सोमवार, 29 मार्च 2021

कठिन रास्ते...💐

जहाँ मैं हूँ, जैसे मैं हूँ, जिन परिस्थितियों को जी रहा हूँ, वहाँ रहने की चेष्टा न कर, कामना न कर। यहाँ गहरा मौन है, एकांत है, अतृप्त और बेरहम प्यास है। इस राह जब चलना आरंभ किया तब अकेला था, और आज भी इस राह का अकेला मुसाफिर हूँ। थोड़े दिनों तक लोग जुड़ते चले गए, पर धीरे धीरे वो सब पीछे रह गए, छूट गए।

किसी अनजानी सत्ता की खोज में साँसे खप गई, जिंदगी वीरान हो गई, रेगिस्तान हो गई। लेकिन प्यास अधूरी रही, आस अधूरी रही, कल भी खाली हाथ था, आज भी हाथ खाली है। रास्ता मोड़ ले। पथरीले, मरुभूमि और बंजर रास्ते पर लहूलुहान हो जाओगे। 

कोई कोई ही ऐसा होता है जो उन तक पहुंच पाता है। फिर भी अगर लहूलुहान होना चाहते हो, मरकर जीना चाहते हो तो इस मार्ग पर तुम्हारा स्वागत है।

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तुमसे ही ये जीवन...💐

साथ चलते चलते बहुत दूर आ गए, एक दूजे का हाथ थामे बड़ी दूर आ गए। पूरे ग्यारह बसंत बीत गए लेकिन लगता है अभी तक तुम्हें जीभरकर देखा भी नहीं है। समय के साथ तुम्हारी छवि, तुम्हारा चेहरा और भी ज्यादा लुभाता है। जी करता है जिंदगी को फिर से और ढंग से जीना सीखें, जो खूबसूरत पल हमनें खो दिए, उन्हें दुबारा जिएं।

समय का ऐसा कोई पल नहीं जब तुम्हारी याद न आती हो, तुमसे ही मेरा आज है, तुमसे ही मेरा कल है, तुम्हारे बिना जीवन में सुनापन है, एक रिक्तता है। आज खाली बैठे बैठे तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा, मन कहीं तुममें ही खो गया। आज तुम पास होती, साथ होती तो तुम्हें बांहों में समेट लेता।

...तुम बहुत याद आ रही हो।

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पानी पियो छानकर, गुरु बनाओ जानकर...💐

युवावस्था में प्रवेश के दरमियान साधु संतों की वाणी बहुत भाती थी। कहीं कोई चर्चा होती, विचार मंथन होता वहां कान लगाए बैठ जाता जब तक चर्चा समाप्त नहीं होती। थोड़ी समझ के उपरांत मुझे ऐसा लगने लगा कि शुरुआत में साधक लोग साहब की चर्चा तो करते हैं लेकिन उनकी चर्चा में किसी दूसरे मठ, आश्रम, मत की बुराई की अधिकता होती है। मुझे लगता कि लोग गलत हैं, साहब को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं, वो भ्रमित हैं। उनके सत्संग में क्रांतिकारी विचारों की कमी नजर आती।

कुछ समय बाद जो साधक हैं वो या तो गुरु बन जाते हैं अथवा किसी आश्रम, मठ आदि खोलकर बैठ जाते हैं, चेला बनाकर उनसे अपनी सेवा करवाने लगते हैं। फिर शुरू होता है दौलत, पद प्रतिष्ठा पाने की अंतहीन दौर, जहां जाकर वो साधक पथभ्रष्ट हो जाता है। मुझे समझ में ये बात नहीं आती थी कि साधक का सफर गुरूवाई करने में, चेला बनाने, मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा अर्जित करने और मठ मंदिर बनाने तक में क्यों समाप्त हो जाती है। साधक की साधना क्यों दिग्भ्रमित और पथभ्रष्ट हो जाती है।

आज भी मेरी धारणा बदली नहीं है। माना धन अर्जन में बुराई नहीं है, मठ आश्रम बनाने में और चेला जोड़ने में भी बुराई नहीं है, लेकिन जिस लक्ष्य को लेकर साधक निकला था वो लक्ष्य कहीं थोड़ी दूर जाकर कहीं खो जाता है। जबकि साधक का लक्ष्य तो समेटना नहीं बाँटना है, साधक का लक्ष्य तो साहब की अनुभूति पाना है, उनसे एकाकार करना है, तथा उनके सहारे सहारे आत्म कल्याण की प्राप्ति करना है।

आध्यात्मिक व्यवस्था अब हर स्तर पर बदलाव चाहती है। बदलाव के इस दौर में गुरु-शिष्य के रिश्ते, उनकी मर्यादा, संतों की छवि और प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करना होगा, पुनर्निरुपित करना होगा। लेकिन बहुत विचार के बाद मन यही कहता है अब ये हो नहीं पाएगा। इसलिए मुझे लगता है कि साहब और वंश गुरुओं के अलावा किसी और को देखने सुनने, गुरु बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।



बीती यादें...💐

बारिश की पहली बूंदों की सौंधी महक, कमल की पंखुड़ी की निर्मलता, मोगरे के सादे फूलों सी सादगी भरा उनका व्यक्तित्व मुझे आकर्षक लगता था। ये उन दिनों की बात है जब आंखों में भविष्य के सुनहरे ख्वाब झिलमिलाया करते थे, जब गौरैया के जोड़े घर के रोशनदान में अपना आशियाना बनाए करते। रोज सुबह आँगन के मुनगा पेड़ की डाली पर कौए बैठा करते और काँव काँव की आवाज से घर मे मेहमान आने की सूचना दिया करते। वो दिन याद आते हैं।

सुबह भोर होने के पहले, आसमान की लालिमा युक्त आभा के पहले बिस्तर छोड़ देना, शाम की गोधूलि बेला में गांव के तालाब के पास दोस्तों के साथ बैठकर ठहाके लगाना, एकांत में बैठकर दुनियादारी, राजनीति, अध्यात्म की चर्चा करना... वो दिन याद आते हैं।

वो लोग जो सफर में पीछे छूट गए, कहीं रह गए, परिस्थितियों ने जिन्हें दूर कर दिया, याद आ रहे हैं। कई चेहरे जिन्हें भुला दिया और कई जिन्हें हृदय में बसा लिया, याद आ रहे हैं।

वक्त का पहिया किसी की प्रतिक्षा नहीं करता, किसी के लिए नहीं रुकता। चाहे व्यक्ति धनाढ्य हो या दरिद्र, जो लम्हा बीत गया वो वापस नहीं आता, जो सफर पर छूट गया वो फिर नहीं मिलता। इसलिए चंद साँसे जो बाकी हैं उन्हें भरपूर जी लेना ही बुद्धिमत्ता है।

आज बीते दिनों की बड़ी याद आ रही है।


साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...