बुधवार, 31 जुलाई 2019

बंदगी की तैयारी...💐

उनके दर्शन और बंदगी की तैयारियाँ कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। मन को खींच खींचकर उनके अनुपम छवि पर सतत टिकाए रखने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं। विकेन्द्रित साँसों को उनके गीत पर केंद्रित करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

समय पल पल गुजरता जाता है, उनकी अनुपम छवि निहारने की बेला और करीब आती जाती है। नारियल, पान, सुपारी हाथों में लिए उस घड़ी की प्रतीक्षा होती है जब उनके चरणों में माथा टेककर जिंदगी की सारी उर्जा उनमें विलीन कर दें।

लेकिन महीनों की तैयारियां और सारे नाम पान तब निर्रथक हो जाते हैं जब हजारों लाखों की भीड़ में बंदगी के लिए लाइन में लगे हों और कोई सर्किट मित्र, कोई बातूनी रिश्तेदार अथवा कोई महाज्ञानी मिल जाता है। ये लोग बड़ी देर तक ऐसा दिमाग चाटते हैं, ऐसा प्रवचन देते हैं कि सारी भक्ति भावना धरी की धरी रह जाती है। और या तो साहब के चरणों तक पहुंच ही नहीं पाते, लाइन छोड़ देते हैं, अथवा साहब तक पहुँचते पहुँचते दिग्भ्रमित हो जाते हैं। तब तो साहब के चरणों तक गुस्सा, अहंकार, चिढ़, कुंठा ही पहुंच पाता है।

जीवन का जागरण...💐

इन आँसुओ के पीछे बेपनाह दर्द है। बरसों से ये दर्द सीने में पल रहा है। उसकी पीड़ा सदैव जिंदगी झुलसाती रही है। हरेक चेहरे ने ठोकर दी, हरेक परिस्थितियों ने तोड़ा मरोड़ा लताड़ा और टीस दी। समस्याओं और हालातों ने ख्वाबों के पंख कतर दिए, जीने और उड़ने की सारी कोशिशें बेकार हो गईं। सुदूर रेगिस्तान के बीचोबीच एक बूंद जीवन के लिए असहाय तड़पता रहा।

रास्ते भर बेदर्द लोग मिले, जो हाथ छुड़ाते गए, उलाहना देते गए। हृदय छलनी कर देने वाली पीड़ाओं, तकलीफों, समस्याओं के बीच मर-मरकर जिंदगी जीती रही, सरकती रही। गला फाड़कर आसमान को घूरते हुए चीख निकली- "मुझे जिंदगी क्यों दी, सांसे क्यों दी??" "तू अगर है तो सामने आ",  "देख तेरी दी हुई जिंदगी खाक हुई जा रही है"।

वीराने में कहीं से संत का आगमन होता है। उन्होंने उठाया, गले से लगाया, अपने कमंडल से अमृत की कुछ बूंदे मुझे पिलाई। उनकी उंगली पकड़े अनजाने सफर की ओर बढ़ गया। जिंदगी अब जाग चुकी थी, भोर हो चला था। दूर से आते पंछियों का मधुर कलरव स्पस्ट सुनाई दे रहा था।

सोमवार, 29 जुलाई 2019

मेरे गुरु...💐

जिंदगी में ऐसे अनेक लोग मिलते हैं जिनसे हम प्रभावित होते हैं। जीवन में उनका आगमन होते ही जीने का उद्देश्य और जीवन को देखने का नजरिया ही बदल जाता है। वो सोच में आमूलचूल परिवर्तन के संप्रेषक सिद्ध होते हैं।

जीवन की नैया जब हिचकोले खा रही थी तब मुझे ऐसे ही किसी व्यक्ति का साथ मिला। जिन्होंने जीवन के सारे भेद, सारे रहस्यों से रूबरू कराया। जिन्होंने मुझे दामाखेड़ा का मार्ग बताया, हाथ पकड़कर साहब की ओर चलना सिखाया, परमात्मा से मिलाया। दरअसल वो एक संत और मेरे पहले आध्यात्मिक गुरु हैं।

