शनिवार, 26 नवंबर 2022

स्वयं को जानें या साहब को?

साहब, स्वयं को कैसे जानें? अनेक लोग कहते हैं कि आत्मसाक्षात्कार जैसी कोई चीज होती हैं, इससे अपने असली शरीर और शुद्धतम आत्मा का बोध होता है। लेकिन मुझे आज तक अपना कोई बोध नहीं हुआ। मेरे सांसों में सत्यनाम का सुमिरन होता है और नजरों में आपका स्वरूप। मैं इन्हीं दोनों में स्थित और स्थिर होता हूँ, यही मेरे ध्यान का आधार है। इससे मुझे आपकी सत्ता का बोध होता है न कि खुद का। मैं किसी भी हाल में आपका नाम और रूप नहीं छोड़ सकता। छूटते ही जबरदस्त खालीपन का आभास होता है, ध्यान में विचार शून्यता तो होती है लेकिन उस शून्यता में आप होते हैं। मेरा ध्यान आपके नाम और रूप का आदी है, एक भी पल इन्हें ओझल नहीं होने देता। काम के दौरान भी, टीवी देखते भी, नींद में भी, हर गतिविधियों में आपका नाम और रूप रहता है। मैं तो आपको साक्षी होकर निहारता हूँ। यही क्रिया बरसों से चली आ रही है। खुद के बजाज आप और आपकी लीलाएं नजर आती हैं। जब कोई कहता है खुद को जानों, आत्मसाक्षात्कार करो तो मैं कन्फ्यूज हो जाता हूँ। पाता हूँ मैं तो कहीं हूँ ही नहीं, आपमें खो गया, आपमें मिट गया।

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