रविवार, 31 जुलाई 2022

हिंसक लोग और भक्ति का पाखंड ...💐

मैं कोई दूध का धुला नहीं हूँ, ढेरों बुराइयां हैं मुझमें भी। लेकिन शराब नहीं पीता, निर्दोष और निरीह प्राणियों को मारकर नहीं खाता। मुझे साहब कबीर के परंपरा की कोई जानकारी है, न ही कुछ और जानने की इक्छा है। कबीरपंथ में क्या होना चाहिए और क्या नहीं होना चाहिए, इसका फैसला करने वाला भी नहीं हूँ। बस वर्तमान में हमारे बीच सशरीर उपस्थित वंशगुरुओं के प्रति थोड़ी श्रद्धा है, थोड़ा प्रेम है। जिन्हें मैं अपना परमात्मा कहता हूँ।

दरअसल विगत कुछ समय पहले साहब के फेसबुक पोस्ट से मिली सूचना से आहत हूँ और उससे उबर नहीं पा रहा हूँ। मैं जानना चाहता हूँ कि जो लोग मुर्गा खाकर, चिकन खाकर, मासूम जीवों की निर्दयता पूर्वक हत्या करके साहब के मंच से अपने भजनों के माध्यम से हमें भक्ति सिखाते थे, अहिंसा और प्रेम सिखाते थे, कबीरपंथ का युवावर्ग उन्हें आदर्श मानते थे, साहब उन्हें अपने बगल, अपने समकक्ष बैठने के लिए आसन और मंच देते थे, उन्हें अपनी संतान की भांति उन पर अपना अमूल्य निधियां लुटाते थे, उन्हें क्या सजा मिली?

किसी को जानकारी हो तो कृपया मुझे भी अवगत कराएं।
💐💐💐

रविवार, 24 जुलाई 2022

साहब और शिष्य ...💐

दुनियाभर में करोड़ों लोग प्रतिपल साहब को अलग अलग माध्यमों से याद करते हैं, पुकारते हैं। कोई साहब के नाम का सुमिरण करता है, तो कोई साहब का ध्यान करता है। कोई साहब की आरती गाता है, तो कोई संध्यापाठ और गुरु महिमा का पाठ करता है। कोई उनके भजन-साखी-शब्द दुहराता है, तो कोई उनके नाम से व्रत उपवास-दान-पुण्य और संतों की सेवा इत्यादि करता है।

जिसकी याद, जिसकी पुकार जितनी गहरी होती है, करुण और भावपूर्ण होती है, निष्कलंक-निर्झर-भक्तिमय और प्रेम से भीगी हुई होती है, उसकी आवाज साहब तक अवश्य पहुँचती है। साहब अपने उस भक्त को सुनते हैं, निहारते हैं तथा आशीष प्रदान करते हैं। यह आवाज, यह दृश्य, यह पुकार और उनका आशीष अव्यक्त होता है, निःशब्द होता है।

इसी तरह साहब के सुमिरण में प्रतिपल लीन भक्त भी सुदूर बैठे ही दामाखेड़ा में निशदिन साहब का दर्शन पाता है। वह साहब को सोते-जागते, लिखते-पढ़ते, खाते-पीते, बातें करते, नयनों में आँसू लिए देखता-सुनता और प्रेमातुर रोता है।

धन्य हैं ऐसे लोग जो साहब को निशदिन दूर से ही निहारा करते होंगे, उनकी मधुर आवाज सुना करते होंगे, साहब की अनहद नाद में लीन रहा करते होंगे। साहब भी अपने ऐसे शिष्य पर तीनों लोकों की संपदा लुटाया करते होंगे।

इस अद्भुत, विलक्षण और दिव्य क्षणों में साहब और शिष्य एक दूजे के हो जाते हैं। दो शरीर एक प्राण हो जाते हैं। दोनों का अश्रुपूरित मिलाप होता है, शिष्य की अनंत जन्मों की प्रतीक्षा फलीभूत होती है। उस बूंद रूपी शिष्य को  साहब अपने सागर रूप (विराट सत्ता) में मिला लेते हैं, अपना रूप और गुण प्रदान कर देते हैं। साहब और उनके ऐसे परम शिष्य के मध्य प्रेम की पराकाष्ठा की कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। अहोभाग्य है उस जीवन का जो साहब के स्पर्श से होकर गुजरे ....

शनिवार, 23 जुलाई 2022

मैं लिखूंगा तो सुमिरण करेगा कौन?

