रविवार, 20 दिसंबर 2020

♥️I Love You Varsha & My Little Angels...♥️

आईना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा

भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊँगा

एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊँगा

याद आऊँगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊँगा

मेरे साहब...💐

फ़िल्म विरासत के अनिल कपूर की तरह उनके भी लम्बे बाल और मूछे थीं। तब मैं उनका बड़ा आलोचक हुआ करता था। सोचता था कि ये तो मेरे गुरु नहीं हो सकते, क्योंकि गुरु अथवा संतजन तो सीधे और सरल जिंदगी जीते हैं, उनकी रहनी गहनी, वेशभूषा तो साधारण होती है। परिवार के सदस्यों के कहने पर, जिद करने पर उनके दर्शन करने हर साल दामाखेड़ा चले जाया करता था। लेकिन उन पर बिल्कुल भी श्रद्धा नहीं थी। तब सिर्फ वेषभूषा, बाहरी आवरण से ही उन्हें जानने समझने की चेष्टा करता था। तब वो मेरे लिए एक सामान्य व्यक्ति से ज्यादा कुछ नहीं थे।

बरसों बीत गए। समय के साथ खुद की खोज शुरू हुई, गुरु की खोज शुरू हुई, सद्गुरु की खोज शुरू हुई। आसपास ऐसा कोई नजर नहीं आया जिनके चरणों में माथा रखकर अपने प्रश्नों के उत्तर पा सकूँ, जिनकी छाया में जीवन गुजार सकूँ। लेकिन खोज जारी रही, प्यास बढ़ती रही। 

एक दिन शाम को अंधेरे कमरे में ध्यान मग्न बैठा था, कोई आकाशवाणी हुई, किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा, ये उनकी ही आवाज थी। मेरी चेतना को किसी ने झकझोर दिया, किसी अज्ञात सत्ता ने मेरे अस्तित्व को छू लिया। मैं हतप्रभ होकर, आनंदित होकर रोने लगा। आंसू थामें नहीं थमते थे, होंठ कांपने लगे। असीम की एक झलक मात्र से जीवन का जागरण हो गया। तब मैं जान चुका था कि अनिल कपूर के जैसे बाल और मूछे रखने वाले वो कोई साधारण मानव नहीं हैं, बल्कि वही परमात्मा हैं।

साहब को जीना...💐

ग्रन्थ-सत्संग में जाता तो गायक के सुर, तबला और मंजीरे की धुन, टीकाकार के भावार्थ पर ध्यान जाया करता। मंच में आसीन लोगों और उपस्थित संतों की बुराई खोजने में लग जाता। उनके जीवन को देखे बिना ही यह तय कर लेता की अमुक व्यक्ति को साहब के बारे में कुछ नहीं मालूम। मुझे ताज्जुब हुआ करता कि जो बातें "करने" योग्य हैं उन्हें सिर्फ "गाया" जा रहा है। मुझे लगता कि साहब की एक एक वाणी बड़ी गहरी है जिन्हें सिर्फ सत्संग की "फॉरमैलिटी" निभाने के लिए दुहराया जा रहा है, गाया जा रहा है। और मैं गुस्से से बड़बड़ाते मीनमेख निकालते घर लौट आता।

बहुत मंत्रणा करने के उपरांत मुझे अहसास हुआ कि ऐसा रिएक्शन मेरे खुद के अहं का प्रतीक है। कहीं न कहीं मैं साहब को समझने के अपने तरीके को उनके नजरिए से श्रेष्ठ मानता था। मैं साहब की साखियों को, उनकी वाणियों को गाना नहीं चाहता था बल्कि जीना चाहता था।

उन्हीं दिनों एक युवा संत मिले। बातों ही बातों में उनसे मेरे दिल के तार जुड़ गए। मैंने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने बहुत सरल उपाय बताया। उन्होंने कहा कि तुम साहब की वाणियों को जीना चाहते हो तो सत्संग में बैठो, लेकिन किसी की कुछ मत सुनो। चुपचाप बैठकर सत्संग की समाप्ति तक सत्यनाम का स्मरण करो। उनकी युक्ति काम कर गई। घंटा दो घंटा सत्संग स्थल में बैठकर सत्यनाम का स्मरण करने लगा। धीरे धीरे मुझे सुमिरण में आनंद आने लगा। 

तब से जहां भी सत्संग में जाता हूँ एकांत जगह खोजकर बैठ जाता हूँ और उस युवा संत की युक्ति के माध्यम से साहब को जीने की कोशिश करता हूँ।

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ध्यान ...💐

#ध्यान ...
कोई कहता है चार कमल दल, कोई आठ, तो कोई कहता है सहस्त्र कमल दल होते हैं। कोई कहता है सांप की आकृति में कुण्डलिनी का जागरण होता है। तो कुछ लोग कहते हैं कि भूत प्रेत नजर आते हैं, निरंजन नाम का विशालकाय दानव नजर आता है। रास्ता बताने वाले खुद तो कन्फ्यूज होते हैं और दूसरों को भी कन्फ्यूज करते हैं। 

अरे भाई, साहब का ध्यान करोगे तो सिर्फ साहब की सुनोगे, साहब को देखोगे, साहब से मिलोगे। परमात्मा की खोज करोगे तो परमात्मा ही तो मिलेंगे न। इसमें सांप, बिच्छू, भूत प्रेत, निरंजन भला कहाँ से आ गया। उल्टा पुल्टा और भयानक किस्से कहानी सुनाकर क्यों साधक को डरा रहे हो। 

