लिए आता है तो कोई साथ छोड़ गए अपने परिजन की मुक्ति के लिए आता है। कोई गुरु की तलाश में आता है तो कोई अपने गुरु, अपने साहब के दर्शन बंदगी और प्रसाद के लिए आता है। कहीं साहब और उनकी वाणियों को लेकर गंभीर चर्चाएं होती है तो कहीं कोई अल्हड़ संत भजन के माध्यम से साहब की अनुभूतियों में डूबा हुआ होता है। कोई सेवा करने आता है, तो कोई आनंद मनाने। कोई दो वक्त का पेट भरने आता है तो कोई बाजार लगाकर अपनों के दो वक्त का पेट भरने आता है। कहीं दोस्तों की टोली चाय के ठेलों के पास मस्ती में लीन रहते हैं, वहीं बच्चों की नजर खिलौने, नए कपड़े, पानीपुरी और चाट की दुकानों पर टिकी होती है, तो कहीं कोई युगल प्रेमी हाथों में हाथ लिए गलियों में उन्मुक्त उड़ान भर रहे होते हैं।

इन्हीं इंद्रधनुषी रंगों से लबरेज दामाखेड़ा की यादें हैं। ये यादें बड़ी गहरी हैं, ये संस्मरण बड़े ताजे हैं, मीठे हैं। एक तरफ तो ये पर्व, ये उत्सव और मेलों की स्मृतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सहज संस्कार के रूप में प्रसारित हो रही है। वहीं दूसरी तरफ साहब की मनभावन वाणियों के माध्यम से, तो कहीं पान परवाना के माध्यम से धरती के कोने कोने तक पहुंच रही है। उत्सव के इन लम्हों को जीने के लिए समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं, सामाजिक और धरातलीय सीमाओं को पीछे छोड़कर लोग इसका हिस्सा बनते है, समरसता का प्रसार होता है, लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं, परमात्मा से जुड़ते हैं। दामाखेड़ा के ये पर्व, ये उत्सव, ये मेले जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं, जीवन का सही मायने बताते हैं।

आज साहब के अवतरण दिवस विजयदशमी पर दामाखेड़ा में नहीं हूँ, लेकिन मेरा पूरा परिवार वहां उपस्थित हैं। घर पर अकेले दूर बैठे कल्पनाओं के माध्यम से ही महसूस कर रहा हूँ कि वहां ये हो रहा होगा, वो हो रहा होगा, सबको बड़ा आनंद आ रहा होगा... खासकर दामाखेड़ा के भोजन प्रसाद को याद कर रहा हूँ। वहां की कल्पनाओं के अहसासों से ही मन गदगद है।

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बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

इशारों में कहिए...💐

कहते हैं परमात्मा की उपस्थिति तो हर जगह है, जगत के प्रत्येक रूप में है। वो सूक्ष्म में भी है और स्थूल में भी। वो पवन में भी है और निर्वात में, वो जड़ में भी है और चेतन में भी। वो हर अणु में है और हर परमाणु में भी। वो दृश्य में भी है और अदृश्य में भी।

जब वो संसार के हर प्राणी में मौजूद हैं, हर किसी के अस्तित्व में मौजूद है, ब्रम्हांड के हर रूप में उसकी उपस्थिति है, जब वो सार्वभौम हैं तो उनकी बात छुपाकर क्यों की जाती है? उनकी बात धीमी आवाज में क्यों बताई जाती है? उनके बारे में हर कोई इशारों में ही क्यों कहता है? जबकि हर कोई उनके बारे में जानना चाहता, उन्हें हर कोई छूकर देखना चाहता है, रहस्यों के पार झांकना चाहता है, पर्दे के पीछे छुपे राज को जानना चाहता है।

अधिकतर लोग कहते हैं परमात्मा की बात खुलकर सार्वजनिक रूप से नहीं करनी चाहिए, इशारों में बता देना चाहिए और इशारों में समझ लेना चाहिए, राज को राज ही रखना चाहिए। लोग शायद सही कहते हैं।

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वो मेरी दशा पर मुस्कराते हैं...💐

वो कहते हैं "जो हो रहा है उसका आनंद लो।" अब उन्हें कैसे बताऊं कि वहां कोई आनंद नहीं है, कोई मजा नहीं है, बल्कि वहां तो आंसू ही आंसू है, तड़प ही तड़प है, सजा ही सजा है।