फेसबुक में अब तक पोस्ट किए गए लेखों के अलावा भी साहब के प्रति मेरे विचार, मेरे मनोभाव, उनके प्रति मेरा प्रेम, उनके प्रति मेरी नाराजगी तथा उनसे संबंधित करीब 100 से अधिक लेख लिख रखा हूँ। 

साहब तक पहुंचने में जीवन खप गया, रास्ते में अनेकों कष्ट मिले, कुछ लौकिक तो कुछ अलौकिक आनंद भी मिले। सफर के हर एक पल को मैंने लिख रखा है। सोचता हूँ वो सब आप सबके समक्ष रखूं। 

चूंकि मुझे साहब भी पढ़ते हैं, इसलिए डर और संकोच होता है कि कहीं मेरे भाव मर्यादा क्रास न कर जाए। मैं उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता।

मेरे लेखों में आप अल्हड़ता पाएंगे, बहती नदी की धुन सुनेंगे, बारिश सी प्रेम की फुहार में भीगेंगे, उड़ते पतंग की मदमस्ती महसूस करेंगे। अहंकार, चिंता, डर, उदासी, अकेलापन पाएंगे। साहब को जिए गए पल पल की अनुभूति करेंगे, उनके प्रति मेरे हृदय के भाव, उमंग, आशा, उत्सव के रंगों में आप भी रंग जाएंगे।

जो मन में विचार, भाव आते हैं उन्हें उसी रूप में लिख देता हूँ। किसी विद्वान, साहित्कार, लेखक, ज्ञानी की भांति अपने मनोभावों को प्रगट करना नहीं आता, न ही दोहा चौपाई, साखी शब्द की समझ है।

मैं साहब का कुत्ता ...💐

"मैं साहब का कुत्ता" गले में उनके नाम की रस्सी बंधी हुई है।

जब जीवन की डोर परमात्मा के हाथ हो तो कोई लाख सर पटक ले, लाख हाथ पैर जोड़ ले, विनती कर ले। वो करता वही है जो उससे परमात्मा कहता है और करवाता है। साहब के कहने पर वो सोता है, जागता है, रोता और गाता है। परमात्मा ही उसे चलाता है, उसका हर पग परमात्मा के कार्यों के लिए उठता है, हर कार्य परमात्मा को समर्पित होता है।

काश... मैं तुम्हें समझा पाता, और काश तुम समझ पाते तो मुझ पर गुस्सा नहीं करते, तब तुम मुझसे नाराज नहीं होते। तुम्हें कैसे बताऊं, कैसे समझाऊँ की भूख-प्यास, नहाने धोने, उठने बैठने तक में उन्हीं का दखल है, उन्हीं का नियंत्रण है।

किसी के बुलाने पर जा नहीं सकता, किसी के जगाने पर जाग नहीं सकता, किसी के खिलाने पर खा नहीं सकता, किसी और के अनुसार जीवन के पल-पल का निर्णय भी नहीं कर सकता। तुम्हें गुस्सा करना है तो करो, नाराज होना है तो हो जाओ, बात नहीं करनी है तो मत करो, रिश्ता तोड़ना है तो तोड़ दो... भाड़ में जाओ, लेकिन अपने हिसाब से मुझे चलाने की कोशिश मत करो। आज से तुम्हारी और मेरी जयराम जी की।

किसी ने किसी से कहा और स्टोरी का "द एन्ड" हो गया।

गहन मौन ...💐

भीतर तक गहन मौन है, बस साँसों की लय भरी सूक्ष्म और सुरीली प्रेमगान अपने ही आप गुंजित है। इस एकांत में मैं साहब के पदचाप स्पस्ट सुन पा रहा हूँ। वो आएंगे, मेरे ही बिस्तर पर मेरे साथ सोएंगे। रात के इस पहर की खुशनुमा लम्हों में मैं साहब के चरणामृत की सोंधी महक महसूस कर रहा हूँ, पान परवाने की सुवास महसूस कर रहा हूँ। वो यहीं कहीं मेरे पास ही हैं। जरा और गहरे उतरने दो, वो आएंगे। पूछेंगे क्यों जाग रहे हो? मेरा उत्तर होगा- आपकी प्रतीक्षा थी साहब, आपके बिना नींद कहाँ, सुकून कहाँ?

