शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

पतझड़ आ गया...💐

रिश्तों के पंख पखेरू पतझड़ के आगमन से पहले ही उड़ गए। हरितिमा की घूंघट में सजे चेहरों के बनावटी रंग भी समय के साथ धूल गए। वो पेड़ों की साखों से फूल, फल और पत्तियाँ (स्वार्थ) लेकर अपने अपने रास्ते निकल पड़े। वो सदा की तरह ठूँठ खड़ा उन्हें जाते हुए ताक रहा है। लगता है इस बरस पतझड़ का मौसम बहुत जल्दी ही आया। 

खैर, अभी तो कुछ और चेहरे भी आएंगे, जो सूखे हुए फूल, पत्ते, टहनियां भी काट छाँटकर ले जाएंगे। जीवन का यही दस्तूर है। जीवन भी कहाँ हार मानने वाला है, वो तो हर हाल में विषम परिस्थितियों में भी नए अंकुरों के रूप में कहीं भी प्रस्फुटित हो जाया करता है। 

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...