भगवान कसम वो मेरा एक मिनट के लिए भी पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे साथ खाते हैं, मेरे साथ सोते हैं, मेरे साथ ऑफिस जाते हैं, मेरा काम भी वही करते हैं। रात रातभर मुझे जगाए रहते हैं, बिना बुलाए वो सपने में भी चले आते हैं, यहां तक कि टॉयलेट में भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। बहुत कोशिश करता हूँ कि उनसे पीछा छूट जाए, वो मेरे पीछे न आएं। लेकिन वो तो मेरी परछाई बनकर मुझसे चिपके हुए हैं, कभी अलग ही नहीं होते।

यार कोई ताबीज बताओ, कोई मंतर बताओ, कोई उपाय बताओ, कोई तो तरीका बताओ कि वो मेरे पीछे न आएं। कम से कम सुकून से चार पल सो तो सकूँ, शरीर सूखकर कांटा हो गया है। उन्हें मेरे ऊपर बिल्कुल भी तरस नहीं आता। ऊपर से मेरी दशा पर वो मुस्कुराते हैं, मजा लेते हैं।

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रविवार, 29 सितंबर 2019

पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब मेरे परमात्मा...💐

अक्सर लोग कहा करते हैं कि हर व्यक्ति के अंदर परमात्मा होता है, लेकिन अज्ञानतावश वह अपने भीतर के परमात्मा से अंजान रहता है। यह भी कहा जाता है आत्मा ही परमात्मा है। अपने आप से जुड़ने पर, अपने आत्मा का साक्षात्कार करने पर खुद के भीतर उपस्थित परमात्मा तत्व से परिचय प्राप्त हो जाता है।

लेकिन मैं लंबे समय से दुविधा में हूँ। मुझे ऐसा नहीं लगता कि आत्मा ही परमात्मा है। अभी तक मैं यही मानता हूं कि परमात्मा कोई और है, कोई और ही तत्व है, जो अपने से अलग है, अपने से जुदा और भिन्न है।

चूंकि जिनकी नाद कानों में पड़ती है, जिनकी मधुर आवाज हृदय में उतरती है, जो इन आँखों से जगत के सतरंगी दृश्य दिखाते हैं, जो हर पल साथ चलते हैं, परछाई बनकर पीछा करते हैं, वो तो साहब ही हैं। इसलिए साहब ही परमात्मा हैं, उनके अलावा किसी और को परमात्मा मानने से मेरा मन इंकार कर देता है। स्वयं के अंदर परमात्मा तत्व के होने की बात मुझे समझ में नहीं आती।

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शनिवार, 28 सितंबर 2019

ताज पर उंगली मत उठाओ...💐

क्या यार... छोटी छोटी बातों में पीढियां गिना देते हो, तलवार निकाल लेते हो। जो बात समझ नहीं आती, या किसी पोस्ट के विषय में आप नहीं जानते तो उस पर कमेंट ही क्यों करते हो?

बड़े गुरुर से अपने को उसी एक बरगद की शाखा समझते थे, परिवार का हिस्सा समझते थे। जिसकी छांव में अब तक जिंदगी गुजारी, पीढियां गुजारी। आज उसी बरगद की जड़ों को खोदना चाहते हो, उसी परिवार से अलग होने की बात करते हो।

एक बात समझ लो कि परिवार का मुखिया हमेशा परिवार को एकसूत्र में जोड़े रखना चाहता है, सबको खुश देखना चाहता है। वो तो हर डाली, हर फूल और हर पत्तों को अपने शरीर का अंग समझकर खून से सींचता है। जब वो कुछ कहता है तो किसी एक के लिए नहीं कहता, बल्कि सबकी बात कहता है, सबके भले के लिए कहता है। मुखिया को हर जायज और नाजायज बात पर नाराज होने का हक़ है, डांटने का हक़ है। उनकी हर बात परिवार के सभी सदस्यों के लिए शिरोधार्य होनी चाहिए।

एक बात और समझ लो कि ताज पर उँगली उठाने वाले कितनों आए और कितनों खाक हो गए। लेकिन ताज को हिला भी न सके। वो तो रूहानी है, पारलौकिक है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐

सद्गुरु के चरण जब आमिन माता और धनी धर्मदास साहब के आँगन में पड़ते हैं तो उनके हृदय के भाव आँसुओ के रूप में छलक पड़ते हैं। न जाने वह कैसा समर्पण रहा होगा, न जाने उनकी भक्ति की पराकाष्ठा कैसी रही होगी। सद्गुरु से ऐसा प्रेम आमिन माता साहिबा और धनी धर्मदास साहब जैसे गृहस्थ ही कर सकते हैं।

सद्गुरु के प्रति उनके गहरे भाव, उनका अनुराग, उनका समर्पण शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। जब भी सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन के गहरे आत्मीय संबंधों की कल्पना करता हूँ, सिहर उठता हूँ, तिलमिला जाता हूँ।

उनका सद्गुरु के प्रति भाव, उनका सद्गुरु के प्रति आश्रित जीवन सोचने पर विवश कर देता है कि मेरा जीवन कहाँ है? क्या मैं उनके मार्ग पर चल रहा हूँ? क्या मैं उनकी तरह सद्गुरु के चरणों में जीवन रख सकता हूँ? और मेरा उत्तर "न" में आता है।

चूँकि हम सद्गुरु कबीर और धर्मनि आमीन की परंपरा को अपना आदर्श मानते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, तो अपने साहब की छोटी छोटी बातों को शिरोधार्य करने में क्यों हिचकिचाते हैं? जबकि वो हमें जीवन के बंधनों से मुक्त कर अपने लोक "सत्यलोक" ले जाने के लिए ही इस धरा में अवतरित हुए हैं।

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रविवार, 22 सितंबर 2019

कथनी और करनी में भेद...💐

कहने और करने में बड़ा फर्क होता है भैया। ज्ञान तो अथाह है, और ज्ञानी शब्दों की खिचड़ी बनाकर सबको परोसते रहता है, डींगे हांकते रहता है। लेकिन जिसे उस ज्ञान के अनुसार जीना है, उस ज्ञान को जीवन में उतारना है, उसके लिए आसान नहीं होता, बेचारे का तेल निकल जाता है, भर्ता बन जाता है।

कहने वाला कुछ भी कह देता है, कुछ भी सलाह दे देता  है। लेकिन जिसे उस सलाह के अनुसार ज्ञान को धारण करके जीना है, उसके लिए बहुत कठिन है मेरे भैया। वैसे भी धर्म और अध्यात्म अब बाजार की वस्तु बन गई। कुछ लोग इसकी ब्रांडिंग और मार्केटिंग भी करते हैं। इसलिए ऐरे-गैरे आदमी की बात मानकर उसके जाल में नहीं फँसना चाहिए।

पनघट का रास्ता बड़ा कठिन है, बेहद दुर्गम है। रास्ते से भटकाने वालों की लंबी फेहरिस्त है। जिसे देखो वही गुरूवाई करने पर उतारू है। इसलिए सावधानी से आगे बढ़ो, कदम फूंक-फूंककर कदम बढ़ाओ। मार्ग में कोई भी बाधा आए या कोई भी रुकावट आए तो सीधे ताज से मार्ग पूछो, सीधे उनके शरणागत हो जाओ, वो हाथ थाम लेंगे...।

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शनिवार, 31 अगस्त 2019

साहब की खोज...💐

मन में हजारों प्रश्न थे, अनेकों जिज्ञासाएं थी। एक ही घण्टे में सारे प्रश्नों के उत्तर जान लेना चाहता था। जो मिलता उसी के पैर पकड़ लेता, पूछता... क्या आपने परमात्मा को देखा है? मुझे भी परमात्मा से मिला दो, मुझे भी उनके दर्शन करा दो भले ही ये जीवन ले लो। लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला जो मेरा हाथ परमात्मा के हाथ में थमा दे।

न जाने कितने ही किताबों और ग्रंथों के पन्ने पलटे, न जाने कितने ही मंदिरों की घंटियां बजाई, न जाने कितने ही आंसू बहाए। परमात्मा की खोज में दर दर की ठोकरें खाई, रात रात भर भूखे प्यासे तन्हाई में गुजारी। उनकी खोज में जिंदगी का कतरा कतरा तिनका तिनका झोंक दिया, फिर एक दिन होश हवास भी खो बैठा। खोज ऐसी, लगन ऐसी की परमात्मा के बदले हर कीमत चुकाने को तैयार...।