वो मुझे अपनी पनाहों में सदैव घेरे रहते हैं। मेरे लिए खाना निकाल लेते हैं, मेरी गाड़ी में पेट्रोल भरवा देते हैं, मेरा मोबाइल रिचार्ज करवा देते हैं, जेब में आवश्यकता अनुसार पैसे छोड़ जाते हैं, मेरे कमरे की लाइटें जला जाते हैं। जो कोई मिलने आने वाले होते हैं उनका नाम पता बता जाते हैं। सबकी खबर देते हैं। उन्हें मेरे बारे में सबकुछ पता होता है। आज बाजार से उन्होंने सफेद बैगन खरीदने को कहा।

साहब मेरा सब काम कर जाते हैं, उनके बिना मैं अधूरा, बेबस और लाचार हो जाता हूँ। वो मुझे कभी मेरा नाम पुकारकर जगाते और सुलाते हैं, तो कभी अव्यक्त भाव से। वो हर राज की बात बताते हैं। मखमली चादर के पार, दुनिया और धरती के पार अकथ की कहानी कहते हैं, सत्यलोक की बातें सुनाते हैं।

जीवन में वो नहीं होते तो न जाने किस गटर में पड़े रहते। वो ही परमात्मा हैं, वो ही गुरु हैं, वो ही पिता, मित्र और सखा हैं। उनके बिना मैं कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। वो मेरे दिन, वो मेरी रातें, वो मेरी नींद, वो मेरा सुकून और अभिमान। हृदय में सदा अकथनीय एक बोध रह जाता है, वो बोध साहब ही होते हैं। मेरा हाथ मत छोड़िएगा साहब, चरणों में विनती है।

साहब की नकल ...💐

चौका आरती में मैंने साहब को एक आसन में लगातार चार घंटे बैठे देखा है। इस दौरान वो कभी ध्यान मुद्रा में नजर आए, कभी उनमुनि भाव से भरे नजर आए तो कभी सुमिरण करते नजर आए।

मैं साहब की नकल करता हूँ। लेकिन ध्यान, सुमिरण और उनमुनि भाव की तो बात ही छोड़िए, बमुश्किल चालीस मिनट से एक घंटा तक ही एक आसन में बैठ पाता हूँ। इतने से ही पैरों, पीठ और पसलियों की हड्डियां रहम की भीख माँगने लगती है। ठीक से नकल भी नहीं हो पाती।



वो आबाद रहें ...💐

मेरे हिस्से की सारी महकती खुशियां, मेरी मुस्कान के सारे फूल, मेरे जज्बातों के सारे खुशनुमा भाव, मेरे जीवन का सारा सुख उन्हें मिले, जिन्हें मैं हृदय से प्यार करता हूँ, जिनके चरणों में शीश झुकाता हूँ। मेरा वजूद रहे न रहे, उनका अस्तित्व सदा कायम रहे, उनका आंगन हमेशा भरापूरा और आबाद रहे।

💐💐💐

शनिवार, 16 जुलाई 2022

माता साहब का आगमन ...💐

19 जुलाई 2022...
सफेद फार्च्यूनर कार...
बलौदाबाजार हमारे घर के सामने आकर रुकेगी...
माता साहब का आगमन... स्वागत...
हमारे सपने पूरे होंगे, अरमान पूरे होंगे, बरसों की प्रतीक्षा फलीभूत होगी।

साँसों के साथ पूरे घर परिवार में हलचल मची हुई है... घर के साथ साँसों और सुरति की भी सफाई करनी है... तैयारी के लिए समय बहुत कम है।

साहब की असीम कृपा, माता पिता के पुण्यकर्मों, साहब के प्रति उनके स्नेह और श्रद्धा की वजह से आज हम सभी परिजनों बेटे, बहुओं, पोता, पोतियों के जीवन में भी ऐसा सुअवसर आया है। माता साहब के चरणों में शीश रखने, उनके चरण पखारने, चरणामृत ग्रहण करने का अनमोल पल जीते जी इसी जीवन में प्राप्त हो रहा है।

💐💐💐

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

मैं साहब के चमत्कारों का साक्षी हूँ ...💐

रावण आकाश मार्ग से वायुयान द्वारा माता सीता को ले जा सकता है, नारद मुनि इस लोक से उस लोक गायब होकर जा सकते हैं, राम और कृष्ण के रूप में स्वयं भगवान इस धरा पर अवतरित होते हैं। हनुमान जी उड़ सकते हैं, पूरे पहाड़ को उठा सकते हैं... 

भारतीय संस्कृति और इतिहास में अनेकों संत, महापुरुष, देवी-देवता, राक्षस हुए जो अद्वितीय रहे, हर किसी की कोई न कोई अपनी कहानी रही। इसके अलावा अन्य सम्प्रदायों/दुनियाभर की मान्यताओं में ऐसे अनेकों पात्र रहें, जिन्हें ईश्वरीय सत्ता के रूप में स्वीकार किया गया, चमत्कारों से जोड़ा गया।

जब वे सामान्य मानव से ऊपर उठकर दैवीय/आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण हो सकते हैं तो साहब कबीर भी कमल पुष्प पर अवतरित हुए और लोक प्रस्थान किए तो शरीर नहीं केवल फूल छोड़ गए। इसमें भला क्या आश्चर्य?? इसमें भला क्यों मत भिन्नता??