हम सुनते और मानते हैं कि योग्य शिष्य को गुरु के चरणों में सर्वस्व अर्पित कर देना चाहिए, उसे गुरु को सेवा करनी चाहिए। लेकिन मेरे गुरु ने मेरी सेवा की, अपने शिष्य की सेवा की। मेरे लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया, मेरे हाथ पैरों की मालिश की, मेरे आंसू पोछे, अपने बच्चे की तरह दुलार दिया, परिवार और समाज के ताने सुने, मेरे लिए रात रातभर रोया, मुझे सवारने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया।

मेरे लिए उनका प्यार बड़ा गहरा है। मैं आजतक समझ नहीं पाया कि उन्होंने मुझमें ऐसा क्या पाया कि जीवन और जीवन का सबकुछ मुझ पर उढेल दिया। उनके उपकार का वर्णन करने को शब्द नहीं हैं। उनके चरणों में बंदगी के अलावा कुछ और समर्पित करने में अपने को असमर्थ पाता हूँ।

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जलन...💐

जब कोई संत कहते थे कि उन्होंने जो कपड़े पहने हैं वो साहब के पहने हुए कपड़े हैं, तो उस संत से जलन होने लगती थी, उनके कपड़े अनेकों बार छूकर देखता था, उनसे बार बार पूछता था कि सच में ये कपड़े साहब के हैं?

जब कोई संत कहते थे कि साहब के लिए कपड़े सिल रहा हूँ, तो उनसे जलन होने लगती थी। उन संत के किस्मत पर जलता भुनता था और मन ही मन सोचता था कि इस दाढ़ी वाले बाबा में ऐसा क्या खास बात है कि साहब इन्हें अपने कपड़े सिलाई के लिए देते हैं।

जब कोई कहता था कि मेरे घर साहब का महाप्रसाद रखा है, साहब का बचा खाना रखा है, तो उससे जलन होती थी। वो महाप्रसाद हाथों में लेकर देर तक देखता था और सोचता था कि क्या साहब इस तरह का खाना खाते होंगे।

वो लोग जिन्हें साहब के कपड़े अपने तन पर ओढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वो लोग जिन्हें साहब के कपड़े सिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वो लोग जिन्हें साहब का महाप्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, जलन होती है।

जानता हूँ साहब सिर्फ मेरे नहीं हैं, जानता हूँ साहब से प्यार केवल मुझे ही नहीं है, और यह भी जानता हूँ साहब जन-जन के हैं, उनसे प्यार करने का सबको बराबर अधिकार है। लेकिन पता नहीं क्यों हर उस व्यक्ति से जलन होती है जिनके पास साहब की कोई वस्तु हो।

रविवार, 28 जुलाई 2019

साहब सबका है...💐

कई फोन आते हैं, मेसेज आते हैं। कहते हैं "साहब आपके पोस्ट को पढ़ते हैं, लाइक करते हैं, कमेंट करते हैं।" मेरे पोस्ट पर साहब के लाईक और कमेंट की वजह से कुछ लोग मुझे ऊंची दृष्टि से देखते हैं और आवश्यकता से अधिक सम्मान देते हैं। कुछ लोग मुझे संत या महात्मा समझते हैं। कुछ लोग समझते हैं कि साहब से गहरी जान पहचान है, इसलिए मेरे जरिए अपनी बात मुझे जरिया बनाकर साहब तक पहुचानें का निवेदन करते हैं।

दोस्तों, आपकी ही तरह मैं भी लाईन में रहकर उनकी बंदगी करता हूँ, प्रसाद लेता हूँ। यहाँ तक कि मैं रायपुर में रहकर भी उनके दर्शन के लिए नहीं जाता, और जाता भी हूँ तो उन्हें दूर से देखकर दबे पांव वापिस लौट आता हूँ।