धीरे धीरे उदासी और हताशा हावी होने लगी, सारी आशाएं निराशा में बदलने लगी। अश्रु धारा रोके नहीं रुकते...। कुछ समझ नहीं आता, परमात्मा तक पहुंचने का कोई मार्ग नहीं सूझता। तंग आकर सबकुछ छोड़ दिया, अपने को कमरे में बंद कर लिया। साहब की तस्वीर बांहों में लेकर कई दिनों तक रोता रहा। प्रण था कि जब तक साहब तस्वीर से बाहर नहीं निकलते तब तक मैं कमरे से बाहर नहीं निकलूंगा।

आज पीछे पलटकर देखता हूँ, सफर की यादें....। सांसे महक उठी हैं, वीरान जिंदगी में उन्होंने अपनी लालिमा भर दी है, पतझड़ और रेगिस्तान में रंग बिरंगे फूल खिला दिए, अपने उजले और विहंगम स्वरूप से परिचय करा दिए। जी चाहता है उन्हीं के लिए जिऊँ और उन्हीं के लिए मरूँ...

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

स्वतः संस्कार...

पत्नी रोज शाम होते ही अगरबत्ती जलाकर संध्यापाठ के शब्दों को दुहराती रहती है। विगत दस बरसों से रोज नित्य रूप से यही क्रिया अनवरत जारी है। उसे कुछ समझ आए या न आए लेकिन प्रतिदिन हर हाल में किसी कठोर व्रत की तरह नियमपूर्वक संध्यापाठ और आरती करती ही है।

बड़े लंबे समय से उसके इस नियम का घोर विरोधी रहा हूं। लेकिन एक दिन देखा की मेरे दोनों बच्चे भी संध्या पाठ और आरती में शामिल हो रहे हैं, ग्रंथों को आदर दे रहे हैं, सहजता से संस्कारित हो रहे हैं, स्वतः ही दीक्षित हो रहे हैं। तब से पत्नी के इस कठोर नियम का मैं भी समर्थक हो गया।

लेकिन बड़े दुख की बात है कि पिछले दस बरसों से मेरी गाड़ी संध्यापाठ के पहले पन्ने से ही आगे नहीं बढ़ सकी है।

बुधवार, 21 अगस्त 2019

आँसुओ में व्यक्त...💐

जो इन्द्रियातीत है उसका वर्णन तो प्रतीक चिन्हों से ही हो सकता है, इशारों से ही हो सकता है। क्योंकि हमारी भाषा के पास उन चीजों के लिए शब्द ही नही है, हमारे मस्तिष्क और ज्ञान चक्षुओं के पास इतनी समझ ही नहीं है कि वो इन्द्रियो से परे की बातों को कह सके, जाहिर कर सके।

अब सवाल यह पैदा होता है कि जो उस परम सत्ता परमात्मा का वर्णन कर रहा है, उन्होनें खुद उसकी झलक पाई है या नही। लेकिन इस दुनिया मे जिसे देखो वही ऐसा व्यवहार करता है जैसे की वह सर्वज्ञ हो, जैसे कि वह परमात्मा के बारे में सब कुछ जानता हो, जैसे कि उसे सारी सृष्टि की जानकारी हो।

परमात्मा की बनाई सृष्टि, उनकी हर रचना, उनकी प्रत्येक कृति अबूझ रहस्यों से भरी पड़ी है। वो अज्ञात है, अज्ञेय है, अनादिकाल से परदे के पीछे छिपा है। जो अज्ञेय हो, उनके विषय में क्या कहा जाए और कैसे कहा जाए? जिसने भी उनका हल्का स्पर्श पाया, सिर्फ आँसुओ में व्यक्त कर पाया...