धर्मनि आमिन और सदगुरु कबीर के उसी महान परंपरा में हम पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और वंश व्यालिश को पाते हैं। वे महापुरुष हैं, इस धरती पर परमात्मा के स्वरूप हैं। बेशक उनके दर्शन बंदगी करने, प्रसाद, चरणामृत और पान परवाना ग्रहण करने से जीवन में चमत्कारिक बदलाव आते हैं। मैं उनके चमत्कारों का साक्षी हूँ।

💐💐💐

साहब की अलौकिक कृति ...💐

ओह....इतनी सुंदर दुनिया, ऐसे खूबसूरत नजारे, हरे भरे और चहचहाते जीव जगत, रहस्यों से भरे ग्रह, तारे और नक्षत्र। सुदूर तक फैला स्वच्छ, गहरा और नीला आकाश। स्वछन्द बहती जलधारा और पुरवाई, खेतों की लहलहाती फसलें, बच्चों की तुतली बोली और निर्झर मुस्कान, माँ की ममता, हरेक जीव की धड़कनों में संचरित प्यार का लयबद्ध मधुरतम संगीत। भोर और गोधूलि बेला पर आसमान में छाई लालिमा, प्रत्येक क्षण एक नए अंकुर का प्रस्फुटन और विघटन ...

इतनी सुंदर दुनिया ... क्या ये सब साहब की कृति है? मंत्रमुग्ध और अभिभूत कर देने वाले ये नजारे, धड़कनों को झंकृत कर देने वाली दिव्य आवाजें ... विस्मयकारी, सीमाओं से परे, विराट, विस्तृत और अप्रतिम सुंदरता से आह्लादित ब्रम्हांड साहब की ही कृति है?

विदाई से पहले आपको जीभरकर निहार लूँ, आपकी कृतित्व का आनंद उठा लूँ। अगली बार फिर मेरी जिंदगी में आ जाना, अपनी इस खूबसूरत रचना का फिर से परिचय करवाना।

💐💐💐

सोमवार, 11 जुलाई 2022

स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे का विरोध ...💐

वक्तव्य

छत्तीसगढ़ के माननीय स्कूली शिक्षा मंत्री श्री प्रेमसाय सिंह जी आपके विधानसभा वक्तव्य दिनाँक 18 जुलाई 2019 के सम्बन्ध में मेरा और हम सभी कबीरपंथियों का अभिमत इस प्रकार है, उस गम्भीरता से चिंतन एवम मनन की आवश्यकता है ।

हम आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों में कुपोषण के खिलाफ सरकार के प्रयास की प्रशंसा करते हैं, और कुपोषण के विरुद्ध सरकार के इस लड़ाई  का हम समस्त कबीर पंथी स्वागत करते हैं। आपसे विनयपूर्वक कहना चाहते हैं कि हम कुपोषण के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि कुपोषण से मुक्ति के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में अंडा वितरण के तौर तरीके से असहमत हैं।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख की संख्या में कबीरपंथी विभिन्न जिलों में निवास करते हैं। हम सभी कबीरपंथी और हमारा पूरा परिवार शाकाहारी हैं, साथ ही कुछ और भी मत एवं सम्प्रदाय के लोग भी अंडा अथवा किसी भी अन्य प्रकार के मांसाहार का सेवन नहीं करते है ।

अनेक बच्चे जो अंडा अथवा मांसाहारी भोजन का सेवन नहीं करते वे मांसाहार भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने में असहज महसूस करेंगे। अनेकों को भोजन में अंडा देखकर उल्टी भी हो जाती है। इसके ठीक विपरीत अगर अंडा खाने वाले बच्चों को शाकाहारी बच्चों से अलग जगह पर भोजन परोसा जाता है तो उन बच्चों में असमानता और भेदभाव बढ़ेगी ।

चूंकि सरकारी विद्यालय सार्वजनिक जगह है या दूसरे शब्दों में ये कहे तो कोई अतिसंयोक्ति नही होगी कि स्कूल विद्या की मन्दिर है । ऐस स्थिति में हमें सभी बच्चों और पालकों की हितों, भावनाओं और आस्था का ध्यान रखना होगा। हमारी तो सरकार से सिर्फ इतनी ही विनती है कि  विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्रों में हमारे बच्चे पढ़ते हैं, वहां पर अंडा न परोसा जाए । यदि अबोध स्कूली बच्चों को उनके पालक अथवा अभिभावक अंडा खिलाना चाहते हैं उन्हें उनके घर पर अंडा पहुँचा दिया जाए लेकिन शिक्षा के मंदिर में अंडा बिल्कुल भी न परोसा जाए।

