कुछ छूट सा रहा है, कुछ खो सा रहा है, कुछ विस्मृत सा हो रहा है। जो भीतर द्वंद्व है, अंधकार है, किसी तेज पुंज से मिट रहा है, उज्जवलित हो रहा है। किसी दिव्य सुबास से अंतर्मन महक रहा है। कतरे कतरे में बिखरी जिंदगी को कोई नया मुकाम हासिल हो रहा है। जो रास्ते घुप्प अंधेरो से ढके थे अब रोशनी से नहाए हैं।हृदय की किवाड़ खुल चुकी है, सबको अपने में स्वीकार करने की सदइक्छा सी जाग रही है।
वो जो तन्हाई का आभास था, तिरोहित सा हो रहा है। उत्सुकतावश गहरे, और गहरे उतरने की उत्कंठा हो रही है, थाह लेने को मन मचल रहा है। पर्दे के पीछे जो अनसुना, अनकहा, छुपा और ढका सा है, उसका अनुमान अब ज्यादा अच्छे से हो रहा है। जिसे अब तक नहीं देखा उसके रूप का एक अंश नजर सा आ रहा है।
कोई उजला आभामंडल अस्तित्व और जिंदगी को चारों तरफ घेरे हुए है। उसके दिव्य स्पर्श से जीवन सुवासित और पुलकित हो उठा है। शरीर का रोम-रोम, हृदय का कोना कोना, समय का क्षण-क्षण उस प्रकाशपुंज को अहोभाग्य से निहार रहा है...।
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