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सोमवार, 19 अगस्त 2019

पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की छाप...💐

दोस्तों, कभी कभी फेसबुक पर पंडिताई कर लिया करता हूँ। फेसबुक पर लिखकर मन की भड़ास निकाल लिया करता हूँ। मेरे लिखे शब्दों को ज्यादा सीरियस न लिया करें। क्योंकि सिर्फ "लिखना" और "जीकर लिखने" में फर्क होता है, और मैं सिर्फ लिखता हूँ।

कुछ मित्रगण कहते हैं कि मेरे शब्दों में पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की भीनी खुशबू आती है। दरअसल मेरे लेख में नया कुछ नहीं है। मेरे लेख में जो भी शब्द होते हैं, जो भी भाव होते है, वो पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब के अजर अमर ग्रंथ "अमृत कलश" से प्रेरित होते हैं। इसलिए शब्दों के भाव हृदय को छूते हैं, इसलिए शब्दों के भाव में हर कोई अपने को जोड़ लेता है।

पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब के व्यक्तित्व की शैली ही अनूठी थी, हर कोई उनसे अपना रिश्ता जोड़ लेता था, हर कोई उनके आकर्षक में बंध जाता था। मेरा बचपन उन्हीं की कहानियां सुनते हुए बीता, जवानी उन्हें ही पढ़ते हुए बीती। अतः मेरे लेख पर, जीवन और अस्तित्व पर उनकी छाप स्वाभाविक ही है।

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रविवार, 18 अगस्त 2019

उनकी राह में जीवन खप जाए...💐

कई चीजें निःशब्द ही दी और ली जाती हैं। आशीर्वाद, कृपा, उपकार जैसे शब्द उनमें से एक हैं, जिन्हें निःशब्द लिया और दिया जाता है। फेसबुक के किसी पोस्ट पर साहब का लाईक या कमेंट उनके निःशब्द आशीर्वाद और कृपा की तरह हैं। जो समय समय पर हमें प्राप्त होते रहा है।

फेसबुक पर उनका लाईक और कमेंट विटामिन की गोलियों की तरह सकारात्मक असर पैदा करती है, जो जीवन को सीधे और प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। उनके लाइक और कमेंट से प्रेरणा मिलती है, कुछ कदम उनकी ओर और बढ़ाने की ताकत मिलती है। संस्कारों का परिष्करण होता है, जिससे जीवन जाग उठता है, दिनचर्या में ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है। उनके छुअन से अस्तित्व महक उठता है। ध्यान उनकी ओर लगे रहता है।

मेरे फेसबुक पोस्ट पर उनका लाईक और कमेंट जीवन भर की जमा पूंजी है। जिन्हें अनेकों बार पढ़ता हूँ, उनके शब्दों को जीवन में गढ़ता हूँ, उन्हें जीने की कोशिश करता हूँ। लाईक और कमेंट रूपी उनकी कृपा, और महाप्रसाद मुझे निरंतर निःशब्द रूप में प्राप्त हो रहा है।

आंसुओं को शब्दों में बयान करने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है। लेकिन उनसे कहना चाहता हूं की उनकी प्रतीक्षा में जीवन ढल जाए, उनकी राह में जीवन जर जाए, उनके चरणों में जीवन खप जाए...

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शनिवार, 17 अगस्त 2019

साहब की सहजता...💐

सामान्यतः किसी रिश्तेदार के घर जाते हैं तो चाय ऑफर किया जाता है। अक्सर हम झिझकते हुए चाय पीने से मना करते हैं। जिद होने पर आखिरकार चाय की प्याली उठा ही लेते हैं। अपने घर में रोज कई बार चाय पीते हैं तब मना नहीं करते। परिस्थिति जरा सी क्या बदली हम हिचकने लगते हैं, हम असहज हो जाते है।

किसी संत ने कहा था कि सहजता तब होती है जब हम बिना हिचके, बिना शर्माए, बिना तिरस्कार के, बिना कुछ सोचे विचारे ऑफर की गई चाय पी लेते हैं। चूंकि हम रोज चाय पीते ही हैं तो रिश्तेदार के घर मना क्यों करने लग जाते हैं।

ऐसे छोटे छोटे सहजता के उदाहरण हमारे दैनिक जीवन में रोज सामने आते हैं। सहजता में स्वतः परिस्थिति को स्वीकार लिया है। इस स्वीकारोक्ति में जरा भी बुद्धि लगाने की जरूरत नहीं होती।

इसके उलट अगर हम चाय पीने के आदि होने के बाद भी ऑफर की गई चाय लेने से मना करते हैं तो यह असहजता और अहंकार का द्योतक होता है। दरअसल अहंकार के रूप बेहद महीन होते हैं, जो आसानी से समझ नहीं आते।

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

... छोड़ दो💐

पिताजी कहते हैं सुबह चार बजे बिस्तर छोड़ दो, घरवाली कहती है घर मे रुपए छोड़ दो, दोस्त लोग कहते हैं गर्ल फ्रेंड छोड़ दो, स्नेही लोग कहते हैं चाय छोड़ दो, संत लोग कहते हैं लोभ मोह माया छोड़ दो...!