(1) आपने उल्लेख किया है कि एसआरएस के सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में 83 प्रतिशत लोग मांसाहारी हैं। जबकि एक सर्वे में यह भी कहा गया है कि राज्य में 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब राज्य के 83 प्रतिशत लोग अंडे और मांस का नियमित सेवन कर रहे हैं तो 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार कैसे हो सकते हैं।

(2) प्रतिष्ठित संस्था "जामा" की सर्वे कहती है कि अंडे में बहुत ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्रॉल उपस्थित होता है, जिससे कि अंडा खाने वाले बच्चे हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से दिल की गंभीर बीमारियों के साथ ही अन्य लाइलाज बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। और हमारे नौनिहालों को अंडा परोसकर गंभीर बीमारियों का शिकार बनाए जाने की साजिश रची जा रही है।

(3) आपने देश के कुछ अन्य राज्यों के स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडे के वितरण का जिक्र किया है। आपको अवगत कराया जाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य की अपेक्षा अन्य राज्यों में कबीरपंथियों की संख्या अपेक्षाकृत कम हैं लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में करीब चालीस लाख लोग कबीरपंथी हैं जो अंडा अथवा मांसाहार का सेवन नहीं करते। राज्य की इतनी बड़ी आबादी मध्यान्ह भोजन में अंडे परोसने का विरोध करती है।

(4) अनेक शोधों से पता चला है कि अंडे से ज्यादा प्रोटीन, विटामिन, फाइबर प्राकृतिक रूप से भीगे मूंग, चना, मूंगफली में पाया जाता है जो मानव के लिए उत्तम स्वास्थ्यवर्धक है। इससे उच्च स्तर का पोषण मिलता है।

(5) अनेकों शोधों से यह भी पता चला है कि मांसाहारियों का जीवन शाकाहारियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम होता है। जिसका उदाहरण अनेक धर्म ग्रन्थों में है।

अतः विशाल कबीरपंथ समाज की जनभावनाओं का ख्याल हुए हमारी मांगे पूरी की जाए और राज्य के आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों के मध्यान्ह भोजन से अंडे को तत्काल हटाया जाए। अन्यथा राज्य और पुरे देश में हम कबीरपंथियों द्वारा विरोध प्रदर्शन, चक्का जाम किया जाएगा। किसी अप्रिय स्थिति की जिम्मेदार सरकार होगी।

साहब से दूरी ...💐

मैं साहब से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रहता हूँ। लेकिन उनके चरणों तक कभी पहुंच ही नहीं पाया। ये किसकी गलती है कि एक जरूरतमंद व्यक्ति साहब के मार्ग में चलते हुए आने वाली बाधाओं से पार पाने, रास्ता पूछने, मार्गदर्शन की चाह में उमर भर मर मरकर जीता है, तड़प तड़पकर जीवन गुजारने पर मजबूर हो जाता है। जिन्हें अपना परमात्मा मानता है, गुरु मानकर उनके चरणों में जीवन बिछा देता है लेकिन समय पर उन तक पहुंच नहीं पाता।

क्या इसका जवाबदार मैं खुद हूँ? क्या यह सिस्टम की गलती है? क्या साहब मुझसे ही नहीं मिलना चाहते, अथवा मेरे भाग्य में जीते जी साहब से मिलना लिखा ही नहीं है। जब मैंने उन्हें चाहा तो वो नहीं मिले, अब उनसे मिलने का योग बन रहा तो मुझे उनसे मिलने की इक्छा नहीं है।

दिनरात उन्हें याद किया, उन्होंने जो कहा, मैंने सो किया। जीवन उनके चरणों में झोंक दी, फिर भी उनसे नहीं मिल पाया। मैं कभी भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, जिंदगी में मिल रहे दुखों से मुक्ति की चाह लेकर उनके चरणों में नहीं गया। जब भी गया उनकी राह में चलते हुए आने वाली बाधाओं के पार जाने के उपाय पूछने गया।

निःशब्द प्रेम ...💐

जैसे साहब को मेरा अहंकार पसंद नहीं, दुर्गुण पसंद नहीं, मेरे अस्तित्व पर फैले बुराइयों की ढेर पसंद नहीं। सुमिरण नहीं करता, साहब के वचनों का पालन नहीं करता। उन्हें यह सब पसंद नहीं।