बस इतनी सी बात है कि वो मुझे अच्छे लगते हैं, उनकी बातें अच्छी लगती है। कुछ कहते हैं तो लगता है मेरी ही बात कह रहे हैं, मेरे लिए ही कह रहे हैं। उनकी बातें मुझे छू जाती है। बस इतनी सी बात है...। मुझे न तो कबीरपंथ की कोई जानकारी है और न ही साहब से व्यक्तिगत परिचय है। उनके लाईक और कमेंट की वजह से मेरी टीआरपी बढ़ जाती है, लेकिन वो मेरे पोस्ट को लाईक क्यों करते हैं मुझे नहीं पता, पता चले तो मुझे भी जरूर बता देना।

यहां तक मेरी पत्नी भी जिद करती है और कहती है कि "साहब आपसे खुश हैं, इसलिए हमारी कुटिया में चरण रखने का उनसे निवेदन करो...।" हद है यार... बताओ भला😢

कटीले रास्ते...💐

जिस रास्ते पर आना जाना छोड़ देते हैं, वहां कटीली झाड़ियां उग आती हैं। धीरे धीरे वह रास्ता खो जाता है, और आने जाने वालों को पता ही नहीं चलता कि वहां कभी कोई रास्ता भी हुआ करता था। उसके विपरीत जिस रास्ते पर हम रोज आते जाते रहते हैं वह स्वतः ही बड़ा और चौड़ा हो जाता है।

चूंकि हम उस रास्ते पर कभी कभी ही चलते हैं, इसलिए उस रास्ते पर कटीली झाड़ियां उग आई हैं। हमें हर रोज उस रास्ते पर चलना होगा, हर रोज रास्ते को और बड़ा, और चौड़ा बनाना होगा। हमें समय समय पर कटीली झाड़ियों के विरुद्ध औजार लेकर खड़े होना होगा, उन्हें रास्ते से हटाते रहना होगा, ताकि हमारा मार्ग सुगम्य बना रहे और हमारे पाँव में कोई कांटा न चुभे।

परमात्मा का सबक...💐

अक्सर इंसान अपनी समस्याओं को ढकेलता रहता है, ढोता रहता है। मगर समस्याएँ हैं कि बार बार आती रहती हैं। जब तक वह उनसे मिलने वाला सबक नहीं सीख लेता, वे आती ही रहेंगी।

यह जीव जगत परमात्मा की ही कृति है। इसलिए परमात्मा को अपने कृतित्व, अपनी रचना से प्रेम होता है, और उसी प्रेमवश वह मनुष्य की राह में समस्याएँ बोकर उसकी मदद करना चाहता है कि ‘आज सबक नहीं सीखा तो कल सीख जाएगा, कल नहीं तो परसों सीख लेगा।’ इस प्रकार वह हर दिन हमें सबक सिखाने का उपक्रम करता रहता है। परमात्मा का यह प्रेम निरंतर चलता रहता है, इसलिए वह हमारी राह में आए दिन समस्याएं बोता रहता है।

इंसान जब परमात्मा के इस रहस्य को जान जाएगा तब अपने सबक तुरंत सीखना शुरू कर देगा। जैसे जैसे वह समस्याओं से अपने सबक सीखता जाएगा, उसके जीवन में बार बार आने वाली समस्याएं भी बंद हो जाएँगी। वह परमात्मा के उद्देश्यों को समझते हुए परिस्थितियों को स्वीकार करना और राह ढूंढना भी सीख जाएगा।

रविवार, 21 जुलाई 2019

बात करो, बात करने से बात बनती है...💐

बात करो, बात करने से ही बात बनती है, रास्ता निकलता है। हर मुद्दे पर मर्यादित रहकर सार्थक चर्चा जरूर होनी चाहिए। अनेक मुद्दे हो सकते हैं जिसे लेकर हम सहमत और असहमत होते हैं। ये मुद्दे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक अथवा मानवीय से संबंधित कुछ भी हो सकते हैं।

एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, व्यर्थ और अनर्गल तर्क अथवा कुतर्क से चर्चा का विषय भटक जाता है। इसलिए चर्चाओं को हार-जीत अथवा आत्म सम्मान की भावना से परे रखना भी अति आवश्यक है। चर्चाओं का केंद्र बिंदु और उद्देश्य व्यक्तिगत हित न हो बल्कि वह जनसमूह की संवेदना पर आधारित हो, उसमें जनकल्याण का हित छुपा हो।

वैचारिक क्रांति से ही तो समाज को दिशा मिलती है, जन आकांक्षाओं की जानकारी मिलती है, मार्ग मिलता है। इसलिए लगे रहो और दिमाग को दौड़ाते रहो। बिना हिचक के सकारात्मक सामाजिक और वैचारिक बदलाव का हिस्सा बनिए।

शनिवार, 20 जुलाई 2019

भले ही जिंदगी छूट जाए...💐

जब भी खेलते हुए गिर पड़ता तब उन्हें ही याद करता, जब भी परीक्षा में कम नम्बर आते उन्हें ही याद करता, जब भी डर लगता उन्हें ही याद करता। जब अस्पताल की बिस्तर पर जिंदगी की अंतिम सांसे ले रहा था तब भी उन्होंने ही सहारा दिया, बिस्तर से उठने की प्रेरणा दी, चंद सांसे और दी, जीने के लिए थोड़ी मुहलत और दी।

उन्होंने जागृति दी, जीना सिखाया, मानव होने का बोध कराया, खुद का बोध कराया, जीवन की अतल गहराइयों को छूना सिखाया। अकेलेपन की स्थिति में हाथ थामा, रेगिस्तान से मेरे जीवन को अपने अमृत बूंदों से सींचा, मेरे ऊबड़ खाबड़ रास्तों को उन्होंने फूलों से सजाया, मेरे सपनों और ख्वाहिशों को पंख दिए, सही पथ दिखलाया, पग-पग पर मुझे सँवारा और संभाला, इंसान बनाया, संसार और प्रकृति के मनमोहक दृश्य दिखाए।

जब उन्होंने मुझे एक पल के लिए भी बेसहारा नहीं छोड़ा तो मैं उन्हें कैसे छोड़ दूं? जो नस-नस में रचा बसा है भला उसे कैसे छोड़ दूं? अब तो वो खुद ही सांस बनकर मुझमें जीता है। अब तो मेरे लाख चाहने से भी उसका साथ नहीं छूटता, भले ही जिंदगी छूट जाए...

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शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

कबीरपंथ का संस्कार...💐

कबीरपंथियों की शिक्षा का पहला सूत्र ही शाकाहार और अहिंसा रही है। हमारी पीढ़ियाँ शाकाहारी रही है, हम शाकाहार हैं और अपने बच्चों में किसी भी कीमत पर मांसाहार की प्रवृत्ति नहीं पनपने देंगे। अपने नौनिहालों को कबीरपंथ की अमूल्य सभ्यता, संस्कृति और मुल्यों से दूर नहीं जाने देंगे।

साहब समाज के हित के लिए जीते हैं, जनकल्याण के लिए जीते हैं, मानवीय संस्कृति और अहिंसा अपनाने की बात कहते हैं। तेरा मेरा का भाव छोड़कर, जाति पाति का भेद छोड़कर, ऊंचनीच की मर्यादा लांघकर, राज्यों, प्रान्तों, क्षेत्र की सीमाओं को लांघकर, धर्म और सम्प्रदाय से ऊपर उठकर एकता और मानवता का पाठ पढ़ाते हैं।

हम सभी कबीरपंथी अगर संगठित रहें और साहब की हर आज्ञा का समय पर पालन करें तो सरकार को झुकना ही होगा। कोई बुरी नजर से कबीरपंथ के संस्कार और संस्कृति की तरफ आंख उठाकर नहीं देख सकता। परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें हर हाल में संगठित रहना होगा। हमें अपने साहब के साथ हर हाल में खड़े रहना होगा।

