रविवार, 2 जनवरी 2022

सूनापन ...💐

सिर छुपाने लायक घर है, आज्ञाकारी बच्चे हैं, मुझसे प्यार करने वाली और मुझे अपने हृदय में स्थान देने वाली पत्नी है, जिंदगी के उबड़ खाबड़ रास्तों में आने वाली मुसीबतों में मार्गदर्शन करने वाले माता पिता और सास ससुर हैं, मित्रवत मेरे दो भाई हैं। जीवन चलाने लायक छोटी सी नौकरी जो आय का जरिया है। मोबाइल है, टीवी है, मोटरसाइकिल है। जीवन को चलाने के लिए जितनी भी भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती है, वो सब है।

लेकिन कुछ तो ऐसा है जो मेरे पास नहीं है, कुछ तो ऐसा है जिसकी कमी मुझे शिद्दत से महसूस होती है। सबकुछ होने के बाद भी जीवन में एक खालीपन, सूनापन और एक रिक्तता का बोध पाता हूँ। क्यों? इसका कारण क्या है? और इसका जिम्मेदार कौन है?

ये मैं बचपन से ही महसूस करता रहा हूँ। एक दर्द है, जिसकी वजह खुद मुझे नहीं पता, एक खोज है, अतृप्त प्यास है। कुछ तो ऐसा है जो मुझे जीने नहीं देता है, हंसने और मुस्कुराने की वजहें नहीं देता। क्या कोई मेरे जैसा खालीपन, सूनापन, दर्द और उदासियों में जीता है? कोई हो तो मुझे भी बताएं।

साहब का द्वारपाल ...💐

2008 में मैं रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में भर्ती था। डॉ. मनोज साहू, मनोरोग विशेषज्ञ मेरा इलाज कर रहे थे। मैंने उनसे एक घण्टे के लिए अस्पताल से बाहर जाने की परमिशन मांगी। हाथ में ड्रीप चढ़ाने वाली सुई लगी हुई थी। मैं उसी हालत में पत्नी के साथ ऑटो रिक्शा पकड़ कर कटोरा तालाब रायपुर साहब से मिलने निकल पड़ा।

वहाँ एक द्वारपाल मिले। वो मुझे देखते ही समझ गए कि अस्पताल से आया है। मैंने उनसे साहब से मिलने की इक्छा जताई। उन्होंने आंखें ततेरते हुए वापिस जाने को कहा। लेकिन मैं जिद पर अड़ा रहा। वे मुझे झल्लाते हुए बोले कि जब बीमार हो, तो ऐसी हालत में साहब के पास मत जाओ, साहब को भी बीमारी लग सकती है। चाहो तो पान परवाना और प्रसाद तुम्हें दे सकता हूँ। 

लेकिन मैं भी अहंकारवश जिद पर अड़ा रहा कि मेरे साहब हैं, मुझे उनसे मिलने का अधिकार है, और साहब की प्रतीक्षा में वहीं बैठ गया। उस दिन डॉ. भानुप्रताप साहब के दर्शन हुए, बंदगी हुई, प्रसाद मिला। लेकिन उस द्वारपाल के लिए मन में चिढ़ हो गई, क्योंकि उन्होंने मुझे साहब से मिलने से रोका था।

समय बीतने के बाद जब उस द्वारपाल के बारे में विचार उठे तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। साहब और साहब के पूरे परिवार का जीवन अनमोल हैं, अमूल्य है। वो सारे जगत की पीड़ा हरने ही तो हम सबके बीच इस धरा पर अवतरित हैं। ऐसे में साहब अथवा साहब के परिवार पर हमारी वजह से किसी तरह का संकट न आ जाए, इसका हमें ध्यान रखना चाहिए। 

जब हम उनके चरणों तक जाएं तो कम से कम नहा धोकर और साफ सुथरे तरीके से जाएं, सलीके से जाएं, बीमारी लेकर न जाएं, अगर बीमारी लेकर जाना भी पड़े तो निश्चित दूरी बनाए रखें। साहब से फरियाद करने बहुत गंभीर और जीर्णशीर्ण अवस्था में लोग आते हैं।

अब तक मैं साहब के द्वारपालों से बहुत चिढ़ता रहा हूँ, उनको लेकर मेरे अनुभव कभी अच्छे नहीं रहे हैं। लेकिन देर से ही सही उस द्वारपाल/संत के लिए हृदय में आज प्रेम उमड़ ही पड़ा।

💐💐💐

मेरे हुजूर पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब ...💐

मुझे ठीक से याद नहीं है, लेकिन शायद सन 1984 या 1985 की बात है, तब मैं 4 या 5 वर्ष का था। हमारे गाँव कारी, जिला बलौदाबाजार (छ.ग.) में पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब का आगमन हुआ था। तब गांव में बिजली नहीं हुआ करती थी, न ही लाउडस्पीकर, और कैरोसिन वाली लालटेन जलाकर सभा स्थल पर रौशनी की गई थी। जाड़े का मौसम था, लोग जमीन पर धान के पैरा बिछाकर और चादर ओढ़कर बैठे थे। मैं भी बहुत खुश था कि साहब हमारे गाँव आएं हैं, और अपने दादा की गोद में वहां मौजूद था।

साहब ने सभा स्थल में क्या कहा, मुझे नहीं पता। लेकिन उस एक पल की हल्की सी धुंधली तस्वीर है। मंच स्थल पर साहब किसी खड़े हुए व्यक्ति से कुछ बात कर रहे थे। मैं जब बड़ा हुआ तब दादाजी ने उस घटना का विवरण मुझे बताया कि करीब शाम के 7 बजे पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब का मंच पर आगमन हुआ। "उस वार्तालाप को हुबहू शब्दों में नहीं कह पा रहा हूँ, इसलिए उसका सार लिख रहा हूँ।"

उस मंच से साहब ने प्रश्न करते हुए कहा था कि "दुनिया में विरले लोग ही हैं जो परमात्मा को जीते हैं। कौन है जिसे साहब की प्यास है? कोई है?" तब गाँव के एक व्यक्ति ने खड़े होकर साहब से कहा की मुझे परमात्मा दिखा दीजिए। तब साहब ने कहा था चलो मेरे साथ तुम्हें परमात्मा से मिलवाता हूँ। लेकिन पागल हो जाओगे तो मुझे दोष मत देना। जो भी परमात्मा से मिलना चाहता हो, चलो मेरे साथ। यह सुनकर सभा स्थल में सन्नाटा छा गया। वह व्यक्ति सकपका गया, घबरा गया, और अपनी जगह बैठ गया। गांव का कोई भी व्यक्ति साहब के साथ चलने को तैयार नहीं हुआ। 

दादाजी से पंथ श्री गृन्धमुनि नाम साहब की ऐसी कहानियां, उनकी अनेकों लीलाएँ सुनते हुए बड़ा हुआ हूँ। इसलिए उनके प्रति गहरा जुड़ाव है, उन्हें शिद्दत से याद करता हूँ।

💐💐💐

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...