वैसे ही मुझे उनसे मिलने की लम्बी प्रतीक्षा पसंद नहीं। अब पसंद नहीं है तो नहीं है। इसमें वो क्या करें? और इसमें मैं क्या करूँ? मुझे गोभी की सब्जी पसंद है तो उन्हें मुनगा की।

कहा जाता है कि प्यार में एक निश्चित दूरी दोनों तरफ से होनी चाहिए। दोनों प्रेमियों को एक निश्चित मर्यादा का पालन करना चाहिए। तभी रिश्ते की डोर बनी रहती है, वरना वह डोर समयानुसार टूट जाती है।

जब थोड़े और गहरे उतरते हैं तो पता चलता है कि प्रेम में दोनों प्रेमी अपना सर्वस्व एक दूसरे को सौंप चुके होते हैं। तब न कोई सवाल होता है और न कोई जवाब। इशारों में बातें होती हैं, निःशब्द ही प्रेम को लिया और दिया जाता है। एक दूजे के लिए सिर्फ सर्वस्व समर्पण का भाव जाग उठता है। और तब जाकर भक्ति फलीभूत होती है।

मेरे पिताजी ...💐

मेरे पिताजी फेसबुक क्या होता है, नहीं जानते। लेकिन वो मेरे लेखों के बारे में दूसरों से सुनते हैं। आज कह रहे थे कि ये सब लिखना बंद करो। कुछ भी लिखते रहते हो, तुम्हारी जग हंसाई होती है।

मैं घर वालों को कैसे समझाऊँ की साहब के बिना जी नहीं सकता यार, और साहब से कुछ कहने के लिए, उनके चरणों में प्यार उड़ेलने के लिए, मेरे पास फेसबुक ही एकमात्र जरिया है।

क्या करूँ, साहब के लिए पागलपन रहता है, जुनून रहता है, दिनभर उनकी यादों से, उनकी अनुभूति से आंखें नम रहती है। अपने हृदय की बात उनसे नहीं कह पाया तो पागल हो जाऊंगा।

हे साहब, हे मालिक, जब तक सांसे हैं, बांहें थामें रखिएगा।

😢😢😢

गुरुवाई ...💐

मैंने विगत दिनों एक पोस्ट लिखा था कि पंथ श्री उदितमुनि नाम साहब और प्रखर प्रताप साहब को वंश गद्दी की जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाए और पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और डॉ. भानुप्रताप साहब जब तक इस धरा पर सशरीर हैं तब तक वंशगद्दी का कार्य संभालतें रहें।

यह लेख लिखते हुए मेरे मन में सुनी सुनाई और आधी अधूरी बातें चल रही थी जैसे कि वंशगद्दी की गुरूवाई सौंपकर पंथ श्री प्रकाशमुनि नाम साहब और डॉ. भानुप्रताप साहब देहत्याग कर सत्यलोक चले जाएंगे।

कल दिनांक 16 मार्च 2022 फाल्गुन पूर्णिमा संत समारोह के मंच से साहब ने अपने उद्बोधन में इस पर थोड़ी चर्चा की। जहाँ तक उनके उद्बोधन का सारांश समझ सका, उसके अनुसार वंशगद्दी अथवा गुरूवाई का ट्रांसफर "मात्र औपचारिक" ही होता है, यह तो साहब की व्यवस्था का हिस्सा होता है। इसमें शरीर त्याग जैसी कोई बात नहीं होती। साहब तो हमारे बीच सदा रहेंगे ही, बल्कि इससे तो हम सभी लाभान्वित ही होंगे। 

आने वाली पीढ़ी का चादर तिलक होने से हमें दो की जगह चार गुरु मिल जाएंगे, उनका कार्य क्षेत्र बढ़ जाएगा, अधिक से अधिक लोगों तक, उनके भक्तों तक, हरेक आंगन तक उनकी पहुँच होने लगेगी। 

हर कबीरपंथी चाहता है कि उनके आंगन में साहब के चरण पड़े, भले ही दो मिनट के लिए ही सही उनके दर्शन और बंदगी मिले, पान परवाना मिले, उनकी बरसों और जन्मों की प्रतीक्षा सार्थक हो, जीवन धन्य हो। ऐसे में हमें चार गुरु मिल जाएं तो कितना आनंद आएगा, सोचकर ही हृदय गदगद हो उठा है।

साहब से यह सब सुनकर, समझकर आज मन बहुत आनंदित है, साहब ने मेरी दुविधा बड़ी ही सहजता से दूर कर दी। अब तो चाहता हूं कि जल्द से जल्द भावी पीढ़ी को भी गुरूवाई प्रदान किया जाए ताकि हम सभी लोग लाभान्वित हों।