शनिवार, 13 जुलाई 2019

मध्यान्ह भोजन में अंडे का विरोध...💐

जीवन में ऐसे मौके नहीं आते कि वो खुद से हमें बुलाएं। हमारा परम् सौभाग्य है कि उन्होंने हमें पुकारा है, हमारे साहब ने, हमारे परमात्मा ने हमें पुकारा है। उनकी पुकार में धर्म रक्षा छुपी है, मानवता छुपी है, जनहित की भावना छुपी है। हम आने वाली नस्लों का संस्कारित जीवन देखना चाहते हैं तो उनकी आवाज को मजबूत करने के लिए हर हाल में उनके साथ खड़े होना होगा।

बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं। उन्हें जैसा संस्कार, खानपान, वातावरण मिलता है वो उसी में ढल जाते हैं। लेकिन हम तो विचारवान हैं, हम तो समझदार हैं, हमारा दायित्व बनता है कि हम ध्यान रखें कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के पालन पोषण और खान पान पर संस्कार के कोई गलत बीज न बो दे। इसलिए हर उस फैसले का विरोध जरूरी है जिससे हमारे आने वाले कल का संस्कार दूषित हो।

हम तैयार हैं उन बच्चों के संस्कारित भविष्य के लिए, हम तैयार हैं अनैतिकता के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए। एक दो दिन दामाखेड़ा में मजे से दाल भात खाएंगे, दोस्तों से मिलेंगे और साहब का दीदार करेंगे, एक सेल्फी ले लेंगे। ऐसा अवसर भला कौन चूकना चाहेगा।

गुरुवार, 4 जुलाई 2019

साहब के आगमन की तैयारी...💐

हर किसी का सपना होता है कि जीते-जी इसी जीवन में अपने आंगन में भी कम से कम एक बार साहब के चरण अवश्य पड़े। दो मिनट के लिए ही सही, लेकिन वो अद्भुत पल जीवन में आए, अपने घर में साहब के चरण पखारने का सौभाग्य मिले, साहब से प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य मिले। हम पति-पत्नी भी सपना सँजोए उस घड़ी की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं।

अक्सर रात में लेटे लेटे हम बातें करते हैं, अनेकों सपने देखते हैं, कल्पना करते हैं कि अगर साहब ने हमारा निवेदन स्वीकार कर लिया और हमारी झोपड़ी में सच में आ गए तो उनका स्वागत कैसे करेंगे, उनका आसन कहाँ लगाएंगे, उनके लिए खाने में क्या बनाएंगे? वो चाय पीना पसंद करेंगे या कॉफी या नीबू पानी? उन्हें सादी दाल पसंद आएगी या फ्राई दाल? क्या उन्हें खीर पसंद आएगी? कभी सोचते हैं उनके लिए आलू जीरा बनाएंगे, तो कभी सोचते हैं गोभी की सब्जी बनाएंगे।

फिर सोचते हैं कि किराए का एक कमरे का घर है, घर की दीवार भी गीली हो गई है। गद्दे, चादर, पलंग पुराने हो चुके हैं, कुर्सी भी टूटी हुई है, परिस्थिति बड़ी दयनीय और विचित्र है। उनके कपड़े खराब हो जाएंगे, उनके पैरों में कीचड़ लग जाएंगे। ऐसे में उन्हें घर आने का अनुरोध कैसे करें, बड़ी लाज आती है, निराश हो जाते हैं।

अक्सर हम पति-पत्नी साहब के आने की प्रतीक्षा में, उनके आगमन और स्वागत की तैयारियों के विषय में ढेरों सपने सँजोए लेटे लेटे यूँ ही बातें किया करते हैं। इन बातों में पूरी रात गुजर जाती है, लेकिन साहब के आने की तैयारी हमेशा अधूरी ही रह जाती है। तैयारियों में कुछ न कुछ कमी रह ही जाती है...।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...