कुछ छोड़ने की जरूरत ही क्यों है यार। घोर कलयुग में पैदा हुआ हूँ, मैं तो कहता हूं सबकुछ पा लो। धन पा लो, पद पा लो, लोभ मोह माया के साथ मुक्ति भी पा लो।

एक ही अवसर है, एक ही जीवन है। राह में जो सरलता और सहजता से मिले स्वीकार कर लो।

बुधवार, 14 अगस्त 2019

पूर्णिमा...💐

आज पूर्णिमा व्रत है। घर में बड़े बुजुर्ग उपवास रखे हैं, सुबह से कुछ नहीं खाए हैं। कहते हैं आज की तिथि बड़ी पावन होती है। जो भी श्रद्धापूर्वक पूर्णिमा व्रत मनाता है, उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी हो जाती है।

मेरे मन में बचपन से ही पूर्णिमा व्रत को लेकर बड़ी उत्सुकता रही है। उस दिन घर में सुबह चार बजे से ही चहल पहल शुरू हो जाती थी। महिलाएं घर के आंगन को गोबर से लिपती थीं, चौक पूरती थीं, नारियल प्रसाद और आरती तैयार करती थीं, बाड़ी से ताजी सब्जियां लाई जाती थी, सब लोग सुबह से स्नान करके तैयार हो जाते थे। तब पूर्णिमा को किसी उत्सव की तरह मनाया करते थे।

हर पूर्णिमा को बारी बारी से सबके घरों में ग्रंथों का पठन पाठन और भजन सत्संग होता। मोटे मोटे ग्रंथ निकाले जाते। बड़े बुजुर्ग और श्रद्धालुजन पूनो महात्म्य का पाठ करते, सारा दिन घर में भजन और सत्संग होता। घर आंगन आध्यात्मिक सुगंध से सुवासित रहता।

शाम को प्रसाद वितरण होता, ततपश्चात सब लोग एक साथ बैठकर नाना प्रकार के व्यजनों का रसास्वादन करते। भोजन प्रसाद के बाद रात भर फिर सत्संग होता, साहब की बातें होती।

बचपन की पूर्णिमा व्रत की अनुभूतियाँ और दृश्य मन में गहरी समाई हुई है, जिन्हें याद करता हूँ। किसी पूर्णिमा पर मैंने भी कलशे पर एक आरती जलाई थी, जो आज भी प्रज्ज्वलित है...

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गुरुवार, 8 अगस्त 2019

फेसबुक के दोस्तों...💐

फेसबुक के मेरे दोस्तों...कुछ ऐसा कहो कि साहब के प्रति भाव से मेरा भी हृदय भीग जाए, मेरी भी पलकें भीग आए, उनकी छवि दृष्टि पटल पर उभर आए, उनके प्रेम से भर जाऊँ, जीवन में जागरण आ जाए। कुछ तो ऐसी बात बताओ कि साहब ताउम्र के लिए हृदय में उतर आएं।

मैं सुनना चाहता हूं कि आप सबके जीवन में साहब के क्या मायने हैं? मैं सुनना चाहता हूं कि आपके जीवन में साहब ने क्या बदला? मैं जानना चाहता हूं कि आपका जीवन साहब से किस तरह और क्यों प्रभावित है? कुछ तो हुआ होगा, कोई तो घटना रही होगी, कोई तो परिस्थिति ऐसी निर्मित हुई होगी जिससे आपके जीवन में साहब उतर आए होंगे।

साहब से जुड़े जीवन के वो छोटे बड़े किस्से, सुख दुख के लम्हें, वो अमूल्य और परिवर्तनकारी क्षणों को आप सबके माध्यम से महसूस करने का सुख मैं भी लेना चाहता हूं। हो सके तो जरूर शेयर करें...🙏

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...