वो कठिन लम्हें....💐

दर्द भरे दिन थे। हर पन्द्रह दिन में अस्पताल में एडमिट होना पड़ता था। दर्द पीछा ही नहीं छोड़ता था। बचपन में ही सबसे भरोसा उठ गया। गुस्से में साहब की तस्वीर पटककर तोड़ दिया करता था, उनकी तस्वीर पर थूंक दिया करता था, पैरों से रौंद दिया करता था। साहब को चढाए नारियल खुद फोड़कर खा जाया करता था, संतो को देखकर और घर में होने वाले सत्संग से चिढ़ होती थी। इसके अलावा और भी बहुत कुछ...। ज्यादा कुछ लिखना नहीं चाहता, उपरोक्त से आप खुद साहब से मेरी नफरत समझ सकते हैं।

जब बड़ा हुआ, लड़कपन की दहलीज आई, उदासी और हताशा में सारे बुरे कर्म किए। ये कर्म इतने बुरे हैं जिसे बताने में अब शर्म आती है। डरता हूँ कि मेरे बुरे कर्मों पर किसी की नजर न पड़े। और चाहता हूं कि जिस चादर के नीचे अपने कर्मों को छुपा रखा हूँ, वो सदा के लिए छुपा ही रहे। कोई देख न पाए।

लेकिन जिस दिन मैंने साहब को जाना, समझा, जीवन में साहब का दिव्य प्रकाश फैला, अस्तित्व पर उनका अवतरण हुआ, तब से साहब से मुंह छुपाए फिरता हूँ। एक अजीब हीन भावना और अकेलेपन से ग्रसित हूँ। उनके सामने जाने में लाज आती है, थरथरा जाता हूँ। डरता हूँ कि वो मेरी असलियत जानकर मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वो मेरी बुराइयों के साथ मुझे अपना लेंगे?

जब सोचता हूँ तो पाता हूँ कि मैं तो उनकी बंदगी के काबिल ही नहीं हूँ। सैकड़ों बुराइयां हैं मुझमें, लेकिन उनके नाम का खूंटा नितप्रति पकड़े रहना चाहता हूं। क्या पता किसी दिन भाग्य चमक उठे, उनकी दया मिल जाए और वो मुझे अपने चरणों में माथा टेकने का अधिकार दे दें। मेरी सारी भूलें, मेरे सारे पाप क्षमा कर दें।

बस अब साहब से इतनी ही अपेक्षा है कि कम से कम वो अपने नाम स्मरण का अधिकार मुझसे न छीनें। वरना कहीं का नहीं रहूँगा।


मेरा भी जीवन हीरे सा तराश दीजिए ...💐

साहब हमेशा टूटी हुई चीजों का प्रयोग बड़ी खूबसूरती से करते हैं, जिसे हम प्रकृति में चहुँओर देखा करते हैं। बादल के फटने से पानी बरसता है, मिट्टी के टूटने पर खेत बनते हैं, और बीजों के फूटने पर नए पौधे। इसलिए जब भी हम खुद को टूटा हुआ महसूस करें तो समझ लीजिए साहब हमारा इस्तेमाल भी किसी बड़ी उपयोगिता, किसी बड़े उद्देश्य के लिए करना चाहते हैं।

हे मालिक, हे साहब, जब भी आपका कुछ तोड़ने का मन करे तो मेरा अहंकार तोड़ देना। जब भी आपका कुछ जलाने का मन करे तो मेरा गुस्सा जला देना। जब भी आपका कुछ बुझाने का मन करे तो मेरे अंदर के नफ़रत को बुझा देना। जब भी आपका कुछ मारने का मन करे तो मेरी बेतरतीब इक्छाओं को मार देना।

आपके जीव जगत के मुक्ति के मार्ग में मुझे भी उपयोगी बना लीजिए। मुझमें भी अपने दिव्य स्वरूप और विराट सत्ता का छोटा सा अंश उड़ेल दीजिए। मेरा ये जीवन आपके चरणों में बिछा है, तराशकर हीरे सा चमका दीजिए।

💐💐💐

उलझे प्रश्न ...💐

मन में अनेकों प्रश्न आते हैं जिनका उत्तर धरती के किसी भी इंसान के पास नहीं मिलता। जो उत्तर मिलते भी हैं तो मन को संतुष्ट नहीं करता। ये प्रश्न बड़े अजीबोगरीब हैं, ऐसे प्रश्न अक्सर छोटे बच्चे पूछा करते हैं। सीधे साहब से पूछने की हिम्मत नहीं होती, पूछते हुए झिझक होती है। जिन्होंने ये सुंदर जगत रचा हो, जिनके इशारों पर ब्रम्हांड गुंजायमान हो, उनसे भला क्या पूछूँ, कैसे और किन शब्दों में पूछूँ?

