याद है न...??
हीरो होंडा-SS-100 की सवारी... पतझड़ के वो मौसम... बसंत का आगमन...पलाश के चटक लाल रंग के फूल, जंगल के उबड़ खाबड़ टेढ़े मेढ़े रास्ते... सरपट निकल पड़ते थे। पानी की बोतल, टिफिन में पराठे, गोभी की सब्जी और खीर...।
रास्ते की नदी में उतरकर निर्झर स्वच्छ जल में हाथ मुंह धोया करते। वहीं कहीं पास के घने छायादार वृक्ष की ओट में तुम्हारा आँचल बिछाकर बैठे सतरंगी सपनों में शाम तक एक दूसरे की बातों में खो जाते। घने जंगलों और पेड़ों के झुरमुट के बीच से ढलते सूरज की लालिमायुक्त किरणें कितनी लुभावनी हुआ करती, शाम कितनी मनमोहक हुआ करती।
आज पलाश के वो फूल फिर खिलें हैं, बसंत का मौसम फिर लौट आया है, घर में पराठे, खीर और गोभी की सब्जी फिर से बनी है। बस तुम्हारी कमी रह गई है। तुम्हें याद है न...???
मेरे गुलाबी शब्द पढ़ने के लिए तुम नहीं हो, कहीं भी नहीं हो। फिर भी तुम्हें लिखता हूँ...
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