साहब का मार्ग तो एकदम सहज, सरल और सीधा है। यह पथ तो साहब की दिव्य रोशनी से प्रकाशित है, उनके नाम से सुवासित है, उनके संगीत से गुंजायमान है। यह पथ तो मनभावन हरितिमा आवरण लिए सुगंधित फूलों की पगडंडियों से होकर गुजरता है। साहब का ध्यान तो साहब को जीना सिखाता है, साहब का परिचय देता है। यह मार्ग डरावना तो बिल्कुल भी नहीं है बल्कि आनंदित करने वाला है, परमानंद प्रदायक है। साहब के ध्यान में जरा गहरे उतरकर तो देखो, मजा आएगा, जीना सीख जाओगे, साहब को नस नस में जी उठोगे।

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बुधवार, 2 दिसंबर 2020

हृदय के अनकहे भाव...💐

हृदय में थोड़े भाव हैं और नयनों में आंसू। हृदय के भाव चाहकर किसी से नहीं कह पाता क्योंकि उन भावों को कहने के लिए शब्द नहीं मिलते, और रो इसलिए नहीं पाता क्योंकि आँसुओ को बहने के लिए कोई कंधा नहीं मिलता। मेरे भाव और आंसू अंदर ही अंदर हृदय और नयनों में धधकते रहते हैं, अकेले होने पर फुट पड़ते हैं, सिसक पड़ता हूँ।

जिस रास्ते मैं निकल पड़ा हूँ, कहते हैं उस पथ का कोई भौतिक साथी या हमसफर नहीं है। एक-एककर लोग पीछे छूटते जाते हैं, सिर्फ एक साहब ही हैं जो साथ होते हैं, जिनकी मौजूदगी का आभास नितप्रति होते रहता है। साहब का साथ निश्चय ही आनंदित कर देने वाला, हतप्रभ कर देने वाला होता है। उनकी दिव्य और मधुर ध्वनि तले जिंदगी अनजान डगर पर निकल पड़ी है। साहब के साथ चलना, उन्हें निभाना बहुत कठिन है, बहुत कठिन। वो मिलकर भी कभी नहीं मिले।

सफर आनंददायक होने के बावजूद राह में बेपनाह दर्द है, न बुझने वाली प्यास है, अजीब सी पीड़ा है। ये दर्द, ये प्यास, ये पीड़ा बड़ी मीठी भी है। उनसे मिलने की यही तड़प इस सफर को जिंदा रखती है, उन तक पहुंचने की चरम इक्छा इस सफर को जिंदा रखती है। काश ये तलाश जारी रहे, ये खोज जारी रहे, ये सफर जारी रहे, इसका कोई अंत न हो। उनसे मिलने की तड़प और प्यास में ही ये शरीर प्राण त्याग दे।

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मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

जीवन में आप न मिलते तो ...💐

जीवन में आप न मिलते तो न जाने किस रास्ते भटक जाते, भीड़ में कहीं खो जाते, अपने आप से ही बिछड़ जाते। आपका लखाया नाम ही है, आपका दिया पान परवाना और प्रसाद ही है, आपका चरणामृत ही है, जिसके माध्यम से जीवन को सही दिशा मिली। आपके चरणों में शीश झुकाते ही यह मानव जीवन मानो जाग उठा, यह जीवन सार्थक हुआ।

मेरी खोज को अगर आप सही दिशा न देते, मुझ पर अपनी अनंत कृपा न बरसाते, मुझे न अपनाते तो जीवन यूं ही बेमतलब गुजर जाता। जानता हूँ जीवन के इस उबड़ खाबड़ और ढलान भरी पगडंडियों में आपने मेरी उंगली पकड़ रखी है, हमसफर की तरह साथ जीते हैं, मुझे संभालते और संवारते हैं, मेरे साथ परछाई की तरह मुझमें ही कहीं रहते हैं। तभी तो आपके नाम की खुशबू से जीवन का कोना कोना महक रहा है।

अपनी अनुभूतियों के खूबसूरत लम्हों से मेरा संसार सजाने, मुझे मुझसे ही मिलाने, अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराने, इस मानव तन में परमात्म तत्व का साक्षात्कार कराने के लिए आपका शुक्रिया, शुक्रिया, शुक्रिया साहब। जीवन की अंतिम घड़ी भी आपके चरणों में ही गुजरे। आपके चरणों में बंदगी, सप्रेम साहेब बंदगी ...💐

मौन की मधुरिमा...💐

भावनाओं को बयान करने के लिए उचित शब्दों का चयन, सोच विचारकर कहना जरूरी नहीं होता। सीधे, सहज, सरल और सपाट बोली में कहे गए मनोभाव ज्यादा प्रभावशाली होते हैं। कभी कभी तो मौन की बोली उससे भी कहीं अधिक श्रेयस्कर और सीधे हृदय तक पहुचने वाली होती है।

संतजन कहते हैं कि ध्यान की पहली सीढ़ी मौन है। मौन की मधुरिमा में ही सुमिरन और ध्यान के फूल खिलते और पल्लवित होते हैं। ऐसा कहा भी जाता है कि जिसने मौन की महत्ता समझ ली, आचारचर्या में उतार ली, उसने जीवन की आधी समस्याओं को जीत लिया। मौन वह अस्त्र है जो प्रतिकूल परिस्थिति रूपी शत्रु को भी परास्त कर दे।

मौन होने का अर्थ चुप अथवा खामोश होना नहीं है। मेरी नजर में साहब की वाणी अनुसार मौन का अर्थ है - "तन थिर, मन थिर, वचन थिर, सुरति निरति थिर होय।"

ऐसा मौन हम सबके जीवन में अंकुरित हो। ऐसे मौन की दिव्य सुगंध से हमारी दिनचर्या का पल पल आह्लादित हो, पुलकित हो, सुवासित हो।

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साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...