फिर भी जब कभी अकेले होता हूँ तो मन इन्हीं कल्पनाओं में खो जाया करता है कि अगर साहब सच मे कभी मिल गए तो जिद कर करके इन प्रश्नों को उनसे पूछूँगा। बिना उत्तर दिए उनके चरण नहीं छोडूंगा।


मेरी चौका आरती ...💐

चौका आरती स्थल दामाखेड़ा...
सुबह से ही "तन थिर, मन थिर, वचन थिर, सुरति निरति थिर होय" पर ध्यान लगाए शाम को चौका आरती की प्रतीक्षा थी। चौका स्थल में श्रद्धालुओं की संख्या अधिक थी, बैठने की जगह नहीं थी। नारियल, द्रव्य, पान, सुपारी किसी से कहकर भीतर भिजवा दिया और तालाब किनारे जाकर जैसे साहब चौका में बैठते हैं, बैठ गया।

साहब का आगमन होता है और थोड़ी देर में चौका शुरू होता है। हारमोनियम, तबले, झांझ, मजीरे की मधुर ध्वनि कानों में पड़ती है। जैसे ही "प्रथम ही मंदिर चौका पुराए, उत्तम आसन श्वेत बिछाए" का शब्द सुनाई पड़ता है, रोम रोम जाग उठता है, तनमन प्रफुल्लित हो उठता है, हृदय और अंतरतम में साहब उतर जाते हैं।

जैसे जैसे चौका आरती आगे बढ़ता है, ऊर्जा से तनमन लबालब हो जाता है। भावनाएं हिलोरे लेने लगती है, आखों से अश्रुधारा फुट पड़ते हैं। साहब का अनुपम रूप नजरों के सामने झलकने लगता है। चौका पूरा होते तक साहब का ताज सहित मनभावन छवि दृष्टिपटल पर रहता है।

तालाब किनारे बैठकर हाथ मे लकड़ी लेता है, उसे तिनका मानकर तोड़ता है और साहब की बंदगी करता है।

रविवार, 10 जुलाई 2022

हर कदम पर साहब का सुमिरण ...💐

विगत कुछ समय से फेसबुक से दूर हूँ और अपना पूरा समय काम, परिवार और सेहत पर केंद्रीत कर रहा हूँ। रोज की दिनचर्या का एक घंटा मार्निंग वॉक या इवनिंग वॉक के लिए निकालता हूँ। ये ऐसा वक्त होता है, जिस समय मैं नितांत अकेला होता हूँ, एकांत में होता हूँ, गार्डन की हरियाली के बीच गहरी प्राणवायु ले रहा होता हूँ। अगर इस प्राणवायु के साथ साहब का नाम साँसों में घुलकर हृदय, फेफड़ों और शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंच जाए तो मेरी वॉकिंग सार्थक हो जाएगी।

संतों के बताए ज्ञान, मार्गदर्शन के अनुसार मैं अपनी इस एक्टिविटी में साहब को शामिल कर लेना चाहता हूँ। वॉकिंग के हर बढ़ते पग पर साहब के नाम का सुमिरण कर लेना चाहता हूँ। कहते हैं ऐसी छोटी छोटी कोशिशें भी बड़ी फलदायी होती हैं। एक कोशिश मेरी भी ... आज 6682 कदम = 6682 बार साहब के अमृत तुल्य नाम का स्मरण।

पूर्णिमा और साहब की बंदगी ...💐

इस बार जयेष्ठ पूर्णिमा सद्गुरु कबीर साहब के प्रगट दिवस और एकोतरी चौका आरती के शुभ अवसर पर दामाखेड़ा में साहब के चरणों में बंदगी कर ही ली। उन्होंने मुझे पहचान ही लिया, मेरी बंदगी के प्रतिउत्तर में उन्होंने भी साहेब बंदगी कहा। 

दोपहर दो बजे से लेकर रात के दस बजे तक का समय चौका स्थल में साहब की प्रतीक्षा में बीता। उस प्रतीक्षा में बरसों को प्यास थी। उस दिव्य सत्ता के दर्शनों के बाद, उनकी बंदगी के बाद रातभर आँखों से आंसू छलकते रहे। चौका स्थल के पास के मैदान में लेटे हुए, पूर्णिमा के चांद में उनकी अनुपम छवि निहारते हुए रात गुजरी।

उस पल की याद में अब तक खुशी से निढाल हूँ, आँसू अनवरत बहते हैं।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...